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- – यह कविता भक्ति और समर्पण की भावनाओं को व्यक्त करती है, जहाँ कवि अपने आराध्य के चरणों से जुड़ना चाहता है।
- – कवि खुद को धूल, फूल, नूपुर, कदम्ब का मूल, और कालिंदी का फूल बनकर भगवान के बंगले में सजना चाहता है।
- – कविता में वृन्दावन और ब्रज की पवित्रता का उल्लेख है, जहाँ कवि अपने आराध्य के दर्शन की लालसा रखता है।
- – कवि अपनी भक्ति की खुशबू फैलाने और हर पल भगवान के दर्शन पाने की इच्छा प्रकट करता है।
- – यह कविता समर्पण, प्रेम और भक्ति की गहराई को दर्शाती है, जिसमें कवि खुद को भगवान के प्रति पूर्णतः समर्पित करता है।

चरणों से लिपट जाऊं धूल बन के,
तेरे बंगले में लग जाऊं फूल बन के।।
तेरी भक्ति की खुशबू उडाता रहूँ,
तेरा पल पल मैं दीदार पाता रहूँ,
लहराऊं कटी में नूपुर बन के,
तेरे बंगले में लग जाऊं फूल बन के।।
मेरी विनती यही अपना लो मुझे,
बृज का कोई फूल बना लो मुझे,
आऊं कोई कदम्ब का मूल बन के,
तेरे बंगले में लग जाऊं फूल बन के।।
तेरे वृन्दाविपिन में पड़ा ही रहूँ,
तेरे दर्शन की जिद पे अड़ा ही रहूँ,
पड़ जाऊं कालिंदी का फूल बन के,
तेरे बंगले में लग जाऊं फूल बन के।।
तेरा पागल तेरा ही दीवाना हूँ मैं,
आप बगिया और फिर विराना हूँ मैं,
रहूँ सूक्षम रहूँ या अस्थूल बन के,
तेरे बंगले में लग जाऊं फूल बन के।।
चरणों से लिपट जाऊं धूल बन के,
तेरे बंगले में लग जाऊं फूल बन के।।
अस्वीकरण (Disclaimer) : नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष आदि विषयों पर HinduismFAQ में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। 'HinduismFAQ' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।
