- – कविता में कवि अपने गहरे दर्द और अकेलेपन को व्यक्त करता है, जिसे वह केवल कन्हैया (भगवान कृष्ण) के सामने ही खोल पाता है।
- – कवि का कहना है कि इस दुनिया में कोई भी सच्चा हमदर्द नहीं है, सभी लोग केवल दिखावा करते हैं और दर्द में नमक छिड़कते हैं।
- – रिश्तों और वादों को झूठा और धोखा बताया गया है, जिससे कवि को अब किसी पर विश्वास करना मुश्किल हो गया है।
- – कवि ने अपने अनुभवों में ठोकरें खाई हैं और हर कदम पर लोगों के स्वार्थी व्यवहार का सामना किया है।
- – अंत में, कवि की भावना यह है कि केवल कन्हैया ही ऐसा साथी है जो उसके दर्द को समझता है और उसके लिए सच्चा हमदर्द है।

दर्द किसको दिखाऊं कन्हैया,
कोई हमदर्द तुमसा नहीं है,
दुनिया वाले नमक है छिड़कते,
कोई मरहम लगाता नहीं है,
दर्द किसकों दिखाऊँ कन्हैया,
कोई हमदर्द तुमसा नहीं है।।
तर्ज – मेरे बांके बिहारी सांवरिया।
किसको बैरी कहूं किसको अपना,
झूठे वादे है सारे ये सपना,
अब तो कहने में आती शरम है,
रिश्ते नाते ये सारे भरम है,
देख खुशियां मेरी ज़िंदगी की,
रास अपनों को आती नहीं है,
दर्द किसकों दिखाऊँ कन्हैया,
कोई हमदर्द तुमसा नहीं है।।
ठोकरों पर है ठोकर खाया,
जब भी दिल दुसरो से लगाया,
हर कदम पे है सबने गिराया,
सबने स्वारथ का रिश्ता निभाया,
तुझसे नैना लड़ाना कन्हैया,
दुनिया वालो को भाता नहीं है,
दर्द किसकों दिखाऊँ कन्हैया,
कोई हमदर्द तुमसा नहीं है।।
दर्द किसको दिखाऊं कन्हैया,
कोई हमदर्द तुमसा नहीं है,
दुनिया वाले नमक है छिड़कते,
कोई मरहम लगाता नहीं है,
दर्द किसकों दिखाऊँ कन्हैया,
कोई हमदर्द तुमसा नहीं है।।
Singer – Raju Singh Anuragi
