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मंत्र: निर्वाण षट्कम in Hindi

यह श्लोक आदि शंकराचार्य द्वारा रचित “निर्वाण षटकम्” का हिस्सा है। इसके छह पद हैं, और प्रत्येक पद आत्म-साक्षात्कार की गहरी समझ को व्यक्त करता है। इसका उद्देश्य अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों को स्पष्ट करना है। नीचे इन श्लोकों का विस्तार से हिंदी में विवरण दिया गया है:

श्लोक 1:
“मनो-बुद्धि-अहंकार चित्तादि नाहं
न च श्रोत्र-जिह्वे न च घ्राण-नेत्रे।
न च व्योम-भूमी न तेजो न वायु
चिदानंद-रूपं शिवो-हं शिवो-हं॥ १॥”

अर्थ:
मैं मन, बुद्धि, अहंकार और चित्त नहीं हूँ। मैं श्रवण, जिह्वा, घ्राण और नेत्र भी नहीं हूँ। मैं आकाश, पृथ्वी, अग्नि और वायु भी नहीं हूँ। मेरा वास्तविक स्वरूप चिदानंद (शुद्ध चेतना और आनंद) है, मैं शिव हूँ, मैं शिव हूँ।

श्लोक 2:
“न च प्राण-संज्ञो न वै पञ्च-वायु:
न वा सप्त-धातुर्न वा पञ्च-कोष:।
न वाक्-पाणी-पादौ न चोपस्थ पायु:
चिदानंद-रूपं शिवो-हं शिवो-हं॥ २॥”

अर्थ:
मैं प्राण या पञ्चवायु (प्राण, अपान, व्यान, उदान, और समान) नहीं हूँ। न ही मैं सप्त-धातु (रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र) हूँ, और न ही पञ्चकोष (अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय, आनंदमय) हूँ। मैं वाक्, पाणी, पाद, उपस्थ और पायु (संवेदनाएँ और अंग) भी नहीं हूँ। मेरा वास्तविक स्वरूप चिदानंद है, मैं शिव हूँ, मैं शिव हूँ।

श्लोक 3:
“न मे द्वेष-रागौ न मे लोभ-मोहौ
मदे नैव मे नैव मात्सर्य-भाव:।
न धर्मो न चार्थो न कामो न मोक्ष:
चिदानंद-रूपं शिवो-हं शिवो-हं॥ ३॥”

अर्थ:
मुझे द्वेष और राग (विरक्ति और आसक्ति) नहीं है। मुझे लोभ और मोह (लालच और भ्रम) नहीं है। न ही मुझे मद और मात्सर्य (अभिमान और ईर्ष्या) है। न मैं धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष हूँ। मेरा वास्तविक स्वरूप चिदानंद है, मैं शिव हूँ, मैं शिव हूँ।

श्लोक 4:
“न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खं
न मंत्रो न तीर्थं न वेदा न यज्ञा:।
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता
चिदानंद-रूपं शिवो-हं शिवो-हं॥ ४॥”

अर्थ:
मैं पुण्य या पाप नहीं हूँ। न ही मैं सुख और दुख हूँ। न मैं मंत्र, तीर्थ, वेद, या यज्ञ हूँ। मैं भोजन, भोज्य (खाया जाने वाला) और भोक्ता (खाने वाला) भी नहीं हूँ। मेरा वास्तविक स्वरूप चिदानंद है, मैं शिव हूँ, मैं शिव हूँ।

श्लोक 5:
“न मे मृत्यु न मे जातिभेद:
पिता नैव मे नैव माता न जन्मो।
न बन्धुर्न मित्र: गुरुर्नैव शिष्य:
चिदानंद-रूपं शिवो-हं शिवो-हं॥ ५॥”

अर्थ:
मुझे मृत्यु नहीं है, न ही मुझे जाति का भेद है। मेरा न कोई पिता है, न माता, न जन्म। न मुझे कोई बंधु (रिश्तेदार) है, न मित्र, न गुरु, न शिष्य। मेरा वास्तविक स्वरूप चिदानंद है, मैं शिव हूँ, मैं शिव हूँ।

श्लोक 6:
“अहं निर्विकल्पो निराकार रूपो
विभुत्त्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणां।
सदा मे समत्त्वं न मुक्तिर्न बंध:
चिदानंद रूपं शिवो-हं शिवो-हं॥ ६॥”

अर्थ:
मैं निर्विकल्प (बिना विकल्प के) और निराकार रूप हूँ। मैं सर्वत्र हूँ, और सर्व इन्द्रियों में व्याप्त हूँ। मैं सदा सम (समान) हूँ, मुझे न मुक्ति की आवश्यकता है, न बंधन की। मेरा वास्तविक स्वरूप चिदानंद है, मैं शिव हूँ, मैं शिव हूँ।

इन श्लोकों में, आत्मा को शरीर, मन, इन्द्रियाँ और सांसारिक बंधनों से परे मानते हुए, उसकी शुद्धता और दिव्यता को स्थापित किया गया है। यह अद्वैत वेदांत की महत्वपूर्ण शिक्षाओं को सरल और सुंदर तरीके से प्रस्तुत करता है।

