भैरव चालीसा in Hindi/Sanskrit
॥ दोहा ॥
श्री गणपति गुरु गौरी पद
प्रेम सहित धरि माथ ।
चालीसा वंदन करो
श्री शिव भैरवनाथ ॥
श्री भैरव संकट हरण
मंगल करण कृपाल ।
श्याम वरण विकराल वपु
लोचन लाल विशाल ॥
॥ चौपाई ॥
जय जय श्री काली के लाला ।
जयति जयति काशी-कुतवाला ॥
जयति बटुक-भैरव भय हारी ।
जयति काल-भैरव बलकारी ॥
जयति नाथ-भैरव विख्याता ।
जयति सर्व-भैरव सुखदाता ॥
भैरव रूप कियो शिव धारण ।
भव के भार उतारण कारण ॥
भैरव रव सुनि हवै भय दूरी ।
सब विधि होय कामना पूरी ॥
शेष महेश आदि गुण गायो ।
काशी-कोतवाल कहलायो ॥
जटा जूट शिर चंद्र विराजत ।
बाला मुकुट बिजायठ साजत ॥
कटि करधनी घुंघरू बाजत ।
दर्शन करत सकल भय भाजत ॥
जीवन दान दास को दीन्ह्यो ।
कीन्ह्यो कृपा नाथ तब चीन्ह्यो ॥
वसि रसना बनि सारद-काली ।
दीन्ह्यो वर राख्यो मम लाली ॥
धन्य धन्य भैरव भय भंजन ।
जय मनरंजन खल दल भंजन ॥
कर त्रिशूल डमरू शुचि कोड़ा ।
कृपा कटाक्ष सुयश नहिं थोडा ॥
जो भैरव निर्भय गुण गावत ।
अष्टसिद्धि नव निधि फल पावत ॥
रूप विशाल कठिन दुख मोचन ।
क्रोध कराल लाल दुहुं लोचन ॥
अगणित भूत प्रेत संग डोलत ।
बम बम बम शिव बम बम बोलत ॥
रुद्रकाय काली के लाला ।
महा कालहू के हो काला ॥
बटुक नाथ हो काल गंभीरा ।
श्वेत रक्त अरु श्याम शरीरा ॥
करत नीनहूं रूप प्रकाशा ।
भरत सुभक्तन कहं शुभ आशा ॥
रत्न जड़ित कंचन सिंहासन ।
व्याघ्र चर्म शुचि नर्म सुआनन ॥
तुमहि जाइ काशिहिं जन ध्यावहिं ।
विश्वनाथ कहं दर्शन पावहिं ॥
जय प्रभु संहारक सुनन्द जय ।
जय उन्नत हर उमा नन्द जय ॥
भीम त्रिलोचन स्वान साथ जय ।
वैजनाथ श्री जगतनाथ जय ॥
महा भीम भीषण शरीर जय ।
रुद्र त्रयम्बक धीर वीर जय ॥
अश्वनाथ जय प्रेतनाथ जय ।
स्वानारुढ़ सयचंद्र नाथ जय ॥
निमिष दिगंबर चक्रनाथ जय ।
गहत अनाथन नाथ हाथ जय ॥
त्रेशलेश भूतेश चंद्र जय ।
क्रोध वत्स अमरेश नन्द जय ॥
श्री वामन नकुलेश चण्ड जय ।
कृत्याऊ कीरति प्रचण्ड जय ॥
रुद्र बटुक क्रोधेश कालधर ।
चक्र तुण्ड दश पाणिव्याल धर ॥
करि मद पान शम्भु गुणगावत ।
चौंसठ योगिन संग नचावत ॥
करत कृपा जन पर बहु ढंगा ।
काशी कोतवाल अड़बंगा ॥
देयं काल भैरव जब सोटा ।
नसै पाप मोटा से मोटा ॥
जनकर निर्मल होय शरीरा ।
मिटै सकल संकट भव पीरा ॥
श्री भैरव भूतों के राजा ।
बाधा हरत करत शुभ काजा ॥
ऐलादी के दुख निवारयो ।
सदा कृपाकरि काज सम्हारयो ॥
सुन्दर दास सहित अनुरागा ।
श्री दुर्वासा निकट प्रयागा ॥
श्री भैरव जी की जय लेख्यो ।
सकल कामना पूरण देख्यो ॥
॥ दोहा ॥
जय जय जय भैरव बटुक स्वामी संकट टार ।
कृपा दास पर कीजिए शंकर के अवतार ॥
Bhairav Chalisa in English
॥ Doha ॥
Shree Ganpati Guru Gauri Pad
Prem Sahit Dhari Maath.
