मुख्य बिंदु
- – इस भजन में सद्गुरु के प्रति गहरा सम्मान और आभार व्यक्त किया गया है, जो आनंद और खुशियाँ बरसाते हैं।
- – सद्गुरु के दर्शन को धन और भाग्य की प्राप्ति माना गया है, जो भारत भूमि को पावन बनाते हैं।
- – सद्गुरु का रूप अनुपम और मोहक बताया गया है, जो तारों के बीच चाँद जैसा है।
- – सद्गुरु की वाणी को अमृतधारा और मधुर संगीत के समान माना गया है, जो ज्ञान और प्रेम की वर्षा करती है।
- – गुरु के ज्ञान और प्रेम से जीवन में एक सुंदर बगीचा खिल उठता है, जो आध्यात्मिक समृद्धि का प्रतीक है।
- – भजन में बार-बार यह भाव व्यक्त किया गया है कि ऐसा सद्गुरु पाना अत्यंत सौभाग्य की बात है, जो रघुवर (भगवान) की कृपा से संभव हुआ है।
भजन के बोल
आनंद ही आनंद बरस रहा
बलिहारी ऐसे सद्गुरु की ।
आनंद ही आनंद बरस रहा
बलिहारी ऐसे सद्गुरु की ।
धन भाग्य हमारे आज हुए
शुभ दर्शन ऐसे सद्गुरु के ।
पावन कीनी भारत भूमि
बलिहारी ऐसे सद्गुरु की ॥
आनंद ही आनंद बरस रहा
बलिहारी ऐसे सद्गुरु की ।
क्या रूप अनुपम पायो है
जैसे तारो बीच है चंदा ।
सुरत मूरत मोहन वारी
बलिहारी ऐसे सद्गुरु की ॥
आनंद ही आनंद बरस रहा
बलिहारी ऐसे सद्गुरु की ।
क्या ज्ञान छटा है जैसे इंद्र घटा
बरसत वाणी अमृतधारा ।
वो मधुरी मधुरी अजब धुनी
बलिहारी ऐसे सद्गुरु की ॥
आनंद ही आनंद बरस रहा
बलिहारी ऐसे सद्गुरु की ।
गुरु ज्ञान रूपी जल बरसाकर
गुरु धर्म बगीचा लगा दिया ।
गुरु नाम रूपी जल बरसाकर
गुरु प्रेम बगीचा लगा दिया ।
खिल रही है कैसी फुलवारी
बलिहारी ऐसे सद्गुरु की ॥
आनंद ही आनंद बरस रहा
बलिहारी ऐसे सद्गुरु की ।
आनंद ही आनंद बरस रहा
बलिहारी ऐसे सद्गुरु की ।
आनंद ही आनंद बरस रहा
बलिहारी ऐसे सद्गुरु की ।
पाया पाया पाया,
मेने ऐसा सद्गुरु पाया ।
मेरे रघुवर कीपा किन्हीं
मेने ऐसा सद्गुरु पाया ।
पाया पाया पाया,
मेने ऐसा सद्गुरु पाया ।
मेरे रघुवर कीपा किन्हीं
मेने ऐसा सद्गुरु पाया ।