अब उठो जगो हे आर्यवीर! उत्ताल प्रचंड समरसिन्धु समीप,
हे सुभट-विकट-विकराल-काल, प्रखर-प्रबल-शूर-शस्त्रपाणि महीप,
विश्वहृदय यह भारत-भूषित, हम हैं इसके प्रहरी और प्रदीप,
हमारा प्यारा हिंदुद्वीप, हम हैं इसके प्रहरी और प्रदीप ॥
ब्रह्मर्षि दधीचि-कश्यप-गौतम, तुला-विदुर-लव्य-कायव्य कुलदीप,
गुरुकुल-गौरव रघुकुल-सौरभ, पुरुषोत्तम रामभद्र और दिलीप,
जनक-जानकी-जनजीवनधन, शुचि-सत्यशील-करुणासिंधु-सुदीप,
हमारा प्यारा हिंदुद्वीप, हम हैं इसके प्रहरी और प्रदीप ॥
श्रुति-सती-सन्त-सम-सत्यशील, मन्वादि राजर्षि भूपति अम्बरीष,
बंग-गंग-अरु इन्दु-मानसर, लंक-वर्म-विन्ध्य-सागर-सिंधु गिरीश,
गो-गुरु-द्विज-समर्चक अर्थ-अर्जक, कामपालक मोक्षरत कालातीत,
माता-पिता-अतिथि-परिपालक, देवसमर्चक आत्मरूप कर्मातीत,
हमारा प्यारा हिंदुद्वीप, हम हैं इसके प्रहरी और प्रदीप ॥
भजन: हमारा प्यारा हिंदुद्वीप
यह भजन भारत की गौरवशाली संस्कृति, इतिहास और परंपराओं का गान है। इसमें हिंदुस्तान को एक अद्वितीय और पवित्र द्वीप के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिसे उसकी भौगोलिक सुंदरता, ऐतिहासिक धरोहर और आध्यात्मिक ऊंचाइयों के लिए सराहा गया है। यह भजन न केवल भारत की महिमा का गुणगान करता है, बल्कि इसे संरक्षित करने और इसकी पहचान बनाए रखने का आह्वान भी करता है।
हमारा प्यारा हिंदुद्वीप, हम हैं इसके प्रहरी और प्रदीप
विस्तार से अर्थ
भजन की पहली पंक्ति “हमारा प्यारा हिंदुद्वीप” भारत को एक प्रिय और दिव्य भूमि के रूप में देखती है। यह भारत को केवल एक भौगोलिक क्षेत्र नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहचान के रूप में स्थापित करता है।
“हम हैं इसके प्रहरी और प्रदीप” का गहरा अर्थ यह है कि हर भारतीय का कर्तव्य है कि वह इस भूमि की रक्षा करे और इसे ज्ञान और प्रकाश से रोशन करे। प्रहरी का मतलब केवल रक्षक नहीं है, बल्कि यह हमारी जिम्मेदारी का प्रतीक है कि हम इसे आंतरिक और बाहरी खतरों से बचाएं। वहीं, प्रदीप का अर्थ है कि हमें अपने ज्ञान, कर्म और सेवा से इसे दिशा दिखानी है।
अब उठो जगो हे आर्यवीर!