Chalisa Vandan Karo
Shree Shiv Bhairavnath.
Shree Bhairav Sankat Haran
Mangal Karan Kripaal.
Shyam Varan Vikraal Vapu
Lochan Laal Vishaal.
॥ Chaupai ॥
Jai Jai Shree Kali Ke Laala.
Jayati Jayati Kashi-Kutwala.
Jayati Batuk-Bhairav Bhay Haari.
Jayati Kaal-Bhairav Balkari.
Jayati Naath-Bhairav Vikhyata.
Jayati Sarv-Bhairav Sukhdata.
Bhairav Roop Kiyo Shiv Dharan.
Bhav Ke Bhar Utaran Karan.
Bhairav Rav Suni Havai Bhay Doori.
Sab Vidhi Hoy Kamna Poori.
Shesh Mahesh Aadi Gun Gaayo.
Kashi-Kotwal Kahlayo.
Jata Joot Shir Chandra Virajat.
Bala Mukut Bijayath Sajjat.
Kati Kardhani Ghunghroo Bajjat.
Darshan Karat Sakal Bhay Bhajat.
Jeevan Daan Daas Ko Dinhyo.
Kinhyo Kripa Naath Tab Chinhyo.
Vasi Rasna Bani Sarad-Kali.
Dinhyo Var Rakhyo Mam Laali.
Dhanya Dhanya Bhairav Bhay Bhanjan.
Jai Manranjan Khalb Dal Bhanjan.
Kar Trishul Damru Shuchi Koda.
Kripa Kataksh Suyash Nahin Thoda.
Jo Bhairav Nirbhay Gun Gavat.
Ashtasiddhi Nav Nidhi Phal Pavat.
Roop Vishal Kathin Dukh Mochan.
Krodh Karaal Laal Duhun Lochan.
Aganit Bhoot Pret Sang Dolat.
Bam Bam Bam Shiv Bam Bam Bolat.
Rudrakaya Kali Ke Laala.
Maha Kalahu Ke Ho Kaala.
Batuk Naath Ho Kaal Gambheera.
Shvet Rakt Aru Shyam Sharira.
Karat Neenhahu Roop Prakasha.
Bharat Subhaktan Kah Shubh Aasha.
Ratn Jadhit Kanchan Singhasan.
Vyaghra Charm Shuchi Narm Swaanan.
Tumhi Jai Kashihin Jan Dhyavahin.
Vishwanath Kah Darshan Pavahin.
Jai Prabhu Sanharak Sunand Jai.
Jai Unnat Har Uma Nand Jai.
Bhim Trilochan Swaan Saath Jai.
Vaijanath Shree Jagatnath Jai.
Maha Bhim Bhishan Sharir Jai.
Rudra Trayambak Dheer Veer Jai.
Ashwanath Jai Pretnath Jai.
Swanarudh Saychandra Nath Jai.
Nimish Digambar Chakranath Jai.
Gahat Anathan Nath Hath Jai.
Treshlesh Bhutesh Chandra Jai.
Krodh Vats Amaresh Nand Jai.
Shree Vaman Nakulesh Chand Jai.
Krityauu Keerati Prachand Jai.
Rudra Batuk Krodhesh Kaldhar.
Chakra Tund Dash Panivyaal Dhar.
Kari Mad Paan Shambhu Gungavat.
Chaunsath Yogin Sang Nachavat.
Karat Kripa Jan Par Bahu Dhanga.
Kashi Kotwal Adbanga.
Deyam Kaal Bhairav Jab Sota.
Nasai Paap Mota Se Mota.
Janakar Nirmal Hoy Sharira.
Mitai Sakal Sankat Bhav Peera.
