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- – यह कविता पारंपरिक ग्रामीण जीवन और समुदाय की खुशियों को दर्शाती है, जहाँ सभी लोग मिलकर खेलते और त्योहार मनाते हैं।
- – दादा जी और बाबाजी जैसे बुजुर्गों का सम्मान और उनकी भूमिका को महत्वपूर्ण बताया गया है।
- – मिठाई बांटना और साथ में मिलकर उत्सव मनाना सामाजिक एकता और प्रेम का प्रतीक है।
- – बावड़िया में बैठकर हुक्म चलाना और भक्तों के कार्यों का समन्वय करना सामुदायिक नेतृत्व को दर्शाता है।
- – कविता में स्थानीय संस्कृति, परंपराओं और आपसी सहयोग की भावना को उजागर किया गया है।

औरा के आंगण काई खेलो,
म्हारा जिन्द बाबा,
म्हारा आंगणिया में खेलो जी।।
दादा जी मनावे थांका,
बाबाजी जी मनावे,
बनडी बुलावे बेगा बेगा आओ जी,
औरां के आंगण काई खेलो,
म्हारा जिन्द बाबा,
म्हारा आंगणिया में खेलो जी।।
औरा क आंगण मिठाई बांटे,
म्हारा आंगणिया बाटो जी,
औरा क आंगण काई,
अन्तर की शीशियां लावे,
म्हारा आंगणिया लाओ जी,
औरां के आंगण काई खेलो,
म्हारा जिन्द बाबा,
म्हारा आंगणिया में खेलो जी।।
बावडिया में बैठ्या बैठया,
हुकम चलावे,
भगतां का कारज बेगा सारो जी,
चुतरा चुनवा ड्यू थांके,
गादिया तो लगवा द्यु,
चेतन वाली पाळणी मंगवाड्यू जी,
औरां के आंगण काई खेलो,
म्हारा जिन्द बाबा,
म्हारा आंगणिया में खेलो जी।।
औरा के आंगण काई खेलो,
म्हारा जिन्द बाबा,
म्हारा आंगणिया में खेलो जी।।
प्रेषक – रामस्वरूप लववंशी
8107512367
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