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जानकी उवाच:
शक्तिस्वरूपे सर्वेषां सर्वाधारे गुणाश्रये ।
सदा शंकरयुक्ते च पतिं देहि नमोsस्तु ते ॥1॥

सृष्टिस्थित्यन्त रूपेण सृष्टिस्थित्यन्त रूपिणी ।
सृष्टिस्थियन्त बीजानां बीजरूपे नमोsस्तु ते ॥2॥

हे गौरि पतिमर्मज्ञे पतिव्रतपरायणे ।
पतिव्रते पतिरते पतिं देहि नमोsस्तु ते ॥3॥

सर्वमंगल मंगल्ये सर्वमंगल संयुते ।
सर्वमंगल बीजे च नमस्ते सर्वमंगले ॥4॥

सर्वप्रिये सर्वबीजे सर्व अशुभ विनाशिनी ।
सर्वेशे सर्वजनके नमस्ते शंकरप्रिये ॥5॥

परमात्मस्वरूपे च नित्यरूपे सनातनि ।
साकारे च निराकारे सर्वरूपे नमोsस्तु ते ॥6॥

क्षुत् तृष्णेच्छा दया श्रद्धा निद्रा तन्द्रा स्मृति: क्षमा ।
एतास्तव कला: सर्वा: नारायणि नमोsस्तु ते ॥7॥

लज्जा मेधा तुष्टि पुष्टि शान्ति संपत्ति वृद्धय: ।
एतास्त्व कला: सर्वा: सर्वरूपे नमोsस्तु ते ॥8॥

दृष्टादृष्ट स्वरूपे च तयोर्बीज फलप्रदे ।
सर्वानिर्वचनीये च महामाये नमोsस्तु ते ॥9॥

शिवे शंकर सौभाग्ययुक्ते सौभाग्यदायिनि ।
हरिं कान्तं च सौभाग्यं देहि देवी नमोsस्तु ते ॥10॥

स्तोत्रणानेन या: स्तुत्वा समाप्ति दिवसे शिवाम् ।
नमन्ति परया भक्त्या ता लभन्ति हरिं पतिम् ॥11॥

इह कान्तसुखं भुक्त्वा पतिं प्राप्य परात्परम् ।
दिव्यं स्यन्दनमारुह्य यान्त्यन्ते कृष्णसंनिधिम् ॥12॥

जानकी उवाच: शक्तिस्वरूपा की स्तुति

शक्तिस्वरूपा का महत्त्व

सर्वाधार स्वरूपा

श्लोक 1
शक्तिस्वरूपे सर्वेषां सर्वाधारे गुणाश्रये।
सदा शंकरयुक्ते च पतिं देहि नमोऽस्तु ते॥

हे शक्ति स्वरूपा, जो सभी जीवों का आधार हैं, जिनमें सभी गुण विद्यमान हैं, आप सदा शिव के साथ स्थित रहती हैं। कृपया हमें ऐसा पति प्रदान करें। आपको नमस्कार है।

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सृष्टि, स्थिति और संहार की देवी

सृष्टि का बीज रूप

श्लोक 2
सृष्टिस्थित्यन्त रूपेण सृष्टिस्थित्यन्त रूपिणी।
सृष्टिस्थियन्त बीजानां बीजरूपे नमोऽस्तु ते॥

आप सृष्टि, स्थिति और संहार की रूपिणी हैं। आप इन सभी के बीज स्वरूप हैं। आपको नमस्कार है।

पतिव्रता स्त्री के लिए आशीर्वाद

पतिव्रता धर्म की जानकार

श्लोक 3
हे गौरि पतिमर्मज्ञे पतिव्रतपरायणे।
पतिव्रते पतिरते पतिं देहि नमोऽस्तु ते॥

हे गौरी, आप पतिव्रता धर्म की मर्मज्ञा और पतिव्रता स्त्रियों की रक्षक हैं। कृपया हमें ऐसा पति प्रदान करें। आपको नमस्कार है।

सर्वमंगल की देवी

सभी मंगल कार्यों की अधिष्ठात्री

श्लोक 4
सर्वमंगल मंगल्ये सर्वमंगल संयुते।
सर्वमंगल बीजे च नमस्ते सर्वमंगले॥

आप सभी मंगल कार्यों की मंगलकारी हैं, आप सभी शुभ और मंगल का बीज हैं। आपको नमस्कार है, हे सर्वमंगले।

सभी की प्रिय देवी

समस्त अशुभ का नाश

श्लोक 5
सर्वप्रिये सर्वबीजे सर्व अशुभ विनाशिनी।
सर्वेशे सर्वजनके नमस्ते शंकरप्रिये॥

