आयो फागण को त्यौहार,
नाचे ठुमक ठुमक दातार,
सागे नाचे श्याम को लिलो,
छम छम भक्ता की भरमार,
आयो रंगीलो फागणियो,
सज के बैठ्यो है सांवरियो,
म्हारो लखदातार ॥ज्यो फागण निडे आवे,
म्हाने कुछ भी नहीं सुहावे,
आंख्या में नींदड़ली घुल घुल बाबा,
पाछी ही उड़ जावे,
आयो रंगीलो फागणियो,
सज के बैठ्यो है सांवरियो,
म्हारो लखदातार ॥
इत्तर की खुशबु भारी,
खाटू का श्याम बिहारी,
तेरो रूप सलोनो देख सांवरा,
जाऊं मैं बलिहारी,
आयो रंगीलो फागणियो,
सज के बैठ्यो है सांवरियो,
म्हारो लखदातार ॥
सेवक दूर दूर से आवे,
फागण में रह नहीं पावे,
पाछा जाता मुड़ मुड़ देख थाने,
म्हारो मन घबरावे,
आयो रंगीलो फागणियो,
सज के बैठ्यो है सांवरियो,
म्हारो लखदातार ॥
कोई रंग गुलाल उड़ावे,
संग चंग धमाल मचावे,
माहि के संग होली खेल सांवरो,
सांचो प्रेम लुटावे,
आयो रंगीलो फागणियो,
सज के बैठ्यो है सांवरियो,
म्हारो लखदातार ॥
आयो फागण को त्यौहार,
नाचे ठुमक ठुमक दातार,
सागे नाचे श्याम को लिलो,
छम छम भक्ता की भरमार,
आयो रंगीलो फागणियो,
सज के बैठ्यो है सांवरियो,
म्हारो लखदातार ॥
आयो फागण को त्यौहार: भजन – अर्थ एवं भावार्थ
फागण का त्यौहार भारतीय संस्कृति और भक्ति परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस भजन में होली के उमंगभरे उत्सव को, भगवान श्याम (कृष्ण) की दिव्यता को, और भक्त-भगवान के बीच के गहन प्रेम और भक्ति को एक सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया गया है। इसे गहराई से समझने के लिए हर पंक्ति में छिपे आध्यात्मिक और भावनात्मक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
आयो फागण को त्यौहार, नाचे ठुमक ठुमक दातार
शब्दार्थ:
- फागण: यह हिंदू कैलेंडर का महीना है जिसमें होली का त्यौहार मनाया जाता है।
- ठुमक ठुमक: उल्लासपूर्ण नृत्य का प्रतीक।
- दाता: यहां भगवान को दाता कहा गया है, जो अपने भक्तों को आनंद और आशीर्वाद देते हैं।
गहराई से अर्थ:
फागण का आगमन आनंद और उत्सव का प्रतीक है। “दातार” यानी भगवान कृष्ण खुद अपने भक्तों के साथ इस त्यौहार में सम्मिलित होते हैं। उनके नृत्य से भक्तों का मन प्रसन्न होता है, और यह पंक्ति संकेत देती है कि भगवान न केवल दूरस्थ आराधना के लिए हैं, बल्कि वे स्वयं भक्तों की खुशी में शामिल होते हैं।
- आध्यात्मिक संदेश: यह भक्ति और भगवान के बीच के जीवंत संबंध को दर्शाता है, जहाँ भगवान भक्तों की खुशी में भागीदारी करते हैं।
- मानसिक प्रभाव: यह विचार कि भगवान भक्तों के साथ “ठुमक ठुमक” नाच रहे हैं, भगवान को एक सजीव और सजीवता से भरपूर रूप में प्रस्तुत करता है।
सागे नाचे श्याम को लिलो, छम छम भक्ता की भरमार
शब्दार्थ:
- सागे: नज़दीक।
- लिलो: प्रियतम (यहाँ भगवान कृष्ण का सजीव और मोहक रूप)।
- छम छम: नृत्य के दौरान उत्पन्न होने वाली मधुर ध्वनि।