Shree Bhairav Bhuton Ke Raja.
Baadha Harat Karat Shubh Kaja.
Ailadi Ke Dukh Nivaryo.
Sada Kripakari Kaj Samharyyo.
Sundar Das Sahit Anuraga.
Shree Durvasa Nikat Prayaga.
Shree Bhairav Ji Ki Jai Lekhyo.
Sakal Kamna Puran Dekhyo.
॥ Doha ॥
Jai Jai Jai Bhairav Batuk Swami Sankat Tar.
Kripa Das Par Keejiye Shankar Ke Avtar.
श्री भैरव चालीसा PDF Download
श्री भैरव चालीसा का अर्थ
श्री भैरव चालीसा की महिमा
श्री भैरव चालीसा भगवान शिव के रौद्र रूप, श्री भैरव, की स्तुति है। यह चालीसा भक्तों के सभी कष्टों को दूर करने, संकटों को समाप्त करने और जीवन में सुख-समृद्धि लाने का एक प्रभावी माध्यम माना जाता है। श्री भैरव को काल भैरव के नाम से भी जाना जाता है, जो मृत्यु के देवता माने जाते हैं और भक्तों के जीवन के सभी प्रकार के संकटों का नाश करते हैं। आइये, अब प्रत्येक चौपाई को विस्तार से समझें।
श्री गणपति गुरु गौरी पद, प्रेम सहित धरि माथ।
चालीसा वंदन करो, श्री शिव भैरवनाथ॥
इस दोहे में कवि भगवान गणपति, गुरु और गौरी माँ का स्मरण कर रहा है और उनके चरणों में प्रेमपूर्वक नमन कर श्री शिव के भैरव रूप की चालीसा का वंदन करने की प्रार्थना करता है।
श्री भैरव संकट हरण, मंगल करण कृपाल।
श्याम वरण विकराल वपु, लोचन लाल विशाल॥
यहाँ भगवान भैरव को संकट हरण करने वाला, मंगलकारी और कृपा स्वरूप बताया गया है। उनका रंग श्याम (काला) है, शरीर विकराल है, और उनकी बड़ी-बड़ी लाल आँखें हैं जो अत्यंत भयानक प्रतीत होती हैं।
जय जय श्री काली के लाला।
जयति जयति काशी-कुतवाला॥
इस चौपाई में भगवान भैरव को काली माता के पुत्र के रूप में संबोधित किया गया है। “काशी-कुतवाला” का अर्थ है कि भगवान भैरव काशी के कोतवाल के रूप में पूजे जाते हैं, जिनका प्रमुख स्थान काशी (वर्तमान वाराणसी) है। काशी के कोतवाल के रूप में, वह सभी भक्तों की रक्षा करते हैं।
जयति बटुक-भैरव भय हारी।
जयति काल-भैरव बलकारी॥
यह चौपाई भगवान बटुक भैरव की स्तुति करती है, जो सभी प्रकार के भय को हरने वाले और भक्तों को शक्ति प्रदान करने वाले हैं। काल भैरव के रूप में, वह समय के स्वामी हैं और अत्यंत शक्तिशाली हैं, जो सभी प्रकार के दुश्मनों और संकटों को नष्ट करते हैं।
जयति नाथ-भैरव विख्याता।
जयति सर्व-भैरव सुखदाता॥
यहाँ भगवान नाथ-भैरव की प्रशंसा की गई है, जो समस्त भैरवों में विख्यात हैं और सभी को सुख प्रदान करने वाले हैं। नाथ-भैरव का यह रूप अत्यंत श्रद्धास्पद है, जो भक्तों को सभी प्रकार की कष्टों से मुक्ति दिलाते हैं।
भैरव रूप कियो शिव धारण।
भव के भार उतारण कारण॥
इस चौपाई में भगवान भैरव के शिव रूप को प्रकट करने का वर्णन किया गया है। शिव ने भैरव का रूप धारण किया ताकि वे भक्तों के भवसागर के भारी बोझ को हल्का कर सकें और उन्हें मोक्ष प्रदान कर सकें।
भैरव रव सुनि हवै भय दूरी।
सब विधि होय कामना पूरी॥