आप सभी की प्रिय हैं, सभी बीजों की स्वामिनी हैं और सभी अशुभों का नाश करने वाली हैं। हे शिव की प्रिय पत्नी, आपको नमस्कार है।

परमात्मा की सनातनी स्वरूपा

सभी रूपों में विद्यमान

श्लोक 6
परमात्मस्वरूपे च नित्यरूपे सनातनि।
साकारे च निराकारे सर्वरूपे नमोऽस्तु ते॥

आप परमात्मा की स्वरूपा हैं, नित्य हैं, सनातनी हैं। आप साकार और निराकार दोनों ही रूपों में विद्यमान हैं। आपको नमस्कार है।

देवी की कलाएँ

क्षुधा, तृष्णा और अन्य कलाएँ

श्लोक 7
क्षुत् तृष्णेच्छा दया श्रद्धा निद्रा तन्द्रा स्मृति: क्षमा।
एतास्तव कला: सर्वा: नारायणि नमोऽस्तु ते॥

क्षुधा (भूख), तृष्णा (प्यास), इच्छा, दया, श्रद्धा, निद्रा, तंद्रा, स्मृति और क्षमा – ये सभी आपकी कलाएँ हैं। हे नारायणी, आपको नमस्कार है।

देवी की मानसिक शक्तियाँ

श्लोक 8
लज्जा मेधा तुष्टि पुष्टि शान्ति संपत्ति वृद्धय:।
एतास्त्व कला: सर्वा: सर्वरूपे नमोऽस्तु ते॥

लज्जा, मेधा, तुष्टि, पुष्टि, शांति, संपत्ति और वृद्धि – ये सभी आपकी ही कलाएँ हैं। हे सर्वरूपिणी, आपको नमस्कार है।

दृष्ट और अदृष्ट स्वरूपा

बीज और फल प्रदाता

श्लोक 9
दृष्टादृष्ट स्वरूपे च तयोर्बीज फलप्रदे।
सर्वानिर्वचनीये च महामाये नमोऽस्तु ते॥

आप दृष्ट और अदृष्ट दोनों स्वरूपों में स्थित हैं और उनके बीज और फल की प्रदाता हैं। हे महामाया, आपको नमस्कार है।

सौभाग्य प्रदान करने वाली देवी

शिव के साथ सौभाग्य का आशीर्वाद

श्लोक 10
शिवे शंकर सौभाग्ययुक्ते सौभाग्यदायिनि।
हरिं कान्तं च सौभाग्यं देहि देवी नमोऽस्तु ते॥

हे शिवे, आप शंकर के साथ सौभाग्ययुक्त हैं और सौभाग्य प्रदान करने वाली हैं। कृपया हमें हरि जैसा सौभाग्यशाली पति प्रदान करें। हे देवी, आपको नमस्कार है।

स्तोत्र पाठ का फल

शिवा की स्तुति से पति की प्राप्ति

श्लोक 11
स्तोत्रणानेन या: स्तुत्वा समाप्ति दिवसे शिवाम्।
नमन्ति परया भक्त्या ता लभन्ति हरिं पतिम्॥

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जो स्त्री इस स्तोत्र का पाठ करती है और शिवा (पार्वती) की स्तुति करती है, उसे भगवान हरि जैसा पति प्राप्त होता है।

पार्थिव सुख और दिव्य यात्रा

श्लोक 12
इह कान्तसुखं भुक्त्वा पतिं प्राप्य परात्परम्।
दिव्यं स्यन्दनमारुह्य यान्त्यन्ते कृष्णसंनिधिम्॥

इस लोक में पति का सुख भोगकर, परात्पर पतिदेव की प्राप्ति कर, अंत में दिव्य रथ पर आरूढ़ होकर श्रीकृष्ण की निकटता प्राप्त होती है।

जानकी उवाच: स्तोत्र का महात्म्य

स्तोत्र का अर्थ और उद्देश्य

देवी की शक्ति और अनुग्रह

“जानकी उवाच” के इन श्लोकों में माता सीता देवी शक्ति की स्तुति करती हैं। इन श्लोकों के माध्यम से वे देवी पार्वती से शक्ति, सौभाग्य, और भक्ति की याचना करती हैं। यह स्तोत्र न केवल शक्ति की स्तुति है, बल्कि स्त्रियों के लिए एक आदर्श प्रार्थना भी है, जिससे वे अपने जीवन में सुख, शांति और सौभाग्य की कामना कर सकती हैं।

स्तोत्र का पाठ और फल

इन श्लोकों का नियमित पाठ करने से स्त्रियों को अपने पति के प्रति स्नेह, समर्पण और कर्तव्यपालन में शक्ति मिलती है। जो भी स्त्री इस स्तोत्र का विधिपूर्वक पाठ करती है, उसे ईश्वर का आशीर्वाद मिलता है और वह इस संसार में सुख और परलोक में मोक्ष की प्राप्ति करती है।

