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दुर्गा चालीसा in Hindi/Sanskrit

नमो नमो दुर्गे सुख करनी ।
नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी ॥

निरंकार है ज्योति तुम्हारी ।
तिहूँ लोक फैली उजियारी ॥

शशि ललाट मुख महाविशाला ।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला ॥

रूप मातु को अधिक सुहावे ।
दरश करत जन अति सुख पावे ॥ ४

तुम संसार शक्ति लै कीना ।
पालन हेतु अन्न धन दीना ॥

अन्नपूर्णा हुई जग पाला ।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥

प्रलयकाल सब नाशन हारी ।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी ॥

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें ।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥

रूप सरस्वती को तुम धारा ।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा ॥

धरयो रूप नरसिंह को अम्बा ।
परगट भई फाड़कर खम्बा ॥

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो ।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो ॥

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं ।
श्री नारायण अंग समाहीं ॥ १२

क्षीरसिन्धु में करत विलासा ।
दयासिन्धु दीजै मन आसा ॥

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी ।
महिमा अमित न जात बखानी ॥

मातंगी अरु धूमावति माता ।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता ॥

श्री भैरव तारा जग तारिणी ।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ॥ १६

केहरि वाहन सोह भवानी ।
लांगुर वीर चलत अगवानी ॥

कर में खप्पर खड्ग विराजै ।
जाको देख काल डर भाजै ॥

सोहै अस्त्र और त्रिशूला ।
जाते उठत शत्रु हिय शूला ॥

नगरकोट में तुम्हीं विराजत ।
तिहुँलोक में डंका बाजत ॥ २०

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे ।
रक्तबीज शंखन संहारे ॥

महिषासुर नृप अति अभिमानी ।
जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥

रूप कराल कालिका धारा ।
सेन सहित तुम तिहि संहारा ॥

परी गाढ़ सन्तन पर जब जब ।
भई सहाय मातु तुम तब तब ॥ २४

अमरपुरी अरु बासव लोका ।
तब महिमा सब रहें अशोका ॥

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी ।
तुम्हें सदा पूजें नरनारी ॥

प्रेम भक्ति से जो यश गावें ।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें ॥

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई ।
जन्ममरण ताकौ छुटि जाई ॥ २८

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी ।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ॥

शंकर आचारज तप कीनो ।
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ॥

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को ।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको ॥

शक्ति रूप का मरम न पायो ।
शक्ति गई तब मन पछितायो ॥ ३२

शरणागत हुई कीर्ति बखानी ।
जय जय जय जगदम्ब भवानी ॥

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा ।
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ॥

मोको मातु कष्ट अति घेरो ।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ॥

आशा तृष्णा निपट सतावें ।
मोह मदादिक सब बिनशावें ॥ ३६

शत्रु नाश कीजै महारानी ।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी ॥

करो कृपा हे मातु दयाला ।
ऋद्धिसिद्धि दै करहु निहाला ॥

जब लगि जिऊँ दया फल पाऊँ ।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ ॥

श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै ।
सब सुख भोग परमपद पावै ॥ ४०

देवीदास शरण निज जानी ।
कहु कृपा जगदम्ब भवानी ॥

॥दोहा॥
शरणागत रक्षा करे,
भक्त रहे नि:शंक ।
मैं आया तेरी शरण में,
मातु लिजिये अंक ॥

Durga Chalisa in English

Namo Namo Durge Sukh Karni.
Namo Namo Durge Dukh Harni.

Nirankar Hai Jyoti Tumhari.
Tihu Lok Phaili Ujiyari.

Shashi Lalat Mukh Mahavishala.
Netra Lal Bhrikuti Vikrala.

Roop Matu Ko Adhik Suhave.
Darsh Karat Jan Ati Sukh Pave. (4)

Tum Sansar Shakti Lai Kina.
Palan Hetu Ann Dhan Dina.

Annapurna Hui Jag Pala.
Tum Hi Aadi Sundari Bala.

Pralaykaal Sab Nashan Haari.
Tum Gauri Shivshankar Pyari.