यह चौपाई कहती है कि जब भगवान भैरव का नाम या उनकी गर्जना सुनाई देती है, तो सभी प्रकार के भय दूर हो जाते हैं। उनके आशीर्वाद से सभी प्रकार की इच्छाएँ पूर्ण होती हैं।
शेष महेश आदि गुण गायो।
काशी-कोतवाल कहलायो॥
यहाँ भगवान शेषनाग, महेश (शिव) और अन्य देवता उनके गुणों की महिमा का गुणगान करते हैं। भैरव जी को काशी के कोतवाल के रूप में जाना जाता है, जहाँ वह भक्तों की रक्षा करते हैं।
जटा जूट शिर चंद्र विराजत।
बाला मुकुट बिजायठ साजत॥
यहाँ भगवान भैरव की अलौकिक सुंदरता का वर्णन किया गया है। उनकी जटाओं में चंद्रमा शोभित है और उनका मुकुट बाल रूप में अद्भुत आभा बिखेरता है।
कटि करधनी घुंघरू बाजत।
दर्शन करत सकल भय भाजत॥
भैरव जी की कमर में बंधी करधनी में घुंघरू बजते हैं और उनके दर्शन मात्र से सभी प्रकार के भय समाप्त हो जाते हैं। उनके दर्शन करने से सभी प्रकार की आपदाएँ दूर हो जाती हैं।
जीवन दान दास को दीन्ह्यो।
कीन्ह्यो कृपा नाथ तब चीन्ह्यो॥
इस चौपाई में भगवान भैरव की कृपा का वर्णन किया गया है। वे अपने भक्तों को जीवनदान देते हैं और उन पर कृपा करते हैं। भक्तों को उनकी महिमा तब समझ में आती है जब वे उनकी कृपा से संकटों से मुक्त हो जाते हैं।
वसि रसना बनि सारद-काली।
दीन्ह्यो वर राख्यो मम लाली॥
भगवान भैरव के आशीर्वाद से भक्तों की जिह्वा (जीभ) सरस्वती (विद्या की देवी) और काली (शक्ति की देवी) के समान हो जाती है। वे भक्तों को वरदान देते हैं और उनकी कृपा से उनकी कृपादृष्टि बनी रहती है।
धन्य धन्य भैरव भय भंजन।
जय मनरंजन खल दल भंजन॥
यहाँ भगवान भैरव को भय भंजन (भय को दूर करने वाले) कहा गया है। वे मन को आनंदित करने वाले और दुष्टों के दल को नष्ट करने वाले हैं। उनके आशीर्वाद से भक्तों का जीवन सुखमय हो जाता है।
कर त्रिशूल डमरू शुचि कोड़ा।
कृपा कटाक्ष सुयश नहिं थोडा॥
भगवान भैरव त्रिशूल, डमरू और कोड़ा धारण करते हैं, जो उनके बल और शक्ति का प्रतीक हैं। उनके कृपादृष्टि और यश का वर्णन असीम है। उनके आशीर्वाद से भक्तों को असीम लाभ मिलता है।
जो भैरव निर्भय गुण गावत।
अष्टसिद्धि नव निधि फल पावत॥
इस चौपाई में यह कहा गया है कि जो भक्त निर्भय होकर भगवान भैरव के गुणों का गान करते हैं, वे अष्ट सिद्धियों (आठ प्रकार की शक्तियों) और नव निधियों (नौ प्रकार की संपत्तियों) का फल प्राप्त करते हैं। भैरव के भक्तों को इन दिव्य शक्तियों का आशीर्वाद मिलता है, जो उन्हें जीवन में सफलता और समृद्धि दिलाती हैं।
रूप विशाल कठिन दुख मोचन।
क्रोध कराल लाल दुहुं लोचन॥
भगवान भैरव का विशाल रूप कष्टों का नाश करने वाला है। उनके दोनों नेत्रों का वर्णन किया गया है, जो क्रोध से लाल हो गए हैं। यह उनका उग्र रूप है, जो संसार के हर प्रकार के संकट और बाधाओं को समाप्त करने में सक्षम है।
अगणित भूत प्रेत संग डोलत।
बम बम बम शिव बम बम बोलत॥
