- – कविता में कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ सशक्त संदेश दिया गया है, जिसमें बेटी की कोंख में मारने की निंदा की गई है।
- – बेटी के जन्म को जीवन में खुशियों और सुख का स्रोत बताया गया है, जो परिवार और समाज में सकारात्मक बदलाव लाती है।
- – कविता में बेटों के प्रति मोह को त्यागकर बेटियों को समान अधिकार और सम्मान देने की अपील की गई है।
- – यह रचना समाज को जागरूक करने और कन्या भ्रूण हत्या जैसी कुप्रथा को समाप्त करने का आग्रह करती है।
- – बेटी की पुकार सुनने और उसे जन्म देने की आवश्यकता पर जोर देते हुए, जीवन के प्रति सम्मान और संवेदना का संदेश दिया गया है।

बेटी की सुन लो पुकार,
मुझे कोंख में मत दो मार,
मुझे मत मारो, मुझे मत मारो,
मुझे मत मारो, मुझे मत मारो,
कन्या की सुन लो पुकार,
मुझे कोंख में मत दो मार।।
तर्ज – मेरा छोटा सा संसार।
मुझे पैदा जो ना करना था,
मुझे कौंख में फिर क्यों लाए थे,
जब आ ही गई थी जीवन में,
फिर गर्भ में क्यों मरवाए थे,
क्यों पाप किए हर बार,
मुझे कोंख में मत दो मार,
बेटी की सुन लों पुकार,
मुझे कोंख में मत दो मार।।
बेटी जब घर में आती है,
घर खुशियों से भर जाता है,
जीते जी स्वर्गो जैसा सुख,
इस जीवन में मिल जाता है,
बेटी लाती है बहार,
मुझे कोंख में मत दो मार,
बेटी की सुन लों पुकार,
मुझे कोंख में मत दो मार।।
मत सो अब जाग जा ओ प्राणी,
बेटी को कोंख मत मारो,
होने दो जनम तुम बेटी का,
बेटे के मोह को तुम त्यागो,
बेटी से बने संसार,
मुझे कोंख में मत दो मार,
बेटी की सुन लों पुकार,
मुझे कोंख में मत दो मार।।
बेटी की सुन लो पुकार,
मुझे कोंख में मत दो मार,
मुझे मत मारो, मुझे मत मारो,
मुझे मत मारो, मुझे मत मारो,
कन्या की सुन लो पुकार,
मुझे कोंख में मत दो मार।।
स्वर – राकेश काला।
