- – यह भजन बांके बिहारी कृष्ण मुरारी की स्तुति में लिखा गया है, जिसमें उनकी लीला और रूप की प्रशंसा की गई है।
- – भजन में कृष्ण की माया, लीला, और उनके नटखट स्वभाव का वर्णन है, जो भक्तों को आकर्षित करता है।
- – “मेरे बारी कहाँ छुपे” पंक्ति बार-बार दोहराई गई है, जो कृष्ण की खोज और उनकी भक्ति की अभिव्यक्ति है।
- – जय जय राधे और जय जय कृष्णा के जयकारे से भजन का समापन होता है, जो भक्ति भाव को प्रकट करता है।
- – भजन में कृष्ण की बंसी, रास रचना, और धेनु चराने जैसी उनकी पारंपरिक लीलाओं का उल्लेख है।

बांके बिहारी कृष्ण मुरारी,
बांके बिहारी कृष्ण मुरारी,
मेरे बारी कहाँ छुपे,
दर्शन दीजो,
शरण लीजो,
हम बलिहारी,
कहाँ छुपे,
बाँके बिहारी कृष्ण मुरारी,
मेरे बारी कहाँ छुपे।।
आँख मिचोली,
हमें ना भाये,
जग माया के,
जाल बिछाए,
रास रचाकर,
बंसी बजाकर,
धेनु चराकर,
प्रीत जगाकर,
नटवर नागर,
निष्ठुर छलिया,
लीला न्यारी,
कहाँ छुपे,
बाँके बिहारी कृष्ण मुरारी,
मेरे बारी कहाँ छुपे।।
जय जय राधे श्री राधे श्री राधे,
जय जय राधे श्री राधे श्री राधे,
जय जय कृष्णा जय कृष्णा जय कृष्णा,
जय जय कृष्णा जय कृष्णा जय कृष्णा,
जय जय राधे श्री राधे श्री राधे,
जय जय राधे श्री राधे श्री राधे,
जय जय कृष्णा जय कृष्णा जय कृष्णा।।