भगवान भैरव के साथ अनगिनत भूत, प्रेत और पिशाच चलते हैं। उनके साथ ‘बम बम’ का उच्चारण होता रहता है, जो शिव के नाम का पवित्र जाप है। इससे यह प्रतीत होता है कि भगवान शिव का भैरव रूप भयावह होते हुए भी अत्यंत दिव्य और पवित्र है।
रुद्रकाय काली के लाला।
महा कालहू के हो काला॥
यहाँ भगवान भैरव को रुद्र (शिव का उग्र रूप) के समान शरीर वाला कहा गया है। वे काली माता के पुत्र हैं और महाकाल (काल के भी स्वामी) हैं, यानी वे स्वयं समय और मृत्यु से भी परे हैं। उनका स्वरूप काल से भी अधिक शक्तिशाली है।
बटुक नाथ हो काल गंभीरा।
श्वेत रक्त अरु श्याम शरीरा॥
भगवान भैरव का बटुक रूप अत्यंत गंभीर और प्रभावशाली है। उनके शरीर का वर्ण श्वेत, रक्त और श्याम (काला) है, जो उनके विविध रूपों और शक्तियों का प्रतीक है। यह उनका त्रिगुणात्मक स्वरूप है, जो उन्हें शक्ति, भयंकरता और सौम्यता का प्रतीक बनाता है।
करत नीनहूं रूप प्रकाशा।
भरत सुभक्तन कहं शुभ आशा॥
भगवान भैरव के रूप की महिमा प्रकाशमान है और वे अपने भक्तों को शुभ आशा और आशीर्वाद प्रदान करते हैं। उनके दर्शन से भक्तों के जीवन में नई ऊर्जा का संचार होता है और उनके सभी कार्य सफल होते हैं।
रत्न जड़ित कंचन सिंहासन।
व्याघ्र चर्म शुचि नर्म सुआनन॥
भगवान भैरव रत्नों से जड़े हुए कंचन (स्वर्ण) के सिंहासन पर विराजमान होते हैं। उनके सिंहासन के नीचे व्याघ्र (बाघ) का चर्म होता है, जो उनके बल और शक्ति का प्रतीक है। यह दृश्य उनकी दिव्यता और शक्ति को और भी उजागर करता है।
तुमहि जाइ काशिहिं जन ध्यावहिं।
विश्वनाथ कहं दर्शन पावहिं॥
यह चौपाई बताती है कि भक्त काशी (वाराणसी) में जाकर भगवान भैरव का ध्यान करते हैं और विश्वनाथ (भगवान शिव) के दर्शन प्राप्त करते हैं। काशी में भगवान भैरव का प्रमुख स्थान है और वहाँ उनका दर्शन करने से सभी प्रकार के कष्ट समाप्त हो जाते हैं।
जय प्रभु संहारक सुनन्द जय।
जय उन्नत हर उमा नन्द जय॥
यहाँ भगवान भैरव को संहारक (संसार के विनाशक) और सुनन्द (सुख और शांति देने वाले) के रूप में स्मरण किया गया है। वे उन्नत हर (शिव) और उमा (पार्वती) के पुत्र के रूप में पूजनीय हैं।
भीम त्रिलोचन स्वान साथ जय।
वैजनाथ श्री जगतनाथ जय॥
यहाँ भगवान भैरव के भीमकाय (विशाल शरीर वाले) त्रिलोचन (तीन नेत्रों वाले) रूप का वर्णन किया गया है। उनके साथ स्वान (कुत्ते) चलते हैं, जो उनके शक्ति और विनाशकारी रूप का प्रतीक हैं। साथ ही वैजनाथ और श्री जगतनाथ के रूप में उनकी महिमा की प्रशंसा की गई है।
महा भीम भीषण शरीर जय।
रुद्र त्रयम्बक धीर वीर जय॥
भगवान भैरव का महाभीम और भीषण शरीर अत्यंत डरावना है, जो उनके विनाशकारी रूप का परिचायक है। वे रुद्र (शिव) के त्र्यंबक (तीन नेत्रों वाले) रूप में धीर और वीर हैं। उनके इस रूप से दुष्ट शक्तियाँ भयभीत रहती हैं।
अश्वनाथ जय प्रेतनाथ जय।
स्वानारुढ़ सयचंद्र नाथ जय॥
