मुख्य बिंदु
- – यह गीत मिथिला की ससुराली खुशियों और सांस्कृतिक समृद्धि का वर्णन करता है, जहां ससुराल में सुख-शांति का माहौल है।
- – ससुराल में रोज़ सुबह उबटन और इत्र से नहाने की परंपरा है, जिससे तन-मन सुंदर और स्वस्थ रहता है।
- – यहाँ के व्यंजन स्वादिष्ट और मनभावन होते हैं, जो भूख बढ़ाते हैं और परिवार में प्रेम बढ़ाते हैं।
- – कमला, विमला और दूधमती नदियों के किनारे झूलों पर सावन में कजरी गाने का आनंद लिया जाता है।
- – पवन देव से प्रार्थना की जाती है कि बहु धीरे-धीरे और प्यार से परिवार में घुले-मिले।
- – गीत में ससुराल की महत्ता और वहां के रिश्तों की गहराई को दर्शाते हुए, बहू से आग्रह किया गया है कि वह इसी मिथिला में रहे और खुश रहे।

भजन के बोल
ए पहुना एही मिथिले में रहु ना,
जउने सुख बा ससुरारी में,
तउने सुखवा कहूं ना,
ऐ पहुना एही मिथिले में रहु ना ॥
रोज सवेरे उबटन मलके,
इत्तर से नहवाइब,
एक महीना के भीतर,
करिया से गोर बनाइब,
झूठ कहत ना बानी तनिको,
मौका एगो देहु ना,
ऐ पहुना एही मिथिले में रहु ना ॥
नित नवीन मन भावन व्यंजन,
परसब कंचन थारी,
स्वाद भूख बढ़ि जाई,
सुनि सारी सरहज की गारी,
बार-बार हम करब चिरौरी,
औरी कुछ ही लेहू ना,
ऐ पहुना एही मिथिले में रहु ना ॥
कमला विमला दूधमती में,
झिझरी खूब खेलाईब,
सावन में कजरी गा गा के,
झूला रोज झुलाईब,
पवन देव से करब निहोरा,
हउले- हउले बहु ना,
ऐ पहुना एही मिथिले में रहु ना ॥
हमरे निहोरा रघुनंदन से,
माने या ना माने,
पर ससुरारी के नाते,
परताप को आपन जाने,
या मिथिले में रहि जाइयो या,
संग अपने रख लेहु ना,
ऐ पहुना एही मिथिले में रहु ना ॥
ए पहुना एही मिथिले में रहु ना,
जो आनंद विदेह नगर में,
देह नगर में कहुं ना,
ऐ पहुना एही मिथिले में रहु ना ॥
