- – सत्संग का महत्व अत्यंत है, जो व्यक्ति सत्संग में डूबता है, उसके सारे पाप कट जाते हैं।
- – द्वारका, काशी, प्रयाग जैसे तीर्थों में स्नान करने से मोक्ष नहीं मिलता, पर सत्संग में रहना मोक्ष का मार्ग है।
- – पुराण और ग्रंथों में भी सत्संग का महत्त्व बताया गया है, जो इसे अपनाता है वह बच जाता है।
- – संतों के संग में मिलना जन्मों के पापों को धो देता है और मन को शुद्ध करता है।
- – सत्संग से व्यक्ति कल्याण पाता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- – सत्संग का दरिया भरा है, जिसे मन चाहे, उसमें नहाकर आत्मा की शुद्धि कर सकता है।

भरा सत्संग का दरिया,
नहालो जिसका जी चाहे।।
दोहा – एक घड़ी आधी घड़ी,
आधी में पुनिआध,
तुलसी सत्संग साध कि,
कटे करोड़ अपराध।
भरा सत्संग का दरिया,
नहालो जिसका जी चाहे।।
द्वारका काशी जावोगे,
गया प्रयाग न्हावोगे,
नहीं वहाँ मोक्ष पावोगे,
फिर आना जिसका जी चाहे,
भरा सत्संग का दरियाँ,
नहालो जिसका जी चाहे।।
तीर्थ कहूं ऐसा नहीं होवै,
पुराण और ग्रंथों में गावे,
अगर्च निश्चय नहिं होवे,
बचाना जिसका जी चाहे,
भरा सत्संग का दरियाँ,
नहालो जिसका जी चाहे।।
समागम सन्तों का होवे,
पाप जन्मांत्र का खोवे,
जिगर दिल दाग सब धोवे,
धुपाना जिसका जी चाहे,
भरा सत्संग का दरियाँ,
नहालो जिसका जी चाहे।।
भारती कल्याण यों गावे,
सदा सत्संग मन भावे,
सत्संग से मोक्ष पद पावे,
कराना जिसका जी चाहे,
भरा सत्संग का दरियाँ,
नहालो जिसका जी चाहे।।
भरा सत्संग का दरियाँ,
नहालो जिसका जी चाहे।।
गायक / प्रेषक – मनोहर परसोया।
कविता साउँण्ड किशनगढ़।
