- – यह गीत भगवान कृष्ण की भक्ति में लिखा गया है, जिसमें भक्त उनकी सहायता और उद्धार की प्रार्थना करता है।
- – गीत में भवसागर (जन्म-मरण के संसार) से पार पाने की विनती की गई है।
- – कृष्ण को मुरलीधर, पीताम्बरधारी और बनवारी के रूप में संबोधित किया गया है।
- – भक्त कृष्ण से दया और दृष्टि की मांग करता है ताकि वह जीवन की कठिनाइयों से मुक्त हो सके।
- – मधुबन की मुरली की तान सुनाने और मन की प्यास बुझाने की भी प्रार्थना की गई है।
- – पूरे गीत में कृष्ण से पार लगाने और जीवन में सुख-शांति देने की गहरी श्रद्धा व्यक्त की गई है।

अब तो भव से नाव हमारी,
पार करो मेरे श्याम,
पार करो मेरे श्याम।।
तर्ज – मैं तो तुम संग नैन मिलाके।
हे बनवारी कृष्ण मुरारी,
विनती सुनलो आज हमारी,
मोर मुकुट पीताम्बर धारी,
हाथ बढाकर भक्तो का,
उद्धार करो मेरे श्याम,
पार करो मेरे श्याम,
पार करो मेरे श्याम।।
अब तो भव से नांव हमारी,
पार करो मेरे श्याम,
पार करो मेरे श्याम।।
दुर्योधन का मान घटाए,
साग विदुर घर जाके खाए,
द्रोपती का तुम चिर बढ़ाए,
दृष्टि दया की हम पर भी,
एक बार करो मेरे श्याम,
पार करो मेरे श्याम,
पार करो मेरे श्याम।।
अब तो भव से नांव हमारी,
पार करो मेरे श्याम,
पार करो मेरे श्याम।।
आ मुरली की तान सुना दो,
मधुबन सारा फिर गूंजा दो,
मेरे मन की प्यास बुझा दो,
मुरली से फिर अमृत की,
बौछार करो मेरे श्याम,
पार करो मेरे श्याम,
पार करो मेरे श्याम।।
अब तो भव से नांव हमारी,
पार करो मेरे श्याम,
पार करो मेरे श्याम।।
अब तो भव से नाव हमारी,
पार करो मेरे श्याम,
पार करो मेरे श्याम।।
