द्विज ब्रह्म तेजधारी ।
क्षत्रिय महारथी हों,
अरिदल विनाशकारी ॥
होवें दुधारू गौएँ,
पशु अश्व आशुवाही ।
आधार राष्ट्र की हों,
नारी सुभग सदा ही ॥
बलवान सभ्य योद्धा,
यजमान पुत्र होवें ।
इच्छानुसार वर्षें,
पर्जन्य ताप धोवें ॥
फल-फूल से लदी हों,
औषध अमोघ सारी ।
हों योग-क्षेमकारी,
स्वाधीनता हमारी ॥
ब्रह्मन्! स्वराष्ट्र में हों: एक गहन अध्ययन
यह भजन न केवल एक प्रार्थना है, बल्कि हमारे आदर्श समाज और राष्ट्र की संरचना का एक आदर्श मॉडल भी प्रस्तुत करता है। प्रत्येक पंक्ति में आध्यात्मिकता, सामाजिक संरचना, पर्यावरण, और आर्थिक समृद्धि के साथ-साथ स्वाधीनता की परिकल्पना छिपी हुई है। इसे गहराई से समझने के लिए, हम हर पंक्ति और शब्द पर गहन दृष्टि डालते हैं।
ब्रह्मन्! स्वराष्ट्र में हों, द्विज ब्रह्म तेजधारी
ब्रह्मन्! स्वराष्ट्र में हों:
- इस पंक्ति में ‘ब्रह्मन्’ का उल्लेख ब्रह्म (परम सत्ता) या ज्ञान के मूल स्रोत के रूप में किया गया है।
- यह प्रार्थना हमारे राष्ट्र की उस अवस्था को व्यक्त करती है, जहां ईश्वर की कृपा, ज्ञान और धर्म का प्रकाश हर ओर फैला हो।
- ‘स्वराष्ट्र’ में ‘स्व’ का अर्थ है अपना। यह पंक्ति हमें यह भी याद दिलाती है कि राष्ट्र का सच्चा विकास तब होगा, जब हम अपनी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जड़ों से जुड़े रहेंगे।
द्विज ब्रह्म तेजधारी:
- ‘द्विज’ का अर्थ है ‘दो बार जन्मा’। यह केवल जन्म से ब्राह्मण होने की बात नहीं करता, बल्कि व्यक्ति के ज्ञान और संस्कारों के द्वारा ब्राह्मण बनने की बात करता है।
- ‘ब्रह्म तेजधारी’ का अर्थ है ऐसा व्यक्ति जिसके अंदर ज्ञान, तप, और ब्रह्म (ईश्वर) के प्रति निष्ठा हो। यह राष्ट्र के आध्यात्मिक और नैतिक नेतृत्व का प्रतीक है।
- इस पंक्ति का गहन संदेश है कि केवल विद्वान और धर्मनिष्ठ लोग ही राष्ट्र का सही मार्गदर्शन कर सकते हैं।
क्षत्रिय महारथी हों, अरिदल विनाशकारी
क्षत्रिय महारथी हों:
- क्षत्रिय समाज के रक्षक और सुरक्षा का प्रतीक हैं। ‘महारथी’ का अर्थ है ऐसा योद्धा जो युद्ध की कला में निपुण हो और किसी भी प्रकार की चुनौती का सामना कर सके।
- यह पंक्ति यह दर्शाती है कि राष्ट्र को रक्षा और सुरक्षा के लिए सशक्त योद्धाओं की आवश्यकता है।
- यहां ‘क्षत्रिय’ केवल वंशानुगत योद्धा वर्ग नहीं, बल्कि हर वह व्यक्ति है जो राष्ट्र और समाज के लिए खड़ा होता है।
अरिदल विनाशकारी:
- ‘अरिदल’ का अर्थ है शत्रुओं का समूह। ‘विनाशकारी’ शब्द स्पष्ट रूप से यह बताता है कि योद्धाओं को इतने पराक्रमी और साहसी होना चाहिए कि वे किसी भी शत्रु को पराजित कर सकें।
- इस पंक्ति के माध्यम से राष्ट्र की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा को सुनिश्चित करने का संदेश दिया गया है। यह हमें यह भी बताता है कि एक मजबूत और स्वतंत्र राष्ट्र तभी संभव है, जब उसके पास अपने हितों की रक्षा करने की क्षमता हो।