गहन विश्लेषण
यह पंक्ति आर्यवीरों, यानी उन लोगों को संबोधित करती है, जो भारत के मूल निवासी और इसके संरक्षक हैं। “अब उठो जगो” केवल एक आह्वान नहीं है, यह भारतीय युवाओं और नागरिकों को उनके कर्तव्यों की याद दिलाने का प्रयास है। यह नींद या निष्क्रियता से जागकर सक्रिय रूप से राष्ट्र की सेवा में जुटने की प्रेरणा देता है।
“उत्ताल प्रचंड समरसिन्धु समीप” का अर्थ है कि यह भूमि समुद्र के किनारे बसी एक विशाल और जीवंत सभ्यता का प्रतीक है। समरसिन्धु, यानी एकता और समानता के महासागर, यह बताता है कि भारत विविधता में एकता का प्रतीक है। यह हमें हमारे साझा मूल्यों की रक्षा और उनके प्रति समर्पण का संदेश देता है।
हे सुभट-विकट-विकराल-काल
व्याख्या
इस पंक्ति में भारतीय योद्धाओं और उनकी वीरता का बखान है। “सुभट-विकट-विकराल-काल” उन योद्धाओं का चित्रण करता है जो शत्रु के लिए काल की तरह प्रचंड और अद्वितीय हैं।
“प्रखर-प्रबल-शूर-शस्त्रपाणि महीप” में इन वीरों को प्रखर (तेजस्वी), प्रबल (सशक्त), और शस्त्रपाणि (हथियार से लैस) कहा गया है। ये विशेषण न केवल उनकी बाहरी ताकत का बखान करते हैं, बल्कि यह भी दर्शाते हैं कि वे राष्ट्र के प्रति अपनी निष्ठा और समर्पण में अडिग हैं। यह भारत के अतीत की उन लड़ाइयों और संघर्षों की याद दिलाता है, जब हमारे वीर योद्धाओं ने अपने जीवन की परवाह किए बिना देश की रक्षा की।
विश्वहृदय यह भारत-भूषित
अर्थ और भाव
यह पंक्ति भारत की सार्वभौमिक भूमिका को रेखांकित करती है। “विश्वहृदय” का तात्पर्य यह है कि भारत केवल एक देश नहीं है; यह पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा और ज्ञान का स्रोत है।
“यह भारत-भूषित” का अर्थ है कि यह भूमि अपनी संस्कृति, परंपराओं और मूल्यों से दुनिया को सुशोभित करती है। भारत के ऋषियों, गुरुओं और संतों ने जो ज्ञान दिया है, वह न केवल भारतीय समाज, बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए अमूल्य है।
सबसे न्यारा सबका प्यारा
गहराई से विश्लेषण
“सबसे न्यारा” का मतलब है कि भारत अपनी विशेषताओं के कारण पूरी दुनिया में अद्वितीय है। इसकी सभ्यता, इतिहास और प्राकृतिक संपदा इसे सबसे प्यारा बनाती है।
“सबका प्यारा” का मतलब है कि भारत ने हमेशा विविध संस्कृतियों और परंपराओं को अपनाया है। यह पंक्ति इस बात को दर्शाती है कि भारत की महानता उसकी विविधता में निहित है, जिसने हर किसी को अपनाने और समानता देने का संदेश दिया है।
“सर्वसुमंगल सुशोभित सिंधु समीप” में यह कहा गया है कि यह भूमि हर प्रकार की शुभता और सुंदरता से भरपूर है। समुद्र के किनारे स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से भी एक अत्यंत महत्वपूर्ण और सौंदर्यपूर्ण स्थान है।
ब्रह्मर्षि दधीचि-कश्यप-गौतम
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भ
“ब्रह्मर्षि दधीचि-कश्यप-गौतम” जैसे ऋषि भारत की आध्यात्मिक और नैतिक विरासत के प्रतीक हैं। दधीचि ने अपनी हड्डियों को देकर देवताओं को वज्र बनाने में मदद की, जो बलिदान और सेवा का अद्भुत उदाहरण है।
कश्यप और गौतम जैसे ऋषियों ने धर्म और नैतिकता के सिद्धांतों को स्थापित किया। इस पंक्ति में इन महापुरुषों के योगदान को याद किया गया है और उनके आदर्शों को अपनाने का संदेश दिया गया है।
