- – यह कविता बालाजी से प्रार्थना करती है कि वह बुरी आत्माओं और नकारात्मक शक्तियों को दूर करें और लोगों के बीच शांति स्थापित करें।
- – कवि अपने घर के काम करने के बावजूद बदनामी और अपमान का सामना कर रहा है, जिसके लिए वह बालाजी से सहायता मांगता है।
- – बालाजी की ज्योत जलाकर और उनकी पूजा करके कवि अपने संकटों और दुखों से मुक्ति चाहता है।
- – कवि अशोक भगत के माध्यम से बालाजी को अपना सहारा मानता है और उनसे जीवन की परेशानियों को दूर करने की प्रार्थना करता है।
- – कविता में बार-बार “काढ़ के भूत लूगाइयां के, लोगां में बांड़ दें” का उच्चारण होता है, जो बुरी आत्माओं को भगाने और समाज में शांति लाने की कामना दर्शाता है।

बालाजी चाला पाड़ दे,
काढ़ के भूत लूगाइयां के,
लोगां में बांड़ दें।।
सारा घर का काम करू मिलै,
फेर भी बदनामी,
सुसरा तो मेरा नु कह सै या,
बोलै मेरे स्याहमी,
ऐसा झाड़ा मार दे,
काढ़ के भूत लूगाइयां के,
लोगां में बांड़ दें,
बालाजी चाला पाड़ दे।।
तेरे नाम की ज्योत जगाई,
पेशी आवै स,
शयाणे भुतां की बाबा ना,
पार बसावै स,
इनका ब्योत बिगाड़ दे,
काढ़ के भूत लूगाइयां के,
लोगां में बांड़ दें,
बालाजी चाला पाड़ दे।।
संकट बैरी जोर जमावै,
मैं दुख पाई हो,
तेरे भवन में बाला जी,
मन्ने अर्जी लाई हो,
दो ये सोटे गाड दे,
काढ़ के भूत लूगाइयां के,
लोगां में बांड़ दें,
बालाजी चाला पाड़ दे।।
अशोक भगत ने बालाजी,
बस तेरा सहारा स,
लाल लंगोटे वाले आजया,
जग दुख पा रह्या स,
दुख बढ्या ने हाड़ दे,
काढ़ के भूत लूगाइयां के,
लोगां में बांड़ दें,
बालाजी चाला पाड़ दे।।
बालाजी चाला पाड़ दे,
काढ़ के भूत लूगाइयां के,
लोगां में बांड़ दें।।
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राकेश कुमार खरक जाटान
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