- – यह कविता भगवान कृष्ण और उनकी माता यशोदा के बीच की भावनात्मक बातचीत को दर्शाती है, जिसमें यशोदा कृष्ण से उनके मन की बात जानना चाहती हैं।
- – कविता में कृष्ण के शरारती व्यवहार, जैसे गाय चराने जाना, झगड़ा करना और बंसी तोड़ना, का उल्लेख है, जिससे यशोदा चिंतित और दुखी होती हैं।
- – यशोदा कृष्ण की हरकतों से परेशान होकर उन्हें डांटती हैं, लेकिन कृष्ण के मन में एक मासूम मुस्कान भी छुपी होती है।
- – कविता में कृष्ण की माया और उनकी दिव्यता का भी संकेत मिलता है, जिसे केवल वेद और ऋषि मुनि ही समझ पाते हैं।
- – यह रचना कृष्ण की बाल लीलाओं की ममता, शरारत और उनकी माँ के प्रति प्रेम को सुंदरता से प्रस्तुत करती है।

बनवारी ओ कृष्ण मुरारी,
बता कुण मारी,
पूछे यशोदा मात रे,
ओ लाला कहो थारे मनड़े री बात रे।।
तर्ज – ओ फिरकी वाली तू कल
भेजो थे लाला तने गाय चरावन,
रोवतड़ो क्यू घर आयो,
किने से तू झगडो कर लीनो,
माटी में क्यू भर आयो,
कुण तने मारी नाम बतादे,
मैया जड़ पूछकारे,
कानो रोवे दरद घणो होवे,
जद मैया फेरे हाथ रे,
ओ लाला कहो थारे मनड़े री बात रे।।
बैठयो थो मैया मैं कदम के नीचे,
बोली गुज़रिया बंसी बजा,
नाट गयो मैं तो नाही बजाऊं,
छीन म्हारी बंसी दिनी बगाड़,
आज गुज़रिया मारी म्हणे,
सारी ही हिलमिल कर,
बंसी तोड़ी कलाई भी मरोड़ी,
और मारी म्हणे लात की,
मैया कोई ना सुनी म्हारी बात भी,
ओ लाला कहो थारे मनड़े री बात रे।।
सुनकर के बाता मैया कान कुंवर की,
म्हारो हिवड़ो भर आयो,
माटी झाड़ी सारे बदन की,
और हिवडे से लिपटायो,
भोलो ढालो कछु नही जाने,
मेरो यो गोपालो,
गुज़री खोटी पकडूंगीं जाके चोटी,
मारूँगी बिने लात की,
ओ लाला कोई ना सुनी तेरी बात री,
ओ लाला कहो थारे मनड़े री बात रे।।
मैया रे बाता सुन सुन कर मोहन,
मन ही मन मुस्काने लगयो,
तारा चंद कहे ई छलिया को,
भेद कोई ना जान सक्यो,
ईरी माया योही जाने,
योही वेद पखाने,
पच पच हारा ऋषि मुनि सारा,
इ दिन और रात रे,
ओ लाला कहो थारे मनड़े री बात रे।।
बनवारी ओ कृष्ण मुरारी,
बता कुण मारी,
पूछे यशोदा मात रे,
ओ लाला कहो थारे मनड़े री बात रे।।
