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दीपावली पूजा मंत्र in Hindi/Sanskrit

1. गोवत्स द्वादशी मंत्र अर्घ्य मंत्र
क्षीरोदार्नवसंभूते सुरासुरनमस्कृते।
सर्वदेवमये मातर्गृहाण्घ्यं नमो नमः॥

निवेदन मंत्र
गोवत्स द्वादशी निवेदन मंत्र

सुरभि त्वं जगन्मातरदेवी विष्णुपदे स्थिता।
सर्वदेवमये ग्रसं मया दत्तमिदं ग्रसा॥

प्रार्थना मंत्र
सर्वदेवमये देवि सर्वदेवैरलंकृते।
मातरमाभिलाषितं सफलं कुरु नंदिनी॥

2. यमदीप मंत्र
मृत्युना पाषादण्डभ्यं कालेन श्यामया सहः।
त्रयोदश्यां दीपदानत्सुर्यजः प्रियतम मम॥

3. अभ्यंग स्नान मंत्र
सीतालोष्टासमायुक्ता सकान्तकदलन्विता।
हर पापमपामार्ग भ्रम्यमानः पुनः पुनः॥

4. नरक चतुर्दशी दीपदान मंत्र
दत्तो दीपश्चतुर्दश्याम नरकाप्रीतये मया।
चतुर्वर्तिसामायुक्तः सर्वपापनुत्तये॥

5. लक्ष्मी मंत्र
ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्म्यै नमः॥

6. बाली नमस्कार मंत्र
बलिराजा नमस्तुभ्यं दैत्यदानववंदिता।
इन्द्रशत्रोअमरते विष्णुसन्निध्यदो भव॥
बलिमुद्दिश्य दीयन्ते दानानि कुरुनन्दना।
यानि तन्यक्षान्याहुर्मयैवं सम्प्रदर्शितम्॥

7. गोवर्धन मंत्र
गोवर्धन धराधर गोकुलत्राणकारक:।
बहुबाहुकृतच्छया गावं कोटिप्रदो भव॥

8. गौ मंत्र
लक्ष्मीर्य लोकापालं धेनुरूपेण संस्थिता।
घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्यपोहतु॥

9. यम द्वितीया मंत्र
एह्येहि मार्तण्डजा पाशहस्ता यमान्तकलोकधर्मरेषा।
भ्रातृद्वितीयकृतदेवपूजं गृहाणा चार्घ्यं भगवन्नमोस्तु ते॥

10. मार्गपाली मंत्र
मार्गपाली नमस्तेस्तु सर्वलोकसुखप्रदे।
विधेयैः पुत्रदारद्यैः पुनरेहि व्रतस्य मे॥

Deepawali Puja Mantra in English

  1. Govats Dwadashi Mantra Arghya Mantra
    Kshirodarnavasambhute Surasuranamaskrute।
    Sarvadevamaye Matargrihanarghyam Namo Namah॥

Nivedan Mantra
Govats Dwadashi Nivedan Mantra

Surabhi Tvam Jaganmataradevi Vishnupade Sthita।
Sarvadevamaye Grasa Maya Dattamidam Grasa॥

Prarthana Mantra
Sarvadevamaye Devi Sarvadevairalamkrite।
Mataramabhilashitam Safalam Kuru Nandini॥

  1. Yamadeep Mantra
    Mrityuna Pashadandabhyam Kalen Shyamaya Saha।
    Trayodashyām Deepdanatsuryajah Priyatam Mama॥
  2. Abhyang Snan Mantra
    Sitaloshtasamayukta Sakantakdalanvita।
    Har Papamapamarga Bhryamamanah Punah Punah॥
  3. Narak Chaturdashi Deepdan Mantra
    Datto Deepashchaturdashyam Narakapritaye Maya।
    Chaturvartisamayuktah Sarvapapanuttaye॥
  4. Lakshmi Mantra
    Om Hreem Shreem Lakshmyai Namah॥
  5. Bali Namaskar Mantra
    Baliraja Namastubhyam Daityadanavavandita।
    Indrashatroamarate Vishnusannidhyado Bhava॥
    Balimuddishya Diyante Danani Kurunandana।
    Yani Tanyakshanyahurmayaivam Sampradarshitam॥
  6. Govardhan Mantra
    Govardhan Dharadhar Gokulatrankarakah।
    Bahubahukritachchhaya Gavam Kotiprado Bhava॥
  7. Gau Mantra
    Lakshmirya Lokapalana Dhenuroopena Sansthita।
    Ghritam Vahati Yagyarthe Mama Papam Vyapohatu॥
  8. Yam Dwitiya Mantra
    Ehyahi Martandaja Pashahasta Yamantaka Lokadharmaresha।
    Bhratrudvitiya Kritadevapujam Grihana Chārghyam Bhagavannamostu Te॥
  9. Margpali Mantra
    Margpali Namastestu Sarvalokasukhaprade।
    Vidheyaih Putradaradyai Punarehi Vratasya Me॥

