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- – यह गीत भेरूजी के प्रति श्रद्धा और भक्ति व्यक्त करता है, जो दुखों को दूर करने वाले देवता के रूप में पूजे जाते हैं।
- – गीत में भेरूजी के द्वार पर आने और उनकी सहायता मांगने की बात कही गई है, जो भक्तों की विपदा दूर करते हैं।
- – जेठ मास में भेरूजी के जागरण का वर्णन है, जब सभी जाति के लोग उनके द्वार पर आते हैं और भजन-कीर्तन करते हैं।
- – ढोल-नगाड़ों की धुन पर भेरूजी के स्वागत और नृत्य का चित्रण किया गया है, जो उत्सव और भक्ति का माहौल बनाता है।
- – गीत में भेरूजी को “कंकाली का लाल” कहा गया है, जो उनकी दिव्यता और शक्ति को दर्शाता है।
- – लेखक धर्मेंद्र तंवर ने इस गीत के माध्यम से भेरूजी के प्रति आस्था और श्रद्धा को सुंदर रूप में प्रस्तुत किया है।

भेरूजी थारा द्वार पे,
आयो हूँ दुखड़ा टार दे,
कंकाली रा लाल भेरू जी,
ऊबो थारे बारणे,
भेरू जी थारा द्वार पे।।
जेठ मास थारो जागण वेला,
सब जातरी द्वार पे वेला,
ऐ मैं तो जागण देऊ सारी रात ने,
भेरू जी थारा द्वार पे।।
द्वार-द्वार मैं गयो रे भेरूजी,
कोई न हेलो सुणियो भेरू जी,
ओ मारा शिशोदा सरकार ने,
भेरू जी थारा द्वार पे।।
ढोल नगाड़ा नोपत बाजे,
खम्मा खम्मा मारा भेरूजी नाचे,
ओ मारी विपदा देवो टार ने,
भेरू जी थारा द्वार पे।।
गावे जावे हेले आवे,
धरम तंवर थारा भजन सुनावे,
ओ भेरू बेगा आवो पाट पे,
भेरू जी थारा द्वार पे।।
भेरूजी थारा द्वार पे,
आयो हूँ दुखड़ा टार दे,
कंकाली रा लाल भेरू जी,
ऊबो थारे बारणे,
भेरू जी थारा द्वार पे।।
गायक / लेखक – धर्मेंद्र तंवर उदयपुर।
9829202569
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