- भक्ता की भरमार: भक्तों की बड़ी संख्या।
गहराई से अर्थ:
यह पंक्ति भगवान और उनके भक्तों के बीच की गहन ऊर्जा को दर्शाती है। “श्याम को लिलो” भक्तों के हृदय में उनके प्रेम और करुणा की छवि को सामने लाता है। भगवान के चारों ओर भक्तों की भीड़ उमंग और श्रद्धा से भरी हुई है।
- आध्यात्मिक संदेश: यह बताता है कि जब भक्त सच्चे हृदय से भगवान का आह्वान करते हैं, तो भगवान उनके बीच प्रकट होकर उनका साथ देते हैं।
- समाजशास्त्रीय पहलू: भक्त-समाज का एकत्रित होना, सामूहिक भक्ति का महत्व और उसमें छुपा सामाजिक सामंजस्य।
आयो रंगीलो फागणियो, सज के बैठ्यो है सांवरियो, म्हारो लखदातार
शब्दार्थ:
- रंगीलो फागणियो: रंगों से भरा हुआ फागण (होली)।
- सांवरो: भगवान कृष्ण, जिनका सांवला रूप सुंदरता और आकर्षण का प्रतीक है।
- लखदातार: दाता जो अपने अनगिनत आशीर्वादों से भक्तों को प्रसन्न करते हैं।
गहराई से अर्थ:
रंगों का त्यौहार भगवान के प्रेम और करुणा का प्रतीक बनता है। भगवान सांवरा अपने अलौकिक सौंदर्य और दिव्यता के साथ सजकर भक्तों के बीच विराजमान हैं। “लखदातार” शब्द उनके अनंत कृपा और असीम आशीर्वाद को इंगित करता है।
- आध्यात्मिक संदेश: यह दर्शाता है कि भगवान का प्रत्येक भक्त के जीवन में एक अलग ही रंग है, जो उनकी कृपा और प्रेम का स्वरूप है।
- भावनात्मक पहलू: यह पंक्ति भगवान की कृपा को महसूस करने का निमंत्रण है।
ज्यो फागण निडे आवे, म्हाने कुछ भी नहीं सुहावे
शब्दार्थ:
- निडे: निकट।
- सुहावे: मन को भाने वाला।
गहराई से अर्थ:
फागण के आने से पहले ही भक्त का मन भगवान और उनके त्यौहार के आनंद में लीन हो जाता है। सांसारिक चीजें भक्त को आकर्षित करना बंद कर देती हैं। यह पंक्ति भक्त की उन गहन भावनाओं को व्यक्त करती है, जो उसे केवल भगवान की ओर खींचती हैं।
- आध्यात्मिक संदेश: यह भजन ध्यान दिलाता है कि सच्चा भक्त केवल भगवान में आनंदित होता है, और कोई अन्य सांसारिक सुख उसे तृप्त नहीं कर सकता।
- आत्मा और परमात्मा का संबंध: यह भावना आत्मा के अपने स्रोत (परमात्मा) की ओर खिंचाव को दर्शाती है।
आंख्या में नींदड़ली घुल घुल बाबा, पाछी ही उड़ जावे
शब्दार्थ:
- नींदड़ली घुल घुल: नींद का धीरे-धीरे कम होना।
- पाछी ही उड़ जावे: पूरी तरह से उड़ जाना।
गहराई से अर्थ:
भक्त का मन इतना उत्साहित है कि उसकी नींद उड़ जाती है। यह प्रतीकात्मक रूप से दर्शाता है कि भक्त को भगवान के प्रति इतनी आसक्ति है कि उसकी हर सांस और हर विचार भगवान से जुड़ा हुआ है। सांसारिक कार्यों और आराम के लिए कोई स्थान नहीं बचता।
- आध्यात्मिक संदेश: यह जीवन में जागरूकता और चेतना का प्रतीक है, जहाँ भगवान का प्रेम और ध्यान सभी अन्य इच्छाओं को मिटा देता है।
- भावनात्मक पहलू: यह पंक्ति यह भी बताती है कि सच्ची भक्ति में थकान का अनुभव नहीं होता।