Nirvana Shatakam in English

manobuddhyahaṅkāra cittāni nāhaṃ
na ca śrotrajihve na ca ghrāṇanetre .
na ca vyoma bhūmirna tejo na vāyuḥ
cidānandarūpaḥ śivo’ham śivo’ham ||1||

na ca prāṇasaṃjño na vai pañcavāyuḥ
na vā saptadhātuḥ na vā pañcakośaḥ .
na vākpāṇipādaṃ na copasthapāyu
cidānandarūpaḥ śivo’ham śivo’ham ||2||

na me dveṣarāgau na me lobhamohau
mado naiva me naiva mātsaryabhāvaḥ .
na dharmo na cārtho na kāmo na mokṣaḥ
cidānandarūpaḥ śivo’ham śivo’ham ||3||

na puṇyaṃ na pāpaṃ na saukhyaṃ na duḥkhaṃ
na mantro na tīrthaṃ na vedā na yajñāḥ .
ahaṃ bhojanaṃ naiva bhojyaṃ na bhoktā
cidānandarūpaḥ śivo’ham śivo’ham ||4||

na mṛtyurna śaṅkā na me jātibhedaḥ
pitā naiva me naiva mātā na janmaḥ .
na bandhurna mitraṃ gururnaiva śiṣyaṃ
cidānandarūpaḥ śivo’ham śivo’ham ||5||

ahaṃ nirvikalpo nirākārarūpo
vibhutvācca sarvatra sarvendriyāṇām .
na cāsaṅgataṃ naiva muktirna meyaḥ
cidānandarūpaḥ śivo’ham śivo’ham ||6||

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निर्वाण षटकम् के श्लोकों के संदर्भ और उनका महत्व:

आध्यात्मिक संदर्भ

आदि शंकराचार्य ने “निर्वाण षटकम्” की रचना आत्म-साक्षात्कार के अनुभव को व्यक्त करने के लिए की थी। यह श्लोक अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों को प्रकट करता है, जो इस विचारधारा का मूल है कि आत्मा (आत्मन) और परमात्मा (ब्रह्मन) एक ही हैं। इस रचना में आत्मा के स्वाभाविक गुणों का वर्णन है, जो नित्य, शुद्ध, बुद्ध और मुक्त हैं।

प्रमुख बिंदु

  1. स्वरूप का निरूपण: श्लोकों में आत्मा के शुद्ध स्वरूप को वर्णित किया गया है। इसमें यह स्पष्ट किया गया है कि आत्मा मन, बुद्धि, अहंकार, और इन्द्रियों से परे है।
  2. संवेदनाओं से परे: आत्मा को सभी सांसारिक संवेदनाओं जैसे द्वेष, राग, लोभ, मोह, मद, और मात्सर्य से मुक्त बताया गया है।
  3. धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष से मुक्त: आत्मा को किसी भी प्रकार की धार्मिकता, सांसारिक संपत्ति, इच्छाओं, और मोक्ष की धारणा से ऊपर बताया गया है।
  4. अनन्त और असीम: आत्मा का स्वरूप निराकार और असीमित है, जो सभी इन्द्रियों में व्याप्त है और सदा समान रहता है।
  5. मृत्यु और जन्म से मुक्त: आत्मा को मृत्यु और जन्म के चक्र से मुक्त बताया गया है, जिसमें किसी प्रकार का बंधन नहीं है।

व्याख्या

“निर्वाण षटकम्” का प्रत्येक श्लोक आत्म-साक्षात्कार की दिशा में साधक के मार्गदर्शन के लिए है। इन श्लोकों का अभ्यास और ध्यान करने से साधक अपने वास्तविक स्वरूप को पहचान सकता है और मोक्ष (मुक्ति) की प्राप्ति कर सकता है।

  1. पहला श्लोक आत्मा को मन, बुद्धि, अहंकार और इन्द्रियों से अलग बताता है।
  2. दूसरा श्लोक आत्मा को प्राण, वायु, धातु और कोशों से परे बताता है।
  3. तीसरा श्लोक आत्मा को द्वेष, राग, लोभ, मोह, मद और मात्सर्य से मुक्त बताता है।
  4. चौथा श्लोक आत्मा को पुण्य, पाप, सुख, दुख, मंत्र, तीर्थ, वेद और यज्ञ से परे बताता है।
  5. पांचवां श्लोक आत्मा को मृत्यु, जातिभेद, माता, पिता, जन्म, बंधु, मित्र, गुरु और शिष्य से मुक्त बताता है।
  6. छठा श्लोक आत्मा को निर्विकल्प, निराकार, सर्वत्र व्याप्त और सदा समान बताता है।

अद्वैत वेदांत का महत्व

अद्वैत वेदांत की शिक्षा यह है कि जीव और ब्रह्म एक ही हैं। “निर्वाण षटकम्” इसी सिद्धांत को सरल और प्रभावी तरीके से व्यक्त करता है। इसके माध्यम से साधक यह समझ पाता है कि आत्मा शुद्ध, शाश्वत और दिव्य है, और यह संसार के बंधनों से परे है।

साधना और ध्यान

इन श्लोकों का नियमित अभ्यास और ध्यान करने से साधक आत्म-साक्षात्कार की दिशा में अग्रसर हो सकता है। यह श्लोक व्यक्ति को आत्मा के वास्तविक स्वरूप की पहचान करने और संसार के मोह-माया से मुक्त होने में सहायक होते हैं।

“निर्वाण षटकम्” का अध्ययन और चिंतन आत्म-साक्षात्कार और मोक्ष की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह हमें याद दिलाता है कि हम शुद्ध चेतना और आनंद के स्वरूप हैं, जो सभी सांसारिक बंधनों से परे हैं।

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