मुख्य बिंदु
- – यह कविता माँ के प्रति गहरी श्रद्धा और प्रेम व्यक्त करती है, जहाँ कवि खुद को माँ के चरणों की धूल के कण के समान समर्पित करना चाहता है।
- – माँ की ममता और स्नेह को स्वर्ग से भी श्रेष्ठ बताया गया है, जो जीवन में सुख और शांति प्रदान करता है।
- – कवि अपने निर्धन और असहाय होने का उल्लेख करते हुए माँ से कृपा की प्रार्थना करता है और केवल भावनाओं से माँ को प्रसन्न करने की इच्छा रखता है।
- – माँ को एक ऐसा अस्तित्व बताया गया है जो बेटे के दुःख में रोती है और उसकी हर मुसीबत को अपने सीने पर उठाती है।
- – माँ की ममता को जीवन में रस और उजाला देने वाला बताया गया है, जिसकी महिमा कवि दिन-रात गाने की इच्छा रखता है।
- – समर्पण और भक्ति की भावना के साथ, कवि माँ की छाया में सिमटने और उनके चरणों से जुड़ने की इच्छा प्रकट करता है।

भजन के बोल
बनकर के धूल के कण,
चरणों से लिपट जाऊं,
तेरे आँचल की छैया,
मैं आके सिमट जाऊं,
बनकर के धुल के कण,
चरणों से लिपट जाऊं ॥
तेरी गोद माँ ऐसी है,
है स्वर्ग के सुख फीके,
जिसको तूने गोद लिया,
वो दीये जलाए घी के,
तेरी ममता पाने को,
तेरा ध्यान मैं लगाऊं,
बनकर के धुल के कण,
चरणों से लिपट जाऊं ॥
धन हिन मैं निर्धन,
साधन है पास नहीं,
कुछ कृपा करो ऐसी,
टूटे विश्वास नहीं,
बस भाव के फूलों से,
तुमको मैं रिझाऊं,
बनकर के धुल के कण,
चरणों से लिपट जाऊं ॥
माँ ही तो है एक ऐसी,
मेरे दुःख में जो रोती,
बेटे की मुसीबत को,
सीने पर ढोती है,
अहसान तेरे लाखों,
कैसे इनको चुकाऊं,
बनकर के धुल के कण,
चरणों से लिपट जाऊं ॥
चाहत माँ नहीं कोई,
दुनिया रोशन कर दे,
इस नीरस जीवन में,
रस ममता का भर दे,
‘बेधड़क’ तेरी महिमा,
दिन रात मैं माँ गाऊं,
बनकर के धुल के कण,
चरणों से लिपट जाऊं ॥
बनकर के धूल के कण,
चरणों से लिपट जाऊं,
तेरे आँचल की छैया,
मैं आके सिमट जाऊं,
बनकर के धुल के कण,
चरणों से लिपट जाऊं ॥