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दीपावली पूजा मंत्र का अर्थ

गोवत्स द्वादशी मंत्र अर्घ्य मंत्र

मंत्र:

क्षीरोदार्नवसंभूते सुरासुरनमस्कृते।
सर्वदेवमये मातर्गृहाण्घ्यं नमो नमः॥

विस्तृत विवरण:

यह मंत्र गोवत्स द्वादशी के अवसर पर गो माता को अर्घ्य अर्पित करने के लिए पढ़ा जाता है। इसमें गाय की महत्ता को प्रकट किया गया है। गाय को ‘क्षीरोदार्नवसंभूते’ कहा गया है, जिसका अर्थ है कि वह दूध के समुद्र से उत्पन्न हुई है।

सुरासुरनमस्कृते का अर्थ है कि गाय को देवता और असुर दोनों ही नमन करते हैं। इससे यह प्रदर्शित होता है कि गाय सर्वत्र पूजनीय है। सर्वदेवमये का तात्पर्य यह है कि गाय में समस्त देवताओं का वास है। इस मंत्र में गाय से प्रार्थना की जाती है कि वह अर्घ्य को स्वीकार करें और भक्त को आशीर्वाद दें।


निवेदन मंत्र

मंत्र:

सुरभि त्वं जगन्मातरदेवी विष्णुपदे स्थिता।
सर्वदेवमये ग्रसं मया दत्तमिदं ग्रसा॥

विस्तृत विवरण:

इस निवेदन मंत्र में गाय को ‘सुरभि’ कहा गया है, जो कि विश्व की माता और देवी के रूप में पूजी जाती है। यह माना जाता है कि गाय विष्णु भगवान के पद पर स्थित होती है, जिससे वह अत्यंत पूजनीय होती है। इसमें गाय से निवेदन किया जा रहा है कि वह भक्त द्वारा अर्पित किया गया आहार स्वीकार करे।

यह मंत्र गोवत्स द्वादशी पर गो माता के प्रति श्रद्धा और भक्ति व्यक्त करने के लिए उपयोग किया जाता है। इसमें यह भाव है कि गाय सारे देवताओं का प्रतीक है और जो भी अर्पित किया जाता है, उसे ग्रहण करना उसका परम धर्म है।


प्रार्थना मंत्र

मंत्र:

सर्वदेवमये देवि सर्वदेवैरलंकृते।
मातरमाभिलाषितं सफलं कुरु नंदिनी॥

विस्तृत विवरण:

इस मंत्र में देवी नंदिनी (गाय) से प्रार्थना की जाती है कि वह समस्त देवताओं से सुशोभित है। गाय को यहाँ नंदिनी के रूप में पुकारा गया है और यह माना जाता है कि वह हर प्रकार की इच्छाओं को पूर्ण करने वाली होती है।

मंत्र में भक्त अपने सभी अभिलाषाओं के सफल होने की कामना करता है और देवी नंदिनी से उन इच्छाओं को पूरा करने का आशीर्वाद मांगता है। इस मंत्र का भाव यह है कि गाय केवल सांसारिक आशीर्वाद ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक उन्नति का साधन भी है।


यमदीप मंत्र

मंत्र:

मृत्युना पाषादण्डभ्यं कालेन श्यामया सहः।
त्रयोदश्यां दीपदानत्सुर्यजः प्रियतम मम॥

विस्तृत विवरण:

यह यमदीप मंत्र विशेष रूप से यमराज को प्रसन्न करने के लिए पढ़ा जाता है। इसमें मृत्यु के देवता यमराज का वर्णन किया गया है, जो पाश और दंड (मृत्यु के उपकरण) को धारण करते हैं और काले समय (काला समय यहां काल का प्रतीक है) के साथ रहते हैं।

त्रयोदशी के दिन दीपदान करने से सूर्य के पुत्र यमराज प्रसन्न होते हैं और भक्त को उनका प्रिय बना देते हैं। दीपदान का अर्थ है कि दीप जलाकर मृत्यु के देवता को समर्पित करना, जिससे मृत्यु के भय से मुक्ति प्राप्त हो सके।


अभ्यंग स्नान मंत्र

मंत्र:

सीतालोष्टासमायुक्ता सकान्तकदलन्विता।
हर पापमपामार्ग भ्रम्यमानः पुनः पुनः॥

विस्तृत विवरण:

अभ्यंग स्नान का यह मंत्र पवित्रता और शुद्धिकरण के उद्देश्य से पढ़ा जाता है। इसमें अभ्यंग (स्नान) के दौरान उपयोग किए जाने वाले अपामार्ग (एक पवित्र पौधा) का उल्लेख है, जो पापों को नष्ट करने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।

मंत्र में कहा गया है कि अपामार्ग से युक्त स्नान करने से समस्त पाप समाप्त हो जाते हैं और इसे बार-बार करने से मन और शरीर की शुद्धि होती है। इस स्नान से शरीर की शुद्धि के साथ-साथ मानसिक शांति भी प्राप्त होती है।


नरक चतुर्दशी दीपदान मंत्र

मंत्र:

दत्तो दीपश्चतुर्दश्याम नरकाप्रीतये मया।
चतुर्वर्तिसामायुक्तः सर्वपापनुत्तये॥

विस्तृत विवरण:

इस मंत्र का पाठ नरक चतुर्दशी के दिन दीपदान करते समय किया जाता है। इसमें भक्त नरक को प्रसन्न करने और पापों से मुक्ति के लिए दीप जलाकर समर्पित करता है।

मंत्र में चतुर्वर्ति का उल्लेख है, जो चार बातियों से युक्त दीप को दर्शाता है। यह दीपदान समस्त पापों को दूर करने का उपाय माना जाता है। नरक चतुर्दशी पर यह प्रथा विशेष रूप से पापों के नाश के लिए की जाती है।


लक्ष्मी मंत्र

मंत्र:

ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्म्यै नमः॥

विस्तृत विवरण:

यह एक अत्यंत शक्तिशाली लक्ष्मी मंत्र है। इसमें लक्ष्मी देवी की कृपा प्राप्त करने के लिए उनका स्मरण किया जाता है।

ब्रह्मांड की ध्वनि का प्रतिनिधित्व करता है। ह्रीं मंत्र की शक्ति है जो लक्ष्मी देवी की कृपा को आकर्षित करती है। श्रीं धन और समृद्धि का प्रतीक है। यह मंत्र अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है, और इसे नियमित रूप से जपने से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है, जिससे धन, वैभव और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।


बाली नमस्कार मंत्र

मंत्र:

बलिराजा नमस्तुभ्यं दैत्यदानववंदिता।
इन्द्रशत्रोअमरते विष्णुसन्निध्यदो भव॥
बलिमुद्दिश्य दीयन्ते दानानि कुरुनन्दना।
यानि तन्यक्षान्याहुर्मयैवं सम्प्रदर्शितम्॥

विस्तृत विवरण:

इस मंत्र में राजा बलि की स्तुति की जाती है। बलि को दैत्य और दानव दोनों का सम्मान प्राप्त है, और वे इंद्र के शत्रु के रूप में प्रसिद्ध हैं। बलि ने विष्णु भगवान से सन्निध्य प्राप्त किया था, जो दर्शाता है कि उनके प्रति भगवान विष्णु का आशीर्वाद था।

इस मंत्र में राजा बलि से नमस्कार करते हुए यह कहा गया है कि वे दैत्य और दानवों द्वारा वंदित हैं। उन्हें इंद्र के शत्रु और अमरता प्राप्त करने वाले के रूप में जाना जाता है, क्योंकि उन्होंने भगवान विष्णु से दिव्य स्थान प्राप्त किया था।

“बलिमुद्दिश्य दीयन्ते दानानि” का अर्थ है कि बलि को समर्पित किए गए दान अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। इस प्रथा को “कुरुनंदना” अर्थात कुरु वंश के लोगों द्वारा आगे बढ़ाया गया है।

यह मंत्र राजा बलि के प्रति कृतज्ञता और उनके बलिदान की स्मृति के रूप में पढ़ा जाता है, जिसमें बलि की महानता और विष्णु भगवान के प्रति उनकी भक्ति का वर्णन किया गया है। यह राजा बलि के द्वारा किए गए दानों और उनके आदर्शों को अनुकरण करने की प्रेरणा देता है।


गोवर्धन मंत्र

मंत्र:

गोवर्धन धराधर गोकुलत्राणकारकः।
बहुबाहुकृतच्छाया गावं कोटिप्रदो भव॥

विस्तृत विवरण:

इस मंत्र में भगवान कृष्ण को गोवर्धन पर्वत उठाने वाले के रूप में पूजते हैं। गोवर्धन पर्वत को उठाकर उन्होंने गोकुल वासियों को इंद्र के क्रोध से बचाया था, इसी कारण उन्हें “गोकुलत्राणकारक” कहा जाता है, अर्थात गोकुल की रक्षा करने वाले।

