धरता प्रभु का ध्यान,
चरणों का दास माता,
नाम मेरा हनुमान,
चरणों का दास माता,
नाम मेरा हनूमान ॥
राम नाम का प्यारा,
रोम रोम में बसा हुआ,
कौशल्या राज दुलारा,
अवधपुरी का सितारा मेरा,
अवधपुरी की शान,
चरणों का दास माता,
नाम मेरा हनूमान ॥
माया से नही बनी अंगूठी,
बनी अवध के धाम की,
जनक नंदनी लेकर आया,
आज निशानी राम की,
मेरे प्रभु श्री राम की तू,
कर ले माँ पहचान,
चरणों का दास माता,
नाम मेरा हनूमान ॥
ब्रह्मरूप वनवासी योगी,
मुनियो के हितकारी,
रक्षा करी थी यज्ञ की जाकर,
मारे दुष्टाचारी,
अहिल्या पार उतारी नारी,
बनकर करुणा निधान,
चरणों का दास माता,
नाम मेरा हनूमान ॥
हाथ जोड़कर के विनती करता,
धरता प्रभु का ध्यान,
चरणों का दास माता,
नाम मेरा हनुमान,
चरणों का दास माता,
नाम मेरा हनूमान ॥
भजन: नाम मेरा हनुमान – गहन विश्लेषण
यह भजन न केवल भगवान हनुमान की स्तुति है, बल्कि उनके व्यक्तित्व, उनकी भक्ति, और उनके जीवन से मिलने वाले आध्यात्मिक संदेश का गहन चित्रण करता है। इसमें हर पंक्ति में भक्त और भगवान के बीच के संबंध, धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा, और भक्ति की विविध अभिव्यक्तियों का समावेश है। आइए प्रत्येक पंक्ति और उसके निहितार्थ को गहराई से समझते हैं।
हाथ जोड़कर के विनती करता, धरता प्रभु का ध्यान
अर्थ और संदेश:
यह पंक्ति भक्त के विनम्र और समर्पित मनोभाव को दर्शाती है।
- “हाथ जोड़कर के विनती करता” में भक्ति के सबसे बड़े गुण – विनम्रता और समर्पण – को व्यक्त किया गया है। यह दिखाता है कि हनुमानजी की भक्ति में अहंकार के लिए कोई स्थान नहीं है।
- “धरता प्रभु का ध्यान” से पता चलता है कि ध्यान केवल साधना का हिस्सा नहीं है, बल्कि भगवान के प्रति स्थायी जागरूकता और स्मरण है। यह ध्यान हनुमानजी के जीवन का आधार है और उनके हर कार्य की प्रेरणा।
गहरी व्याख्या:
हनुमानजी के ध्यान का स्वरूप केवल मानसिक चिंतन तक सीमित नहीं है। वे हर पल श्रीराम के नाम का जाप, उनके कार्यों का अनुसरण, और उनके आदेशों का पालन करते हैं। यह हमें सिखाता है कि ध्यान केवल मंदिर में किया जाने वाला कार्य नहीं है, बल्कि जीवन का हर क्षण भगवान के प्रति समर्पित होना चाहिए।
चरणों का दास माता, नाम मेरा हनुमान
अर्थ और संदेश:
यह पंक्ति भगवान राम के प्रति हनुमानजी के निःस्वार्थ सेवाभाव को दर्शाती है।
- “चरणों का दास” में यह बताया गया है कि भक्ति का सबसे शुद्ध रूप सेवा है। हनुमानजी स्वयं को भगवान के चरणों का सेवक मानते हैं, जो यह दर्शाता है कि उनकी पूरी पहचान प्रभु की सेवा में है।
- “नाम मेरा हनुमान” यह बताता है कि उनकी संपूर्ण शक्ति, पहचान, और अस्तित्व केवल श्रीराम से जुड़े हुए हैं।
गहरी व्याख्या:
हनुमानजी का “चरणों का दास” होना, दास्य भक्ति का आदर्श रूप है। भक्ति के नौ रूपों (नवधा भक्ति) में से यह एक महत्वपूर्ण रूप है, जिसमें भक्त खुद को भगवान का सेवक मानकर उनकी सेवा करता है। हनुमानजी का यह समर्पण हमें अहंकार को त्यागकर निःस्वार्थ सेवा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
ईष्ट देव मेरे दशरथ नंदन, राम नाम का प्यारा
अर्थ और संदेश:
हनुमानजी के आराध्य केवल श्रीराम हैं, और उनके प्रति उनका प्रेम अनन्य है।
- “ईष्ट देव मेरे दशरथ नंदन” में यह स्पष्ट है कि हनुमानजी के जीवन का केंद्र और लक्ष्य केवल भगवान राम हैं।
- “राम नाम का प्यारा” से यह व्यक्त होता है कि भगवान का नाम भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना उनका स्वरूप।
गहरी व्याख्या:
यह पंक्ति भक्ति के उस स्तर को दर्शाती है, जहाँ भक्त और भगवान के बीच अलगाव समाप्त हो जाता है। हनुमानजी केवल भगवान राम को नहीं, बल्कि उनके नाम को भी उतना ही प्रिय मानते हैं। यह हमें यह सिखाता है कि भगवान के नाम का जाप भी एक शक्तिशाली साधना है, जो हमें उनसे जोड़ सकता है। राम नाम का महत्व संत तुलसीदास ने भी “राम नाम मणि दीप धरू…” जैसी पंक्तियों में स्पष्ट किया है।
रोम रोम में बसा हुआ, कौशल्या राज दुलारा
अर्थ और संदेश:
यह पंक्ति हनुमानजी की भक्ति के गहनतम स्तर को दर्शाती है।
- “रोम रोम में बसा हुआ” का तात्पर्य है कि हनुमानजी का हर कण, हर श्वास भगवान राम से प्रेरित और प्रभावित है।
- “कौशल्या राज दुलारा” श्रीराम की मधुर और पवित्र छवि को दर्शाता है, जो भक्तों के हृदय को शीतलता और आनंद देती है।
गहरी व्याख्या:
भक्त की पहचान उसके आराध्य से होती है। हनुमानजी के लिए भगवान राम केवल आराध्य नहीं, बल्कि उनके अस्तित्व का अभिन्न हिस्सा हैं। “रोम रोम में बसा हुआ” भक्ति का वह चरम है जहाँ शरीर, मन, और आत्मा, तीनों भगवान के लिए समर्पित हो जाते हैं। यह भक्ति का आदर्श है, जिसमें हर सांस भगवान का स्मरण करती है।
अवधपुरी का सितारा मेरा, अवधपुरी की शान
अर्थ और संदेश:
यह पंक्ति भगवान राम के महत्व और उनकी उपस्थिति से अयोध्या की गरिमा को दर्शाती है।
- “अवधपुरी का सितारा मेरा” का अर्थ है कि श्रीराम अयोध्या नगरी के गौरव और दिव्यता के प्रतीक हैं।
- “अवधपुरी की शान” से पता चलता है कि भगवान राम की उपस्थिति से अयोध्या पूजनीय और विशिष्ट बनती है।
गहरी व्याख्या:
यह पंक्ति यह भी बताती है कि भक्त के लिए उसका आराध्य ही सबकुछ है। हनुमानजी के लिए अयोध्या केवल एक स्थान नहीं है; यह उनके आराध्य श्रीराम का निवास है। यह हमें यह सिखाता है कि भगवान का निवास स्थान भी उतना ही पवित्र है जितना उनका स्वरूप।
माया से नही बनी अंगूठी, बनी अवध के धाम की
अर्थ और संदेश:
यह पंक्ति भक्ति और प्रेम के प्रतीक को व्यक्त करती है।
- “माया से नहीं बनी अंगूठी” का तात्पर्य यह है कि हनुमानजी का प्रेम और सेवा सांसारिक माया से परे है।
- “बनी अवध के धाम की” से पता चलता है कि उनकी सेवा और भक्ति केवल प्रभु राम के पवित्र धाम और उनके प्रति समर्पण के लिए है।