इत्तर की खुशबु भारी, खाटू का श्याम बिहारी
शब्दार्थ:
- इत्तर: सुगंध।
- खाटू का श्याम बिहारी: खाटू नगर के भगवान कृष्ण, जो अपने प्रेम और लीलाओं के लिए प्रसिद्ध हैं।
गहराई से अर्थ:
यहाँ भगवान की दिव्यता को उनकी सुगंध से तुलना की गई है। भगवान की उपस्थिति से वातावरण सुगंधित हो जाता है। यह पंक्ति भगवान की कृपा और उनकी आभा की ओर इशारा करती है, जो भक्तों को मोह लेती है।
- आध्यात्मिक संदेश: भगवान की सुगंध भौतिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक है, जो भक्तों के मन और आत्मा को शुद्ध करती है।
- ध्यान और भक्ति का प्रभाव: यह भजन ध्यान दिलाता है कि भगवान की स्मृति और उनकी उपस्थिति से ही जीवन सुगंधित हो जाता है।
तेरो रूप सलोनो देख सांवरा, जाऊं मैं बलिहारी
शब्दार्थ:
- रूप सलोनो: आकर्षक और सुंदर रूप।
- बलिहारी: बलिदान के लिए तैयार होना।
गहराई से अर्थ:
भगवान का रूप ऐसा है कि भक्त उसकी ओर खिंच जाता है और उसे देखता ही रहना चाहता है। यहां “बलिहारी” शब्द केवल शारीरिक बलिदान का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह भगवान के लिए अपने अहंकार, इच्छाओं और सांसारिक बंधनों को त्यागने की इच्छा का संकेत देता है।
- आध्यात्मिक संदेश: भगवान के प्रति समर्पण का सबसे बड़ा स्वरूप अपने आप को उनके चरणों में समर्पित कर देना है।
- भक्ति का चरम: यह भजन आत्मसमर्पण की पराकाष्ठा को व्यक्त करता है।
सेवक दूर दूर से आवे, फागण में रह नहीं पावे
शब्दार्थ:
- सेवक: भक्त, जो भगवान की सेवा में समर्पित हैं।
- दूर दूर से आवे: भगवान के दर्शन के लिए लंबी यात्राएँ करके आना।
- फागण में रह नहीं पावे: फागण के महीने में भगवान के दर्शन के बिना चैन न पा सकना।
गहराई से अर्थ:
यह पंक्ति उन भक्तों की भावना को प्रकट करती है, जो भगवान श्याम के दर्शन के लिए देश-विदेश से खाटू नगर आते हैं। यह केवल एक भौतिक यात्रा नहीं है, बल्कि उनकी आत्मा का भगवान के प्रति आकर्षण और समर्पण है।
- आध्यात्मिक संदेश: भगवान का सान्निध्य प्राप्त करने की तीव्र इच्छा भक्त के जीवन का मुख्य उद्देश्य है।
- भावनात्मक पहलू: यह दर्शाता है कि भगवान से जुड़ने की लालसा हर भौतिक बाधा को पार कर सकती है।
पाछा जाता मुड़ मुड़ देख थाने, म्हारो मन घबरावे
शब्दार्थ:
- पाछा जाता: लौटते समय।
- मुड़ मुड़ देख थाने: बार-बार भगवान की ओर देखकर लौटना।
- मन घबरावे: दिल बेचैन हो जाना।
गहराई से अर्थ:
भगवान के दर्शन के बाद भक्त जब वापस लौटता है, तो उसका मन भगवान से दूर जाने के विचार से व्याकुल हो जाता है। वह बार-बार उनकी छवि को याद करने के लिए पीछे मुड़कर देखता है।
- आध्यात्मिक संदेश: भगवान से बिछड़ने की व्यथा दर्शाती है कि सच्ची भक्ति में केवल भगवान के साथ रहने की लालसा होती है।