“तुला-विदुर-लव्य-कायव्य कुलदीप” में तुला और विदुर जैसे पात्रों का उल्लेख किया गया है। विदुर न्याय और सत्य के प्रतीक हैं। यह बताता है कि भारत में न्याय और धर्म की परंपरा कितनी गहरी है।
गुरुकुल-गौरव रघुकुल-सौरभ
गहन दृष्टिकोण
“गुरुकुल-गौरव” भारत की प्राचीन शिक्षा प्रणाली की महिमा को दर्शाता है। गुरुकुल भारतीय संस्कृति की रीढ़ रहे हैं, जहाँ केवल शिक्षा ही नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण और नैतिकता की शिक्षा भी दी जाती थी।
“रघुकुल-सौरभ” रघुकुल की महान परंपराओं और आदर्शों की बात करता है। रघुकुल की मर्यादा और उनके द्वारा स्थापित उच्च मानकों को यहाँ सराहा गया है।
“पुरुषोत्तम रामभद्र और दिलीप” का उल्लेख रघुकुल के महान राजाओं को श्रद्धांजलि देता है। रामभद्र मर्यादा पुरुषोत्तम और आदर्श राजा हैं, जबकि दिलीप सेवा और कर्तव्य के प्रतीक हैं।
जनक-जानकी-जनजीवनधन
विस्तृत व्याख्या
“जनक-जानकी-जनजीवनधन” में जनक और जानकी (सीता) जैसे आदर्श व्यक्तित्वों का उल्लेख है। जनक को सत्य और धर्म का प्रतीक माना जाता है, जबकि जानकी भारतीय नारी शक्ति, त्याग और करुणा का प्रतीक हैं। “जनजीवनधन” यह दर्शाता है कि ये महान चरित्र केवल इतिहास के पन्नों में नहीं, बल्कि हर भारतीय के जीवन और मूल्यों में बसे हुए हैं।
यह पंक्ति यह भी बताती है कि भारतीय समाज में शुचिता (पवित्रता), सत्यशीलता (सत्य का पालन), और करुणा (दया) को जीवन के सबसे महत्वपूर्ण गुण माना गया है। जनक और जानकी इन गुणों के मूर्त रूप थे, और इसलिए वे हमारी संस्कृति के आदर्श बने।
शुचि-सत्यशील-करुणासिंधु-सुदीप
गहन अर्थ
इस पंक्ति में “शुचि” का अर्थ है पवित्रता और शुद्धता। यह न केवल शारीरिक स्वच्छता, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक पवित्रता को भी दर्शाता है। “सत्यशील” से तात्पर्य है सत्य को जीवन का आधार बनाना। भारतीय संस्कृति में सत्य को परम धर्म कहा गया है।
“करुणासिंधु” का अर्थ है दया और करुणा का महासागर। यह पंक्ति इस बात की ओर संकेत करती है कि भारतीय समाज में करुणा और सहिष्णुता को सबसे बड़ा गुण माना गया है। “सुदीप” यहाँ एक ऐसे प्रकाश का प्रतीक है जो दूसरों को राह दिखाता है।
यह पंक्ति इस विचार को उजागर करती है कि भारतीय संस्कृति केवल भौतिक उन्नति पर ही नहीं, बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक उन्नति पर भी जोर देती है।
श्रुति-सती-सन्त-सम-सत्यशील
विवरण
“श्रुति” भारतीय वेदों और उपनिषदों का प्रतीक है, जो ज्ञान और धर्म का आधार हैं। वेदों में न केवल आध्यात्मिक ज्ञान, बल्कि भौतिक और नैतिक जीवन जीने के सिद्धांत भी बताए गए हैं।
“सती” भारतीय नारी की शक्ति और पवित्रता का प्रतीक है। सतीत्व को भारतीय संस्कृति में नारी का सबसे बड़ा गुण माना गया है। यह पंक्ति नारी शक्ति और उसकी महानता को रेखांकित करती है।
“सन्त-सम-सत्यशील” का अर्थ है वे संत और महात्मा जो सत्य के मार्ग पर चले और समाज को सत्य, अहिंसा, और सेवा का संदेश दिया। यह पंक्ति इन गुणों को अपनाने की प्रेरणा देती है।
मन्वादि राजर्षि भूपति अम्बरीष
गहरी व्याख्या
“मन्वादि” का अर्थ है वे महान ऋषि और राजा जिन्होंने भारतीय समाज के नियम और संरचना की नींव रखी। राजा मनु भारतीय धर्मशास्त्र के संस्थापक माने जाते हैं।