होवें दुधारू गौएँ, पशु अश्व आशुवाही
हों दुधारू गौएँ:
- गौ को भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व प्राप्त है। यह केवल धार्मिक प्रतीक नहीं है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख स्तंभ भी है।
- ‘दुधारू गौएँ’ का तात्पर्य है ऐसी गायें जो भरपूर दूध दें, जिससे लोगों का पोषण हो और समाज में आर्थिक स्थिरता आए।
- यह पंक्ति ग्रामीण जीवन के संतुलन और खेती पर आधारित जीवन-शैली की ओर इशारा करती है।
पशु अश्व आशुवाही:
- ‘अश्व’ शक्ति, गति, और समृद्धि का प्रतीक है। प्राचीन भारत में घोड़े युद्ध और परिवहन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण थे।
- ‘आशुवाही’ का अर्थ है तेज़ गति से चलने वाले। इसका संदेश है कि समाज में ऐसे साधन और संसाधन हों जो कृषि, परिवहन और सैन्य गतिविधियों को सुगम बनाएं।
आधार राष्ट्र की हों, नारी सुभग सदा ही
आधार राष्ट्र की हों:
- यह पंक्ति महिलाओं को समाज और राष्ट्र का आधार मानती है। भारतीय दर्शन में नारी को हमेशा शक्ति और सृजन का प्रतीक माना गया है।
- यहां महिलाओं के सम्मान, उनकी शिक्षा, और उनके सामाजिक योगदान की महत्ता को रेखांकित किया गया है।
नारी सुभग सदा ही:
- ‘सुभग’ का अर्थ है गुणों से युक्त और सुंदर। यह केवल बाहरी सौंदर्य की बात नहीं करता, बल्कि स्त्रियों की आंतरिक गरिमा और आत्मबल की भी चर्चा करता है।
- यह पंक्ति कहती है कि स्त्रियां हर परिस्थिति में अपने गुण, चरित्र और गरिमा को बनाए रखें और समाज में अपनी भूमिका निभाएं।
बलवान सभ्य योद्धा, यजमान पुत्र होवें
बलवान सभ्य योद्धा:
- इस पंक्ति में दो प्रमुख गुणों को एक साथ प्रस्तुत किया गया है: बल और सभ्यता।
- ‘बलवान’ का अर्थ है शारीरिक और मानसिक रूप से सशक्त। यह विशेषता उन योद्धाओं की ओर इशारा करती है जो युद्ध क्षेत्र में पराक्रमी और साहसी हों।
- ‘सभ्य’ का अर्थ है शिष्टाचार, नैतिकता और संस्कृति का पालन करने वाले। यह योद्धा न केवल बल के आधार पर, बल्कि अपनी नैतिकता और अनुशासन के माध्यम से भी समाज का आदर्श बनें।
- यह पंक्ति सशक्त और नैतिक रूप से दृढ़ नागरिकों की आवश्यकता पर बल देती है।
यजमान पुत्र होवें:
- ‘यजमान’ का अर्थ है वे व्यक्ति जो यज्ञ करते हैं या जिनकी जीवनशैली धर्म और कर्मकांडों से जुड़ी होती है।
- ‘यजमान पुत्र’ का मतलब है कि हमारे राष्ट्र के पुत्र (युवा पीढ़ी) धार्मिक और आध्यात्मिक मूल्यों में रची-बसी हो।
- यह पंक्ति इस विचार को मजबूत करती है कि भविष्य की पीढ़ी को अपने धर्म, संस्कृति और मूल्यों के प्रति जागरूक होना चाहिए। यह शिक्षा और संस्कारों के महत्व को रेखांकित करती है।
इच्छानुसार वर्षें, पर्जन्य ताप धोवें
इच्छानुसार वर्षें:
- यह पंक्ति कृषि और प्रकृति की संतुलित स्थिति के लिए प्रार्थना करती है। ‘इच्छानुसार वर्षें’ का अर्थ है समय पर और आवश्यकता के अनुसार वर्षा होना।
