- – यह भजन बाजरे की रोटी और चुरमे की महत्ता को दर्शाता है, जिसमें श्याम को बाजरे की रोटी खाने और चुरमा न भूलने का आग्रह किया गया है।
- – भजन में जाटणी के हाथ से बनी साग, खड्डी, दाल और गुड़ की मिठास का वर्णन है, जो पारंपरिक हरियाणवी भोजन की विशेषता है।
- – बाजरा ठंड से सुरक्षा करता है और इसे खाने से शरीर को ताकत मिलती है, इसलिए इसे खाने की सलाह दी गई है।
- – भजन में छाछ के साथ बाजरे की रोटी खाने का आनंद और पारिवारिक प्रेम की भावना व्यक्त की गई है।
- – ‘बनवारी’ नामक रोटी की चर्चा है, जो हरियाणा में प्रसिद्ध है और इसका स्वाद और महत्व बताया गया है।
- – यह भजन हरियाणवी संस्कृति और भोजन की परंपराओं को जीवंत रूप में प्रस्तुत करता है।

बाजरे की रोटी खाले श्याम,
चुरमा ने भूल जावेलो।।
जाटणी के हाथ की,
बणी रे कमाल की,
सागे लाई हाँडी फिर,
खड्डी और दाल की
गुड़ मिठो मिठो लाई श्याम,
के चुरमा ने भूल जावेलो,
बाजरे की रोटी खालो श्याम,
चुरमा ने भूल जावेलो।।
बाजरो ऐसो है बाबा,
ठंड नही लागे,
दस बीस कोस बाबा,
खाई के तू भागे,
गोढा में आवेगी थारे जान,
के चुरमा ने भूल जावेलो,
बाजरे की रोटी खालो श्याम,
चुरमा ने भूल जावेलो।।
बाजरे की रोटी सागे,
छाछ का सबड्का,
खाए के मारेला,
तू मूँछ पे रगड़का,
के चुरमा ने भूल जावेलो,
बाजरे की रोटी खालो श्याम,
चुरमा ने भूल जावेलो।।
‘बनवारी’ रोटी ऐसो,
ढूंडतो रवेगो,
हरियाणे तक मेरो,
पुछतो रवेगो,
पुछतो रवेगो म्हारो नाम,
के चुरमा ने भूल जावेलो,
बाजरे की रोटी खालो श्याम,
चुरमा ने भूल जावेलो।।
बाजरे की रोटी खाले श्याम,
चुरमा ने भूल जावेलो।।
Singer : Twinke Sharma
– भजन प्रेषक –
मुकेश लोया
cont. 9829953210
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