- – कविता में एक भोला और साधारण दूल्हे का चित्रण किया गया है, जो गांजा और भांग का सेवन करता है।
- – दूल्हा नशे में लाल आँखों वाला, लंबे बालों वाला और कैलाश पर्वत से जुड़ा प्रतीत होता है।
- – बारात में न घोड़ा है, न हाथी, सभी पैदल हैं, और दूल्हे के साथ कोई साथी या संगी नहीं है।
- – दूल्हे के हाथों में मेहंदी नहीं है, न फूलों का सेहरा, और न हल्दी लगी है, जिससे उसकी अनोखी स्थिति दर्शाई गई है।
- – दूल्हा ऐसा है जो पारंपरिक दूल्हे से अलग, अकेला और अनाथ जैसा प्रतीत होता है, जिसे सपेरा भी कहा गया है।

दूल्हा बन गया भोला भाला,
तर्ज – खई के पान बनारस वाला
दूल्हा बन गया भोला भाला,
गांजा भांग का पिने वाला,
इसकी आँख नशे में लाल,
देखो लंबे लंबे बाल,
के दूल्हा कैलाश पर्वत वाला।।
ना घोड़े ना हाथी,
सब पैदल बाराती,
ना घोड़े ना हाथी,
सब पैदल बाराती,
ना संगी ना साथी,
इसकी कोई ना जाती,
लगता है अनाथ,
इसके मैया है ना बाप,
दीखता है ये कोई सपेरा,
पाल रखे है साँप,
सबकी जुबाँ पे,
है यही बात,
के दूल्हा कैलाश पर्वत वाला।।
ना हाथो में मेहंदी,
ना फूलो का सेहरा,
ना हाथो में मेहंदी,
ना फूलो का सेहरा,
ना तन पे है हल्दी,
ये बूढ़ो सा चेहरा,
कैसा है ये दूल्हा,
जिसने दाड़ी ही ना बनाई,
ऐसा दूल्हा ना देखा कमाल,
के दूल्हा कैलाश पर्वत वाला।।
दूल्हा बन गया भोला भाला,
गांजा भांग का पिने वाला,
इसकी आँख नशे में लाल,
देखो लंबे लंबे बाल,
के दूल्हा कैलाश पर्वत वाला।।
