- – बेटी को समाज में अनमोल और सम्मानित स्थान दिया जाना चाहिए क्योंकि वह दो कुल की लाज रखती है।
- – बेटी का पालन-पोषण प्यार और नाज़ो से करना चाहिए, जिससे परिवार और घर की शोभा बढ़े।
- – बेटी अपने ससुराल में भी सम्मान और प्यार की हकदार होती है, उसे मीठे बोल और सम्मान मिले।
- – बेटी परिवार की इज्जत और वंश को आगे बढ़ाती है, इसलिए उसकी गरिमा बनाए रखना आवश्यक है।
- – समाज को मिलकर बेटी के सम्मान और अधिकारों को बढ़ावा देना चाहिए, क्योंकि उसकी कीमत किसी दौलत से नहीं तौली जा सकती।
- – कविता में बेटी के प्रति प्रेम, सम्मान और उसकी महत्ता को उजागर किया गया है।

बेटी तो बेटी है इसका,
ना है कोई जोड़,
दो दो कुल की लाज रखती,
है बड़ी अनमोल,
बेटी को प्यार दो तुम,
थोड़ा सम्मान दो तुम।।
तर्ज – स्वर्ग से सुन्दर सपनों से।
नाज़ो से पाली लाडो,
बाबुल की प्यारी,
इससे महके घर,
आँगन की फुलवारी,
बेटे के आगे माँ की ममता,
को भी लो जरा तोल
दो दो कुल की लाज रखती,
है बड़ी अनमोल,
बेटी को प्यार दो तुम,
थोड़ा सम्मान दो तुम।।
अपना घर होते हुए भी,
कहलाती पराई,
ससुराल में भी किसी की,
आँख को ना भायी,
खुद को समर्पण करके भी,
सुनने को मिलते ना मीठे बोल,
दो दो कुल की लाज रखती,
है बड़ी अनमोल,
बेटी को प्यार दो तुम,
थोड़ा सम्मान दो तुम।।
घर को चिराग देके,
वंश को बढ़ाती,
लालच की अग्नि में,
फिर भी झोंकी जाती,
अब तो थोड़ी शर्म करो,
ना घर इज़्ज़त रोल,
दो दो कुल की लाज रखती,
है बड़ी अनमोल,
बेटी को प्यार दो तुम,
थोड़ा सम्मान दो तुम।।
‘रूबी रिधम’ सबको,
यही समझाते,
आओ मिलके बेटी का,
मान बढ़ाते,
सारी दौलत लूटा के इसका,
लगा सकोगे ना मोल,
दो दो कुल की लाज रखती,
है बड़ी अनमोल,
बेटी को प्यार दो तुम,
थोड़ा सम्मान दो तुम।।
बेटी तो बेटी है इसका,
ना है कोई जोड़,
दो दो कुल की लाज रखती,
है बड़ी अनमोल,
बेटी को प्यार दो तुम,
थोड़ा सम्मान दो तुम।।
स्वर – कांची भार्गव।
लेखिका – रूबी रिधम।