- कृषि प्रधान समाज के लिए जल सबसे महत्वपूर्ण संसाधन है। यह पंक्ति प्राकृतिक संसाधनों की संतुलित उपलब्धता की महत्ता को दर्शाती है।
- इसके साथ यह संदेश भी निहित है कि प्रकृति और मानव के बीच संतुलन बना रहे, जिससे समाज में खुशहाली आए।
पर्जन्य ताप धोवें:
- ‘पर्जन्य’ का अर्थ है बारिश। यह पंक्ति इस बात की प्रार्थना करती है कि वर्षा से भूमि की उष्णता (ताप) कम हो और ठंडक और हरियाली का प्रसार हो।
- इस प्रार्थना में पर्यावरण के महत्व का संदेश छुपा है। जलवायु संतुलन से न केवल कृषि समृद्ध होती है, बल्कि यह मानव जीवन को भी स्वस्थ और सुखी बनाती है।
फल-फूल से लदी हों, औषध अमोघ सारी
फल-फूल से लदी हों:
- यह पंक्ति प्रकृति की उदारता और उसकी समृद्धि के लिए प्रार्थना करती है।
- ‘फल-फूल से लदी’ वृक्षों और खेती के भरपूर उत्पादन को संदर्भित करता है। यह समृद्धि और पोषण का प्रतीक है।
- यह पंक्ति इस बात को रेखांकित करती है कि प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता और उनका सही उपयोग समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
औषध अमोघ सारी:
- ‘औषध’ का अर्थ है औषधियाँ (दवाइयाँ और जड़ी-बूटियाँ)। ‘अमोघ’ का अर्थ है अचूक।
- यह पंक्ति इस बात की प्रार्थना करती है कि हमारे देश में ऐसी औषधियाँ हों जो हर प्रकार के रोगों को ठीक कर सकें।
- यह आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति की महत्ता को दर्शाती है। साथ ही, यह मानव स्वास्थ्य और विज्ञान के प्रति हमारी जिम्मेदारी का संकेत भी देती है।
हों योग-क्षेमकारी, स्वाधीनता हमारी
हों योग-क्षेमकारी:
- ‘योग’ का अर्थ है आवश्यक वस्तुओं की प्राप्ति और ‘क्षेम’ का अर्थ है उनकी रक्षा।
- यह प्रार्थना है कि हमारे देश में ऐसी परिस्थितियाँ हों, जहां हर व्यक्ति को उसकी जरूरत की चीज़ें उपलब्ध हों और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित हो।
- ‘योग-क्षेमकारी’ का अर्थ यह भी है कि व्यक्ति और राष्ट्र की उन्नति केवल भौतिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों पर आधारित होनी चाहिए।
स्वाधीनता हमारी:
- ‘स्वाधीनता’ का अर्थ केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं है, बल्कि यह सामाजिक, आर्थिक, और मानसिक स्वतंत्रता को भी समाहित करता है।
- इस पंक्ति में राष्ट्र की आत्मनिर्भरता और आत्मसम्मान की परिकल्पना है।
- यह संदेश देती है कि स्वतंत्रता केवल अधिकार नहीं, बल्कि जिम्मेदारी भी है, जिसे हर नागरिक को समझना और निभाना चाहिए।
समग्र संदेश
यह भजन न केवल एक राष्ट्र की भौतिक और आध्यात्मिक समृद्धि के लिए प्रार्थना है, बल्कि यह हमारे कर्तव्यों, आदर्शों, और सांस्कृतिक मूल्यों की एक झलक भी देता है। यह हमें याद दिलाता है कि एक आदर्श समाज और राष्ट्र की संरचना तभी संभव है, जब हर नागरिक अपने धर्म, कर्तव्य और नैतिकता के प्रति जागरूक हो।