यह चौपाई भगवान भैरव को अश्वनाथ (घोड़ों के स्वामी) और प्रेतनाथ (भूत-प्रेतों के स्वामी) के रूप में संबोधित करती है। वे स्वानारुढ़ (कुत्ते पर सवार) हैं और सयचंद्रनाथ के रूप में भी पूजनीय हैं। उनका स्वरूप अत्यंत उग्र और भयावह होते हुए भी भक्तों के लिए सौम्य और कल्याणकारी है।
निमिष दिगंबर चक्रनाथ जय।
गहत अनाथन नाथ हाथ जय॥
इस चौपाई में भगवान भैरव को दिगंबर कहा गया है, जो आकाश को ही वस्त्र के रूप में धारण करने वाले हैं। उन्हें चक्रनाथ भी कहा गया है, अर्थात वे सभी दिशाओं के स्वामी हैं। वे अनाथों के रक्षक हैं और उनका हाथ उन पर सदैव कृपा रूप में रहता है। वे सभी प्रकार के आश्रयहीन भक्तों के लिए एकमात्र सहारा हैं।
त्रेशलेश भूतेश चंद्र जय।
क्रोध वत्स अमरेश नन्द जय॥
यहाँ भगवान भैरव को त्रेशलेश (तीनों लोकों के स्वामी) और भूतेश (भूतों के राजा) के रूप में वर्णित किया गया है। वे क्रोध और शक्ति के प्रतीक हैं, फिर भी अपने भक्तों के लिए हमेशा सौम्य होते हैं। उन्हें अमरेश (देवताओं के स्वामी) के पुत्र के रूप में भी सम्मानित किया जाता है।
श्री वामन नकुलेश चण्ड जय।
कृत्याऊ कीरति प्रचण्ड जय॥
इस चौपाई में भगवान भैरव को वामन रूप में वर्णित किया गया है, जो शक्ति और बल के प्रतीक हैं। वे नकुलेश (साँपों के स्वामी) के रूप में पूजे जाते हैं। उनकी कीर्ति अत्यंत प्रचंड है और वे हर जगह अपने प्रभाव से जाने जाते हैं।
रुद्र बटुक क्रोधेश कालधर।
चक्र तुण्ड दश पाणिव्याल धर॥
यहाँ भगवान भैरव को रुद्र बटुक (रुद्र रूपी बालक) और क्रोधेश (क्रोध के स्वामी) के रूप में वर्णित किया गया है। वे कालधर (काल के धारण करने वाले) हैं और उनके हाथों में चक्र और तुण्ड (मुसल) जैसे शस्त्र हैं। उनके दस हाथों में साँप होते हैं, जो उनके विनाशकारी और भयावह स्वरूप का प्रतीक हैं।
करि मद पान शम्भु गुणगावत।
चौंसठ योगिन संग नचावत॥
भगवान भैरव मद (शक्ति) का पान करते हैं और भगवान शम्भु (शिव) के गुणों का गुणगान करते हैं। वे अपने साथ चौंसठ योगिनियों के साथ नृत्य करते हैं। यह उनका उग्र और शक्तिशाली रूप है, जिसमें वे अपने भक्तों के लिए सभी बाधाओं को नष्ट करते हैं।
करत कृपा जन पर बहु ढंगा।
काशी कोतवाल अड़बंगा॥
भगवान भैरव की कृपा से भक्तों पर कई प्रकार के अनुग्रह होते हैं। वे काशी के कोतवाल (रक्षक) के रूप में अद्वितीय हैं। उनकी भव्यता और उनकी रक्षात्मक प्रवृत्ति काशी नगरी के हर भक्त को सुरक्षा प्रदान करती है।
देयं काल भैरव जब सोटा।
नसै पाप मोटा से मोटा॥
यहाँ भगवान भैरव की सोटा (दंड) का वर्णन किया गया है। जब काल भैरव अपना सोटा उठाते हैं, तो सबसे बड़े से बड़े पाप भी नष्ट हो जाते हैं। उनके दंड से कोई भी पापी नहीं बच सकता। उनकी शक्ति से समस्त बुराइयाँ समाप्त हो जाती हैं।
जनकर निर्मल होय शरीरा।
मिटै सकल संकट भव पीरा॥
इस चौपाई में भगवान भैरव के अनुग्रह से भक्तों के शरीर और आत्मा दोनों निर्मल हो जाते हैं। उनके सभी कष्ट और जीवन की परेशानियाँ समाप्त हो जाती हैं। उनकी कृपा से भक्त भवसागर (मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र) से मुक्त हो जाते हैं।
