मुख्य बिंदु
- – गीत में बाँके बिहारी (कृष्ण) के सपनों में आने का वर्णन है, जिससे कवयित्री का होश उड़ जाता है।
- – कवयित्री कृष्ण के नाम का जाप करती हुई झूमती और नाचती है, उनकी भक्ति और प्रेम की भावना प्रकट होती है।
- – सपनों में वृन्दावन की सैर और कृष्ण की मुरली की मधुर धुन का आनंद लिया जाता है।
- – कृष्ण की सुंदरता, जैसे मुकुट पर मोरपंख और गालों की लाली, कवयित्री को मंत्रमुग्ध कर देती है।
- – कविता में कृष्ण के प्रति लगन और प्रेम की गहराई को किशोरी की हैरानी के माध्यम से दर्शाया गया है।
- – समग्र रूप से यह गीत कृष्ण भक्ति और उनके प्रति प्रेम की भावनाओं का सुंदर चित्रण है।

भजन के बोल
आये सपने में बांके बिहारी,
ना होश मेरी होश में रही,
जाऊं सपने में उनको निहारी,
इसीलिए खामोश मैं रही,
आये सपने में बाँके बिहारी,
ना होश मेरी होश में रही ॥
झूम झूम मैं तो बस नाचती रही,
कृष्ण कृष्ण कृष्ण बस कहती रही,
नज़रो से बातें मैं करती गई,
कृष्ण कृष्ण कृष्ण बस कहती रही,
संग खेल मेरे रंगो की होली,
कि सखी मेरी रात हो गई,
आये सपने में बाँके बिहारी,
ना होश मेरी होश में रही ॥
आँखों में काजल हाथो में बंसी,
मुकुट पे मोरपंख गालों पे लाली,
देख प्यारी मुस्कान मैं तो बोली,
की श्याम की दीवानी हो गई,
आये सपने में बाँके बिहारी,
ना होश मेरी होश में रही ॥
सारी रात वृन्दावन घूमती रही,
कृष्ण कृष्ण कृष्ण बस कहती रही,
बंसी जो बजाई ऐसी मुरली वाले ने,
मैं नाच नाच नाच बस नाचती गई,
ऐसी देख के लगन मेरी श्याम से,
किशोरी भी हैरान हो गई,
आये सपने में बाँके बिहारी,
ना होश मेरी होश में रही ॥
आये सपने में बांके बिहारी,
ना होश मेरी होश में रही,
जाऊं सपने में उनको निहारी,
इसीलिए खामोश मैं रही,
आये सपने में बाँके बिहारी,
ना होश मेरी होश में रही ॥
