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- – सतगुरु ने बंधन काटकर आत्मा को मुक्त किया और सभी विपत्तियों से बचाया।
- – सतगुरु की वाणी सुनकर प्रेम और सुख की प्राप्ति हुई, और दुष्ट विचार दूर हुए।
- – सतगुरु ने माया और भ्रम का भेद समझाया, जिससे आत्मा ने अपने अंदर के आदि पुरुष को पहचाना।
- – सतगुरु की दया से भवसागर के संकट से उद्धार मिला और जीवन में उपकार हुआ।
- – गुरु दादू के चरणों में शीश झुकाकर भक्ति और समर्पण व्यक्त किया गया।
- – भजन में सतगुरु के प्रति गहरा आभार और श्रद्धा प्रकट की गई है।

बंधन काट किया निज मुक्ता,
सारी विपत निवारी,
मारा सतगुरु ने बलिहारी।।
वाणी सुणत प्रेम सुख उपज्यो,
दुरमति गई हमारी,
भरम करम का सासा मेटिया,
दिया कपट उगाडी,
मारा सतगुरु ने बलिहारी।।
माया बिरम का भेद समझाया,
सोहम लिया विचारी,
आदि पुरूष घट अन्दर देख्या,
किना दूर विचारी,
मारा सतगुरु ने बलिहारी।।
दया करी मेरा सतगुरु दाता,
अबके लीना उबारी,
भव सागर से डूबत तारया,
ऐसा पर उपकारी,
मारा सतगुरु ने बलिहारी।।
गुरू दादू के चरण कमल पर,
मेलू सीश उतारी,
ओर लेय क्या आगे राखू,
सुन्दर भेंट तुम्हारी,
मारा सतगुरु ने बलिहारी।।
बंधन काट किया निज मुक्ता,
सारी विपत निवारी,
मारा सतगुरु ने बलिहारी।।
– भजन प्रेषक –
सिंगर रूपलाल लोहार
9680208919
अस्वीकरण (Disclaimer) : नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष आदि विषयों पर HinduismFAQ में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। 'HinduismFAQ' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।
