मंत्र

अयमात्मा ब्रह्म महावाक्य: Ayamatma Brahma

धर्म दर्शन वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें Join Now

अयमात्मा ब्रह्म महावाक्य in Hindi/Sanskrit

अयमात्मा ब्रह्म एक महावाक्य है जो उपनिषदों में से एक है, और यह वेदांत दर्शन के अंतर्गत आता है। इसे मुख्य रूप से मंडूक्य उपनिषद से लिया गया है। इस महावाक्य का शाब्दिक अर्थ है “यह आत्मा ब्रह्म है।”

इसका विवरण:

  1. अयम् (अयम): “अयम्” का अर्थ है “यह,” जो कि निकटवर्ती वस्तु या व्यक्ति की ओर संकेत करता है। इस संदर्भ में, “यह” का संकेत आत्मा या स्वयं की ओर है।
  2. आत्मा: “आत्मा” का अर्थ है “स्वयं,” “स्वरूप,” या “आत्मस्वरूप।” यह व्यक्ति की अंतर्निहित चेतना को दर्शाता है, जो शरीर, मन और बुद्धि से परे है।
  3. ब्रह्म: “ब्रह्म” का अर्थ है “असीम,” “अनन्त,” और “सर्वव्यापी परमसत्ता।” वेदांत में, ब्रह्म को सत्य, चेतना, और अनंत (सच्चिदानंद) के रूप में जाना जाता है, जो सब कुछ का मूल स्रोत और आधार है।

महावाक्य का सार:

इस महावाक्य में यह बताया गया है कि जो आत्मा है, वह वास्तव में वही परमसत्ता ब्रह्म है। आत्मा और ब्रह्म के बीच कोई अंतर नहीं है। यह उपदेश अद्वैत वेदांत के मूलभूत सिद्धांत को प्रकट करता है, जो कि कहता है कि आत्मा और ब्रह्म एक ही हैं, और इस पहचान को जानना ही मोक्ष या मुक्ति का मार्ग है।

अयमात्मा ब्रह्म महावाक्य का उद्देश्य व्यक्ति को यह अनुभव कराना है कि उसकी सच्ची पहचान उसके शरीर, मन, और अन्य भौतिक अवस्थाओं से परे है, और वह स्वयं ब्रह्म के साथ एकाकार है। जब व्यक्ति इस सत्य को आत्मसात कर लेता है, तो उसे आत्मज्ञान प्राप्त होता है, जो उसे संसार के सभी बंधनों से मुक्त कर देता है।

यह भी जानें:  श्री युगलाष्टकम् - कृष्ण प्रेममयी राधा: Yugal Ashtakam - Krishna Premayi Radha (Lyrics, Meaning, Hindi, English, PDF)

अयमात्मा ब्रह्म महावाक्य (Ayamatma Brahma)

महावाक्य “अयमात्मा ब्रह्म” वेदांत दर्शन के चार प्रमुख महावाक्यों में से एक है। इसे अद्वैत वेदांत का केंद्रीय सिद्धांत माना जाता है, जिसका उद्देश्य आत्मा और ब्रह्म की एकता को प्रकट करना है। यह महावाक्य व्यक्ति को यह समझने के लिए प्रेरित करता है कि उसका आत्मस्वरूप ही परमात्मा है। इस महावाक्य के गहरे अर्थ को समझने के लिए कुछ और बिंदुओं पर विचार किया जा सकता है:

1. अद्वैत वेदांत का सिद्धांत:

  • अद्वैत वेदांत में, “अद्वैत” का अर्थ है “अद्वितीय” या “द्वैतहीन,” अर्थात जहाँ कोई द्वैत या भिन्नता नहीं है। इस दर्शन में, ब्रह्म ही एकमात्र सत्य है, और संसार के सभी रूप, नाम, और क्रियाएँ माया के कारण हैं, जो अस्थायी और मिथ्या हैं। “अयमात्मा ब्रह्म” महावाक्य इस अद्वैतता को स्थापित करता है कि आत्मा और ब्रह्म अलग-अलग नहीं हैं, बल्कि एक ही हैं।

2. स्वयं की पहचान:

  • यह महावाक्य व्यक्ति को यह एहसास दिलाने का प्रयास करता है कि उसकी वास्तविक पहचान उसके शरीर, मन, बुद्धि, और अहंकार से परे है। आत्मा, जो कि चेतना का स्वरूप है, अनन्त और असीम है। इसे जानने का अर्थ है कि व्यक्ति स्वयं ब्रह्म है, जो संपूर्ण जगत का स्रोत है।

3. आत्मज्ञान और मोक्ष:

  • इस महावाक्य का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति को आत्मज्ञान की ओर ले जाना है। आत्मज्ञान का अर्थ है आत्मा की वास्तविक प्रकृति को जानना और समझना कि वह ब्रह्म के साथ एकाकार है। जब व्यक्ति इस सत्य को समझ लेता है, तो वह संसार के मोह-माया और बंधनों से मुक्त हो जाता है। इसे ही मोक्ष कहा जाता है, जो जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति का प्रतीक है।
यह भी जानें:  संकटनाशन गणेश स्तोत्र: Shri Sankat Nashan Ganesh Stotra (Lyrics, Meaning, Hindi, English, PDF)

4. ध्यान और साधना का महत्व:

  • इस महावाक्य को समझने और अनुभव करने के लिए ध्यान, साधना, और स्वाध्याय का महत्वपूर्ण स्थान है। व्यक्ति को अपने भीतर के आत्मा के साथ जुड़ने का प्रयास करना चाहिए, ताकि वह इस सत्य का प्रत्यक्ष अनुभव कर सके। जब व्यक्ति ध्यान के माध्यम से अपनी चेतना को शुद्ध करता है, तो उसे आत्मा और ब्रह्म की एकता का अनुभव होता है।

5. ज्ञानमार्ग की ओर प्रेरणा:

  • “अयमात्मा ब्रह्म” ज्ञानमार्ग का प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें व्यक्ति को आत्मज्ञान के माध्यम से ब्रह्म की प्राप्ति का मार्ग दिखाया जाता है। इसमें व्यक्ति को अपने भीतर की चेतना का अध्ययन करना और ब्रह्म के साथ अपनी पहचान को समझना होता है।

6. उपनिषदों का संदर्भ:

  • यह महावाक्य उपनिषदों के गूढ़तम शिक्षाओं में से एक है। उपनिषदों को वेदों का अंतिम भाग माना जाता है, और इनमें जीवन, आत्मा, और ब्रह्म के रहस्यों की व्याख्या की गई है। “अयमात्मा ब्रह्म” महावाक्य मंडूक्य उपनिषद से लिया गया है, जो अपने संक्षिप्त और सूक्ष्म ज्ञान के लिए प्रसिद्ध है।

7. प्रभाव और अनुप्रयोग:

  • इस महावाक्य का प्रभाव जीवन के हर पहलू में देखा जा सकता है। यह व्यक्ति को अपनी वास्तविक पहचान से जोड़ने और उसे संसार के भ्रामक सुख-दुःख से ऊपर उठाने का मार्ग दिखाता है। जीवन में, जब व्यक्ति इस सत्य को जान लेता है, तो वह सभी प्रकार के भयों, दुखों, और मानसिक अशांति से मुक्त हो जाता है।
अस्वीकरण (Disclaimer) : नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष आदि विषयों पर HinduismFAQ में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। 'HinduismFAQ' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

You may also like