“बहुबाहुकृतच्छाया” का अर्थ है कि उन्होंने अपनी अनेक बाहुओं से गोवर्धन पर्वत को उठाकर गोकुलवासियों को छाया दी और उन्हें सुरक्षा प्रदान की। “गावं कोटिप्रदो भव” में गायों की महिमा का वर्णन है, जिसमें भगवान कृष्ण से प्रार्थना की जाती है कि वे गायों की रक्षा करें और उन्हें अनंत आशीर्वाद प्रदान करें।

यह मंत्र गोवर्धन पूजा के समय विशेष रूप से पढ़ा जाता है और भक्त भगवान कृष्ण से प्रार्थना करते हैं कि वे सदैव उनकी रक्षा करें जैसे उन्होंने गोवर्धन पर्वत उठाकर गोकुलवासियों की की थी।


गौ मंत्र

मंत्र:

लक्ष्मीर्य लोकापालं धेनुरूपेण संस्थिता।
घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्यपोहतु॥

विस्तृत विवरण:

इस गौ मंत्र में गाय को लक्ष्मी का रूप माना गया है। “लक्ष्मीर्य” का अर्थ है कि गाय धन, समृद्धि और शुभता का प्रतीक है। गाय को “लोकापालं धेनुरूपेण” कहा गया है, जिसका अर्थ है कि वह समस्त लोकों की पालक है और उसकी रक्षा के लिए सृष्टि में स्थापित है।

गाय “घृतं वहति यज्ञार्थे” अर्थात यज्ञ के लिए घी प्रदान करती है, जो कि धार्मिक अनुष्ठानों में अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इस मंत्र में यह प्रार्थना की जाती है कि गाय के द्वारा दिया गया यह घी हमारे पापों को नष्ट करे।

गाय को धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत पवित्र माना गया है और इसे यज्ञ और धार्मिक कार्यों में उपयोग करने से व्यक्ति के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं। यह मंत्र गाय की महिमा और उसके महत्व को रेखांकित करता है।


यम द्वितीया मंत्र

मंत्र:

एह्येहि मार्तण्डजा पाशहस्ता यमान्तकलोकधर्मरेषा।
भ्रातृद्वितीयकृतदेवपूजं गृहाणा चार्घ्यं भगवन्नमोस्तु ते॥

विस्तृत विवरण:

यम द्वितीया के इस मंत्र में यमराज का आह्वान किया गया है। “मार्तण्डजा” का अर्थ है सूर्य देव के पुत्र, अर्थात यमराज। यमराज को “पाशहस्ता” कहा गया है, जो पाश धारण करते हैं, और वे यमलोक के धर्म के पालनकर्ता माने जाते हैं।

इस मंत्र में भाई-बहन के पवित्र संबंध का उल्लेख है, जिसे यम द्वितीया के अवसर पर विशेष पूजा द्वारा निभाया जाता है। यमराज से प्रार्थना की जाती है कि वे इस देव पूजा को स्वीकार करें और भक्त द्वारा अर्पित किए गए अर्घ्य को ग्रहण करें।

यह मंत्र यम द्वितीया पर भाई और बहन के बीच प्रेम और आशीर्वाद की भावना को बढ़ावा देता है और यमराज से यह आशीर्वाद मांगता है कि वे इस पवित्र अवसर पर कृपा करें।


मार्गपाली मंत्र

मंत्र:

मार्गपाली नमस्तेस्तु सर्वलोकसुखप्रदे।
विधेयैः पुत्रदारद्यैः पुनरेहि व्रतस्य मे॥

विस्तृत विवरण:

इस मार्गपाली मंत्र में मार्गपाली देवता को प्रणाम किया जाता है। मार्गपाली को “सर्वलोकसुखप्रदे” कहा गया है, जिसका अर्थ है कि वे सभी लोकों को सुख प्रदान करने वाले हैं।

मंत्र में यह प्रार्थना की गई है कि वे भक्त के पुत्र और परिवार को आशीर्वाद दें और भक्त द्वारा किए गए व्रत को सफल करें। “पुनरेहि व्रतस्य मे” का तात्पर्य यह है कि मार्गपाली देवता से यह प्रार्थना की जाती है कि वे भक्त के व्रत की पुनरावृत्ति करें, जिससे उसके जीवन में सुख, समृद्धि और शांति बनी रहे।

मार्गपाली को सृष्टि की सुख और शांति के रक्षक के रूप में माना जाता है, और इस मंत्र का पाठ विशेष रूप से उनके आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

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