- मनोवैज्ञानिक प्रभाव: भक्त का मन भगवान के प्रति इतना आसक्त हो जाता है कि उसे उनके बिना कोई भी अन्य चीज़ भाती नहीं है।
कोई रंग गुलाल उड़ावे, संग चंग धमाल मचावे
शब्दार्थ:
- रंग गुलाल: होली में उपयोग किए जाने वाले रंग और गुलाल।
- चंग: एक पारंपरिक वाद्य यंत्र।
- धमाल मचावे: उत्सव का आनंद और धूमधाम।
गहराई से अर्थ:
यहाँ भजन होली के उत्सव का जीवंत चित्रण करता है, जहाँ भक्त भगवान के साथ रंग खेलते हैं और आनंद में मग्न होते हैं। “चंग” के माध्यम से पारंपरिक होली की लोक संस्कृति और संगीत की छवि प्रकट होती है।
- आध्यात्मिक संदेश: यह दर्शाता है कि भगवान के साथ होली खेलना, यानी उनके साथ रंग और प्रेम का उत्सव मनाना, सच्चा आध्यात्मिक आनंद है।
- सामाजिक संदर्भ: होली जैसे उत्सवों में सामूहिक भक्ति और आनंद, समाज को एकजुट करने का काम करते हैं।
माहि के संग होली खेल सांवरो, सांचो प्रेम लुटावे
शब्दार्थ:
- माहि: यहाँ यह भक्तों का प्रतीक है।
- सांचो प्रेम: सच्चा प्रेम।
- लुटावे: बाँटना।
गहराई से अर्थ:
भगवान श्याम (कृष्ण) अपने भक्तों के साथ होली खेलते हैं और प्रेम की बौछार करते हैं। यह खेल केवल बाहरी रंगों का नहीं है, बल्कि यह प्रेम, करुणा और भक्ति के रंगों का है, जिसे भगवान अपने भक्तों पर लुटाते हैं।
- आध्यात्मिक संदेश: भगवान की भक्ति का अर्थ केवल अनुष्ठान नहीं है, बल्कि उनके साथ आत्मिक प्रेम और सच्चे संबंध का अनुभव करना है।
- भावनात्मक पहलू: भक्त के जीवन में भगवान के प्रेम का रंग भरने की प्रक्रिया को प्रतीकात्मक रूप से दर्शाया गया है।
आयो फागण को त्यौहार, नाचे ठुमक ठुमक दातार
गहराई से अर्थ (पुनरावलोकन):
भजन के अंत में पहले पंक्तियों की पुनरावृत्ति, भक्त और भगवान के बीच के प्रेम और ऊर्जा को पुनः जागृत करती है। यह दर्शाता है कि फागण केवल एक त्यौहार नहीं है, बल्कि यह भगवान के साथ मिलकर भक्ति और प्रेम का उत्सव मनाने का प्रतीक है।
- चक्र का पूर्ण होना: भजन के अंत में शुरुआत की पंक्तियों को दोहराना भक्त और भगवान के बीच संबंध की निरंतरता को दर्शाता है। यह प्रेम का एक अंतहीन चक्र है।
भजन का समग्र संदेश
- प्रेम और भक्ति का पर्व: यह भजन होली के माध्यम से भक्त और भगवान के बीच के प्रेम को दर्शाता है।
- सामूहिकता का महत्व: भगवान के प्रति भक्ति व्यक्तिगत और सामूहिक, दोनों स्तरों पर प्रकट होती है।
- भगवान के साथ सीधा संबंध: भजन यह भी दर्शाता है कि भगवान अपने भक्तों के साथ हर पल आनंद और प्रेम साझा करने के लिए तत्पर रहते हैं।
- भक्ति का चरम: सच्चा भक्त सांसारिक सुखों को त्यागकर केवल भगवान के सान्निध्य में ही पूर्ण आनंद का अनुभव करता है।
यह भजन न केवल एक गीत है, बल्कि यह भक्ति, प्रेम और आध्यात्मिक चेतना का एक अद्भुत स्रोत है। यह भगवान के साथ भक्त के संबंधों की गहराई को समझने और महसूस करने का अवसर प्रदान करता है।