गहरी व्याख्या:
यह पंक्ति सांसारिक मोह-माया से ऊपर उठने और भगवान के प्रति सच्चे प्रेम और भक्ति का प्रतीक है। माया से बनी वस्तुएँ क्षणभंगुर होती हैं, लेकिन भगवान के प्रति भक्ति और प्रेम शाश्वत होते हैं। हनुमानजी का यह दृष्टिकोण हमें सिखाता है कि भक्ति केवल भौतिक वस्तुओं से जुड़ी नहीं होनी चाहिए, बल्कि आत्मिक स्तर पर होनी चाहिए।
जनक नंदनी लेकर आया, आज निशानी राम की
अर्थ और संदेश:
यह पंक्ति हनुमानजी की प्रभु श्रीराम के प्रति सेवा और उनकी भूमिका को दर्शाती है।
- “जनक नंदनी लेकर आया” से तात्पर्य है कि हनुमानजी माता सीता के पास प्रभु श्रीराम का संदेश और उनके प्रतीक लेकर आए।
- “आज निशानी राम की” यह दर्शाता है कि वह सिर्फ एक दूत नहीं, बल्कि रामजी की निशानी और उनके प्रेम का प्रतीक लेकर आए थे।
गहरी व्याख्या:
हनुमानजी के इस कार्य में कई आयाम छिपे हैं:
- प्रेम का दूत:
हनुमानजी केवल संदेशवाहक नहीं थे। वे माता सीता को यह याद दिलाने आए थे कि प्रभु श्रीराम हर पल उनके साथ हैं। - भक्त और भगवान का संबंध:
हनुमानजी ने एक माध्यम बनकर यह दिखाया कि भक्त और भगवान के बीच का रिश्ता कभी भौतिक सीमाओं से नहीं बंधा होता। - दृढ़ता और कर्तव्य:
रावण की लंका में प्रवेश करना और माता सीता तक पहुँचने का कार्य असाधारण था। यह हनुमानजी के साहस और दृढ़ता का प्रमाण है।
मेरे प्रभु श्री राम की तू, कर ले माँ पहचान
अर्थ और संदेश:
हनुमानजी यहाँ माता सीता से आग्रह कर रहे हैं कि वे श्रीराम के महत्व और उनकी पहचान को समझें।
- “मेरे प्रभु श्री राम की तू” का तात्पर्य है कि भगवान राम केवल माता सीता के पति नहीं, बल्कि समस्त सृष्टि के स्वामी हैं।
- “कर ले माँ पहचान” में हनुमानजी का अनुरोध है कि माता श्रीराम के गुणों और उनकी शक्ति को याद करें और विश्वास रखें।
गहरी व्याख्या:
यह पंक्ति भक्ति और विश्वास का प्रतीक है।
- विश्वास का संदेश:
कठिन समय में भगवान पर विश्वास बनाए रखना भक्ति का मूल है। माता सीता को अपने दुख और कष्टों के बीच श्रीराम पर भरोसा बनाए रखने का यह एक भावनात्मक संदेश है। - ईश्वर की पहचान:
हनुमानजी हमें सिखाते हैं कि भक्ति केवल भगवान के स्वरूप तक सीमित नहीं है, बल्कि उनके गुण, कर्तव्य, और शक्ति को पहचानने में है।
ब्रह्मरूप वनवासी योगी, मुनियों के हितकारी
अर्थ और संदेश:
यह पंक्ति हनुमानजी के ब्रह्मज्ञान और उनके तपस्वी स्वरूप को उजागर करती है।
- “ब्रह्मरूप वनवासी योगी” से तात्पर्य है कि हनुमानजी ब्रह्म के स्वरूप को धारण किए हुए हैं। वे योग और तपस्या में सिद्धहस्त हैं।
- “मुनियों के हितकारी” से यह पता चलता है कि हनुमानजी हमेशा धर्म और तपस्वियों की रक्षा करते हैं।
गहरी व्याख्या:
हनुमानजी के इस पक्ष में उनके व्यक्तित्व के तीन महत्वपूर्ण पहलू दिखते हैं:
- ब्रह्मरूप:
वे केवल एक दूत या योद्धा नहीं, बल्कि स्वयं ब्रह्म के स्वरूप का प्रतीक हैं। - योगी जीवन:
हनुमानजी का जीवन त्याग, तपस्या, और ब्रह्मचर्य का आदर्श उदाहरण है। - रक्षक:
मुनियों और संतों के लिए वे एक रक्षक और धर्म के संरक्षक हैं।
रक्षा करी थी यज्ञ की जाकर, मारे दुष्टाचारी
अर्थ और संदेश:
यह पंक्ति हनुमानजी के पराक्रम और उनके धर्मरक्षक स्वरूप को प्रस्तुत करती है।
- “रक्षा करी थी यज्ञ की जाकर” से तात्पर्य है कि उन्होंने ऋषि-मुनियों के यज्ञ को दुष्टों के आक्रमण से बचाया।
- “मारे दुष्टाचारी” यह दर्शाता है कि उन्होंने धर्म के मार्ग में आने वाले असुरों और अधर्मियों का नाश किया।
गहरी व्याख्या:
हनुमानजी के इस कार्य से हमें तीन महत्वपूर्ण संदेश मिलते हैं:
- धर्म की रक्षा:
धर्म की रक्षा करना हनुमानजी का प्रमुख कर्तव्य है। - साहस और पराक्रम:
कठिन परिस्थितियों में भी साहस के साथ धर्म का पालन और उसकी रक्षा करना ही सच्चा पराक्रम है। - यज्ञ का महत्व:
यज्ञ, जो कि धर्म और संतुलन का प्रतीक है, उसे बचाने का कार्य हनुमानजी के धर्मरक्षक स्वरूप को दिखाता है।
अहिल्या पार उतारी नारी, बनकर करुणा निधान
अर्थ और संदेश:
यह पंक्ति भगवान श्रीराम के करुणामय स्वरूप और हनुमानजी के उनके संदेशवाहक रूप को दर्शाती है।
- “अहिल्या पार उतारी नारी” में भगवान राम के करुणा और उद्धार के गुण का उल्लेख है, जिसे हनुमानजी ने प्रचारित किया।
- “बनकर करुणा निधान” से पता चलता है कि हनुमानजी ने करुणा और दया के आदर्श को अपने जीवन में उतारा।
गहरी व्याख्या:
हनुमानजी केवल पराक्रमी योद्धा ही नहीं, बल्कि करुणा और दया के प्रतीक भी हैं।
- अहिल्या उद्धार की कथा:
अहिल्या, जो ऋषि गौतम द्वारा शापित थीं, भगवान राम के चरण स्पर्श से मुक्त हो गईं। इस घटना ने यह संदेश दिया कि भगवान अपने भक्तों के हर कष्ट का अंत कर सकते हैं। - हनुमानजी का संदेश:
हनुमानजी ने अपने कार्यों से करुणा और दया का संदेश फैलाया। यह हमें सिखाता है कि शक्ति के साथ दया का होना आवश्यक है।
हाथ जोड़कर के विनती करता, धरता प्रभु का ध्यान
यह भजन की पुनरावृत्ति है, लेकिन इसके माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि भक्ति का मार्ग निरंतरता और समर्पण का मार्ग है।
- विनम्रता:
भजन में बार-बार हाथ जोड़ने और विनती करने का उल्लेख, भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण और अहंकार का त्याग सिखाता है। - ध्यान का महत्व:
प्रभु के चरणों में ध्यान लगाना ही हर संकट का समाधान और शांति का स्रोत है।
समग्र दृष्टिकोण
इस भजन के माध्यम से भगवान हनुमान के जीवन के हर पहलू – भक्ति, साहस, करुणा, सेवा, और पराक्रम – को उजागर किया गया है। यह भजन न केवल भगवान हनुमान की स्तुति है, बल्कि भक्तों के लिए एक मार्गदर्शक भी है।
यदि आप इस भजन के किसी और पहलू को गहराई से समझना चाहते हैं, तो पूछ सकते हैं।