स्तोत्र का विस्तार

शक्ति का सर्वव्यापी स्वरूप

सर्वत्र व्याप्त देवी

शक्ति की महिमा ऐसी है कि वह सृष्टि के कण-कण में व्याप्त हैं। वे सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और संहार की अधिष्ठात्री हैं। देवी के बिना कोई कार्य संभव नहीं है। वे ही सबकी उत्पत्ति और अंत का कारण हैं। इस स्तोत्र में देवी को सर्वाधार और सर्वव्यापी कहा गया है।

अदृष्ट और दृष्ट का आधार

देवी न केवल दृश्य जगत की रचयिता हैं, बल्कि अदृश्य जगत की भी अधिष्ठात्री हैं। वे हर बीज का रूप हैं और हर फल का कारण हैं। उनका स्वरूप इतना व्यापक है कि उसे शब्दों में बयान करना असंभव है।

पतिव्रता स्त्रियों का आदर्श

पतिव्रता धर्म की स्थापना

इस स्तोत्र में देवी को पतिव्रता धर्म का पालन करने वाली और सभी पतिव्रता स्त्रियों की संरक्षिका बताया गया है। वह उन स्त्रियों के लिए आदर्श हैं जो अपने पति के प्रति समर्पित रहती हैं। उन्हें इस स्तोत्र का पाठ करके देवी से अपने जीवन में सुख और सौभाग्य की कामना करनी चाहिए।

सौभाग्य की देवी

देवी शक्ति को सौभाग्य प्रदान करने वाली बताया गया है। जो स्त्री देवी की सच्चे मन से आराधना करती है, उसे जीवन में सभी प्रकार का सौभाग्य प्राप्त होता है। उसकी सभी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं और उसे हर प्रकार का सुख और शांति प्राप्त होती है।

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देवी की कलाएँ

विविध कलाओं की अधिष्ठात्री

देवी की कई प्रकार की कलाएँ हैं जैसे क्षुधा (भूख), तृष्णा (प्यास), श्रद्धा, दया, स्मृति, क्षमा आदि। यह सभी कलाएँ देवी के ही अंश हैं, जो मनुष्य के जीवन को संतुलित और सार्थक बनाती हैं। देवी के इन स्वरूपों का ध्यान करने से मनुष्य के मन में शांति और संतोष का भाव उत्पन्न होता है।

मानसिक और शारीरिक शक्ति का स्रोत

देवी की कलाओं में लज्जा, मेधा (बुद्धिमत्ता), तुष्टि (संतोष), पुष्टि (स्वास्थ्य), शांति, संपत्ति और वृद्धि भी शामिल हैं। ये सभी कलाएँ जीवन को सुखमय और उन्नत बनाने में सहायक हैं। इनका ध्यान और आराधना करने से व्यक्ति मानसिक और शारीरिक रूप से सशक्त बनता है।

स्तोत्र पाठ का महत्व

स्त्रियों के लिए विशेष फल

इस स्तोत्र के अंत में बताया गया है कि जो स्त्री इस स्तोत्र का पाठ करती है और देवी शिवा की पूजा करती है, उसे पति का विशेष स्नेह और प्रेम प्राप्त होता है। उसके जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है और वह हर प्रकार के कष्टों से मुक्त रहती है।

पार्थिव और अलौकिक लाभ

इस लोक में सुख का अनुभव करने के बाद, अंत में वह स्त्री दिव्य रथ पर सवार होकर भगवान कृष्ण के सान्निध्य को प्राप्त करती है। यह स्तोत्र न केवल पार्थिव सुख की कामना करता है, बल्कि अलौकिक मोक्ष की प्राप्ति का भी मार्ग दिखाता है।

उपसंहार

शक्ति की महिमा और कृपा

यह स्तोत्र देवी शक्ति की महिमा को समर्पित है, जो सम्पूर्ण सृष्टि की जननी और पालनकर्ता हैं। उनका स्मरण और आराधना करने से जीवन में हर प्रकार की समृद्धि और सुख प्राप्त होता है। इस स्तोत्र का पाठ न केवल स्त्रियों के लिए, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए लाभकारी है, जो अपने जीवन में शक्ति और सौभाग्य की कामना करता है।

देवी की शरण में

देवी की कृपा से ही जीवन के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं। जो व्यक्ति सच्चे मन से उनकी शरण में आता है, उसे कभी किसी भी प्रकार की बाधा का सामना नहीं करना पड़ता। देवी की आराधना और इस स्तोत्र का पाठ मन, वचन और कर्म से शुद्धि प्रदान करता है और जीवन को मंगलमय बनाता है।

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