श्री भैरव भूतों के राजा।
बाधा हरत करत शुभ काजा॥
भगवान भैरव भूतों के राजा के रूप में जाने जाते हैं। वे सभी बाधाओं को हरते हैं और शुभ कार्यों को संपन्न करने में भक्तों की मदद करते हैं। उनके आशीर्वाद से भक्त जीवन के हर संकट से मुक्ति पाते हैं।
ऐलादी के दुख निवारयो।
सदा कृपाकरि काज सम्हारयो॥
यहाँ भगवान भैरव के ऐलादी (भूत-प्रेत और नकारात्मक शक्तियों) के दुखों को नष्ट करने की महिमा का वर्णन किया गया है। वे हमेशा कृपा करते हैं और भक्तों के हर कार्य को सफलतापूर्वक संपन्न कराते हैं। उनकी कृपा से जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं।
सुन्दर दास सहित अनुरागा।
श्री दुर्वासा निकट प्रयागा॥
यहाँ भगवान भैरव की कृपा से सुंदर दास (भक्त) के साथ उनके प्रेमपूर्ण संबंध का वर्णन किया गया है। श्री दुर्वासा ऋषि ने प्रयाग में उनकी निकटता का अनुभव किया था, जहाँ उन्होंने भैरव जी की स्तुति की और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया।
श्री भैरव जी की जय लेख्यो।
सकल कामना पूरण देख्यो॥
यह अंतिम चौपाई बताती है कि जो भी भक्त श्री भैरव जी का ध्यान करते हैं और उनकी जय बोलते हैं, उनकी सभी इच्छाएँ पूरी हो जाती हैं। भगवान भैरव अपने भक्तों की हर प्रकार की कामना को पूर्ण करते हैं और उन्हें सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
जय जय जय भैरव बटुक स्वामी संकट टार।
कृपा दास पर कीजिए शंकर के अवतार॥
इस दोहे में भगवान भैरव को संकटों को दूर करने वाले भैरव बटुक स्वामी के रूप में पुकारा गया है। भक्त प्रार्थना करता है कि भगवान भैरव, जो भगवान शिव के अवतार हैं, अपनी कृपा दृष्टि से उस पर कृपा करें और उसके सभी संकटों का नाश करें।
श्री भैरव जी का आध्यात्मिक महत्व
भैरव जी का उग्र और सौम्य रूप
भगवान भैरव शिव के रौद्र रूप हैं, लेकिन उनके भीतर असीम करुणा और दया का भाव भी है। वे एक साथ विनाशक और संरक्षक हैं। उनके उग्र रूप से बुराई और नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है, जबकि उनके सौम्य रूप से भक्तों को शांति, सुरक्षा और समृद्धि प्राप्त होती है। भगवान भैरव को ध्यान और साधना में विशेष रूप से पूजा जाता है, क्योंकि वे ध्यान के माध्यम से भक्तों को आंतरिक शांति प्रदान करते हैं।
काल भैरव: समय के स्वामी
भैरव जी को काल भैरव के नाम से भी जाना जाता है, जो समय के स्वामी हैं। वे समय के चक्र को नियंत्रित करते हैं और भक्तों को समय की अनिश्चितताओं से बचाते हैं। काल भैरव की पूजा करने से जीवन में समय की बाधाओं, विलंब, असफलताएँ और चिंता का नाश होता है। भक्त उनके कृपा से समय की शक्ति को समझकर उसका सही उपयोग करने में सक्षम हो जाते हैं।
पूजा पद्धति
श्री भैरव जी की पूजा कैसे करें?