“राजर्षि भूपति अम्बरीष” का उल्लेख इस बात की ओर इशारा करता है कि भारत के शासक केवल राजनीतिक नेता नहीं थे; वे नैतिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शक भी थे। अम्बरीष जैसे राजा अपने त्याग, धर्म, और निष्ठा के लिए प्रसिद्ध थे।
यह पंक्ति भारतीय शासन प्रणाली के उन आदर्शों को दर्शाती है, जहाँ शासक केवल सत्ता के लिए नहीं, बल्कि समाज की सेवा और धर्म की रक्षा के लिए कार्य करते थे।
बंग-गंग-अरु इन्दु-मानसर
अर्थ और संदर्भ
“बंग” से बंगाल का, “गंग” से गंगा का, और “इन्दु-मानसर” से मानसरोवर झील और चंद्रमा का उल्लेख है। यह पंक्ति भारत की प्राकृतिक और सांस्कृतिक विविधता को उजागर करती है।
गंगा भारतीय सभ्यता का आधार है और इसे केवल एक नदी नहीं, बल्कि “माँ” के रूप में पूजा जाता है। बंगाल अपनी सांस्कृतिक समृद्धि और कला के लिए प्रसिद्ध है। “इन्दु-मानसर” भारत की आध्यात्मिक धरोहर और हिमालय की पवित्रता का प्रतीक है।
यह पंक्ति भारत की भौगोलिक और सांस्कृतिक सुंदरता को रेखांकित करती है और यह बताती है कि भारत की महानता केवल इसके इतिहास में ही नहीं, बल्कि इसकी प्रकृति और विविधता में भी है।
लंक-वर्म-विन्ध्य-सागर-सिंधु गिरीश
गहन विश्लेषण
“लंक” और “वर्म” से रामायण की कथा और महान भारतीय योद्धाओं का संदर्भ है। “विन्ध्य” भारतीय भूगोल का एक महत्वपूर्ण पर्वत है, जो शक्ति और दृढ़ता का प्रतीक है।
“सागर-सिंधु गिरीश” से यह संकेत मिलता है कि भारत केवल भूमि का टुकड़ा नहीं है, बल्कि इसके पास समुद्र, नदियों, और पहाड़ों के रूप में प्रकृति की अद्वितीय संपदा है। यह पंक्ति यह दर्शाती है कि भारत की भूमि, जल, और पर्वत, सबकुछ पवित्र और प्रेरणादायक हैं।
गो-गुरु-द्विज-समर्चक
विवरण
“गो-गुरु-द्विज” से गाय, गुरु और ब्राह्मण का संदर्भ है। गाय भारतीय समाज में पवित्रता और समृद्धि का प्रतीक है। गुरु ज्ञान के स्रोत और जीवन के मार्गदर्शक होते हैं। द्विज यानी ब्राह्मण, जो ज्ञान और धर्म के वाहक हैं।
“समर्चक” का अर्थ है पूजा और सम्मान करना। यह पंक्ति इस बात पर जोर देती है कि भारत की संस्कृति में इन तीनों का सम्मान और महत्व सबसे ऊपर है। यह पंक्ति भारत की उस परंपरा को रेखांकित करती है, जहाँ ज्ञान, सेवा और दया को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है।
माता-पिता-अतिथि-परिपालक
गहन दृष्टिकोण
इस पंक्ति में भारतीय संस्कृति के मूल आदर्शों का उल्लेख है। माता-पिता को देवता के रूप में पूजा जाता है और उनकी सेवा को सर्वोच्च कर्तव्य माना गया है। “अतिथि देवो भव” की परंपरा भारत की विशिष्टता है, जहाँ अतिथि को भगवान का स्थान दिया गया है।
“परिपालक” का अर्थ है संरक्षण और सेवा करना। यह पंक्ति हमें याद दिलाती है कि भारतीय संस्कृति में परिवार, समाज और मानवता के प्रति सेवा और समर्पण को प्राथमिकता दी गई है।
देवसमर्चक आत्मरूप कर्मातीत
व्याख्या
“देवसमर्चक” का मतलब है देवताओं की पूजा और उनका आदर करना। यह पंक्ति भारतीय समाज की आध्यात्मिकता और ईश्वर के प्रति अडिग विश्वास को दर्शाती है।
“आत्मरूप” का अर्थ है आत्मा को पहचानना और आत्मा के स्तर पर जीवन जीना। “कर्मातीत” का अर्थ है कर्म से परे जाना, यानी जीवन में ऐसे कार्य करना जो केवल भौतिक लाभ के लिए न हों, बल्कि उच्च आध्यात्मिक उद्देश्यों के लिए हों।
यह भजन गहन रूप से भारत की सांस्कृतिक, नैतिक, और आध्यात्मिक परंपराओं को प्रस्तुत करता है। इसके शेष पहलुओं और विस्तृत विवरण को अगले उत्तर में जारी रखेंगे।
