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- – यह भजन जीवन की नश्वरता और समय की महत्वता पर प्रकाश डालता है, जिसमें सांसें बीत रही हैं और समय वापस नहीं आता।
- – भजन में गुरु के नाम का स्मरण करने और आध्यात्मिक साधना करने की प्रेरणा दी गई है।
- – जीवन की क्षणभंगुरता को समझते हुए, युवावस्था और स्वास्थ्य का सदुपयोग करने का संदेश है।
- – परिवार और अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक होकर जीवन को सार्थक बनाने की बात कही गई है।
- – सांसों के गुजरने के साथ पछतावे से बचने के लिए अभी से सही मार्ग अपनाने का आग्रह किया गया है।
भजले नाम गुरू का रे मनवा,
बीत रही है स्वाँसा,
रात गई सुबहा आएगी,
आए न तेरी स्वाँसा।।
तर्ज – रुक जा रात ठहर जा रे चँदा।
करले जतन तू,
भव तरने का,
बीती जाए तेरी जवानी,
स्वाँस आखिरी,
जब आएगी,
पछिताएगा तब तू प्राणी,
भजलें नाम गुरू का रे मनवा,
बीत रही है स्वाँसा।।
आज मिला है,
नर तन तुझको,
शायद फिर ये कल न पाए,
एक एक कर ये,
स्वाँसे बीते,
फिर ये बापस आए न आए,
भजलें नाम गुरू का रे मनवा,
बीत रही है स्वाँसा।।
घरवालो के,
सुख की खातिर,
खो दी है तू ने जिन्दगानी,
अपनी खातिर,
कुछ न किया अब,
क्या ले जाएगा तू प्राणी,
भजलें नाम गुरू का रे मनवा,
बीत रही है स्वाँसा।।
भजले नाम गुरू का रे मनवा,
बीत रही है स्वाँसा,
रात गई सुबहा आएगी,
आए न तेरी स्वाँसा।।
– भजन लेखक एवं प्रेषक –
श्री शिवनारायण वर्मा,
मोबा.न.8818932923
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