भैरव जी की पूजा में विशेष नियमों का पालन किया जाता है। यहां कुछ महत्वपूर्ण पूजा विधियों का उल्लेख है:
- मंगलवार और रविवार का विशेष महत्त्व: भगवान भैरव की पूजा के लिए मंगलवार और रविवार को विशेष रूप से शुभ माना जाता है। इन दिनों में भक्त भैरव जी के मंदिर में जाकर या घर पर उनके नाम का स्मरण करते हुए विशेष आराधना करते हैं।
- सरल पूजा सामग्री: भगवान भैरव को प्रसन्न करने के लिए कुछ विशेष सामग्री जैसे नारियल, काला तिल, गुड़, सरसों का तेल, और सफेद या काले रंग का वस्त्र चढ़ाना अत्यधिक फलदायी माना जाता है। इन चीजों को अर्पित करके भक्त भैरव जी से कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
- कुत्ते का महत्त्व: भगवान भैरव का वाहन कुत्ता है, और इसे उनका प्रिय माना जाता है। भैरव जी की पूजा के दिन कुत्तों को भोजन कराना और उनका आशीर्वाद लेना भक्तों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इससे भगवान भैरव की कृपा जल्दी प्राप्त होती है।
- मंत्रों का जप: भैरव जी के विशेष मंत्रों का जप करना भी अत्यंत फलदायी होता है। “ॐ भैरवाय नमः” मंत्र का नियमित जप करने से भक्तों के जीवन से सभी नकारात्मकता दूर होती है और सुख-समृद्धि का आगमन होता है।
श्री भैरव जी की स्तुति का महत्त्व
श्री भैरव चालीसा को प्रतिदिन या विशेष अवसरों पर पढ़ने से जीवन में शुभता और संकटों से मुक्ति मिलती है। यह चालीसा जीवन के सभी क्षेत्रों में सुरक्षा प्रदान करती है। भक्तों का यह विश्वास है कि चालीसा का नियमित पाठ करने से:
- शत्रु नाश: भगवान भैरव शत्रु नाशक माने जाते हैं। उनकी स्तुति करने से सभी शत्रुओं का अंत होता है और भक्त निर्भय होकर जीवन में आगे बढ़ते हैं।
- न्याय में विजय: भैरव जी को न्याय के देवता के रूप में भी जाना जाता है। कानूनी मामलों, विवादों या संघर्षों में उनकी पूजा करने से विजय प्राप्त होती है।
- नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति: भैरव जी भूत-प्रेतों और नकारात्मक शक्तियों का नाश करने वाले देवता हैं। उनकी आराधना से घर और जीवन से नकारात्मक शक्तियाँ दूर होती हैं और शांति का वास होता है।
- भय और असुरक्षा का नाश: जो लोग जीवन में भय और असुरक्षा का अनुभव करते हैं, उनके लिए भैरव जी की पूजा विशेष लाभकारी होती है। उनकी कृपा से भक्त निर्भय और आत्मविश्वासी हो जाते हैं।
श्री भैरव जी के स्वरूप की विशेषताएँ
भगवान भैरव का स्वरूप अत्यंत अद्भुत और भयमुक्त करने वाला है। उनके विशेष लक्षण और प्रतीकात्मकता भक्तों को उनकी महानता का अहसास कराते हैं:
- त्रिशूल: भगवान भैरव के हाथ में त्रिशूल होता है, जो त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) का प्रतिनिधित्व करता है। त्रिशूल की शक्ति से वे सभी बुराइयों और राक्षसी शक्तियों का नाश करते हैं।
- डमरू: डमरू भगवान शिव और भैरव का एक प्रमुख प्रतीक है, जो सृजन और विनाश का संतुलन दर्शाता है। डमरू की ध्वनि से सृष्टि का आरंभ और अंत होता है।
- काला कुत्ता: काला कुत्ता भगवान भैरव का वाहन है और वह सुरक्षा और विश्वास का प्रतीक है। यह उनके उस रूप का प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें वे भक्तों के जीवन में रक्षा का काम करते हैं और दुश्मनों से सुरक्षा प्रदान करते हैं।