- – कविता में भगवान कन्हैया (श्री कृष्ण) के प्रति गहरा प्रेम और भक्ति व्यक्त की गई है, जिन्होंने कवि को अपनाकर जीवन में प्रेम और सुरक्षा दी है।
- – कवि अपने कर्म, भाग्य या सेवा को महत्व नहीं देता, बल्कि भगवान के बड़प्पन और दया को जीवन का आधार मानता है।
- – भगवान की मेहरबानी से ही कवि का जीवन महक उठा है और वह उनका शत-शत नमन करता है।
- – कवि प्रभु से प्रार्थना करता है कि उसका मन भटकने न पाए और वह सदैव पवित्र और बदरंग न हो।
- – भगवान के चरणों में सुरक्षित होने का अहसास कवि को जीवन में स्थिरता और संतोष प्रदान करता है।
- – बार-बार दोहराए गए “रस्ते से उठा करके, सीने से लगाया है” पंक्ति से भगवान की ममता और अपनापन की भावना गहराई से व्यक्त होती है।

दिलदार कन्हैया ने,
मुझको अपनाया है,
रस्ते से उठा करके,
सीने से लगाया है।।
तर्ज – बचपन की मोहब्बत को।
ना कर्म ही अच्छे थे,
ना भाग्य प्रबल मेरा,
ना सेवा करि तेरी,
ना नाम कभी तेरा,
ये तेरा बड़प्पन है,
मुझे प्रेम सिखाया है,
रस्ते से उठा करके,
सीने से लगाया है।।
जो कुछ हूँ आज प्रभु,
सब तेरी मेहरबानी,
शत शत है नमन तुझको,
महाभारत के दानी,
तूने ही दया करके,
जीवन महकाया है,
रस्ते से उठा करके,
सीने से लगाया है।।
प्रभु रखना संभाल मेरी,
ये मन ना भटक जाए,
बस इतना ध्यान रहे,
कोई दाग ना लग जाए,
बदरंग ना हो जाए,
जो रंग चढ़ाया है,
रस्ते से उठा करके,
सीने से लगाया है।।
अहसास है ये मुझको,
चरणों में सुरक्षित हूँ,
अहसान बहुत तेरे,
भूले ना कभी ‘बिन्नू’,
श्री श्याम सुधामृत का,
स्वाद चखाया है,
रस्ते से उठा करके,
सीने से लगाया है।।
दिलदार कन्हैया ने,
मुझको अपनाया है,
रस्ते से उठा करके,
सीने से लगाया है।।