Shiv Yogi Tumhare Gun Gaave.
Brahma Vishnu Tumhein Nit Dhyaave. (8)

Roop Saraswati Ko Tum Dhara.
De Subuddhi Rishi Munin Ubara.

Dharyo Roop Narsingh Ko Amba.
Pargat Bhai Fadkar Khamba.

Raksha Kari Prahlad Bachayo.
Hiranyaksh Ko Swarg Pathayo.

Lakshmi Roop Dharo Jag Mahi.
Shri Narayan Ang Samahi. (12)

Ksheersindhu Mein Karat Vilasa.
Dayasindhu Deeje Man Asa.

Hinglaj Mein Tumhi Bhavani.
Mahima Amit Na Jaat Bakhani.

Matangi Aru Dhumavati Mata.
Bhuvaneshwari Bagla Sukh Data.

Shri Bhairav Tara Jag Tarini.
Chhin Bhal Bhav Dukh Nivarini. (16)

Kehri Vahan Soh Bhavani.
Langur Veer Chalat Agvani.

Kar Mein Khappar Khadg Virajai.
Jako Dekh Kaal Dar Bhajai.

Sohai Astra Aur Trishula.
Jaate Uthat Shatru Hiy Shula.

Nagarkot Mein Tumhi Virajat.
Tihu Lok Mein Danka Bajat. (20)

Shumbh Nishumbh Danav Tum Maare.
Raktabeej Shankhan Sanhare.

Mahishasur Nrip Ati Abhimani.
Jehi Agh Bhar Mahi Akulani.

Roop Karaal Kalika Dhara.
Sen Sahit Tum Tihi Sanhara.

Pari Gadh Santan Par Jab Jab.
Bhai Sahay Matu Tum Tab Tab. (24)

Amarpuri Aru Basav Loka.
Tab Mahima Sab Rahe Ashoka.

Jwala Mein Hai Jyoti Tumhari.
Tumhein Sada Poojen Narnari.

Prem Bhakti Se Jo Yash Gaave.
Dukh Daridr Nikat Nahin Aave.

Dhyave Tumhein Jo Nar Man Laai.
Janm-Maran Taku Chhuti Jaai. (28)

Jogi Sur Muni Kahat Pukari.
Yog Na Ho Bin Shakti Tumhari.

Shankar Aachraj Tap Kino.
Kaam Aru Krodh Jeet Sab Leeno.

Nishidin Dhyan Dharo Shankar Ko.
Kahu Kaal Nahin Sumiro Tumko.

Shakti Roop Ka Maram Na Payo.
Shakti Gayi Tab Man Pachhtayo. (32)

Sharanagat Hui Kirti Bakhani.
Jai Jai Jai Jagdamb Bhavani.

Bhai Prasanna Aadi Jagdamba.
Dai Shakti Nahin Kin Vilamba.

Moko Matu Kasht Ati Ghero.
Tum Bin Kaun Hare Dukh Mero.

Asha Trishna Nipat Satave.
Moh Madadik Sab Binasave. (36)

Shatru Naash Kijai Maharani.
Sumirau Ekchit Tumhein Bhavani.

Karo Kripa He Matu Dayala.
Riddhi-Siddhi Dai Karahu Nihala.

Jab Lagi Jiyun Daya Phal Pau.
Tumharo Yash Main Sada Sunau.

Shri Durga Chalisa Jo Koi Gaave.
Sab Sukh Bhog Parampad Paave. (40)

Devidas Sharan Nij Jani.
Kahu Kripa Jagdamb Bhavani.

Doha:
Sharanagat Raksha Kare,
Bhakt Rahe Nishank.
Main Aaya Teri Sharan Mein,
Matu Lijiye Ank.

श्री दुर्गा चालीसा PDF Download

श्री दुर्गा चालीसा का अर्थ

श्री दुर्गा चालीसा में देवी दुर्गा की महिमा, उनकी शक्ति, और उनके भक्तों पर कृपा का विस्तृत वर्णन किया गया है। यह चालीसा हिन्दू धर्म में श्रद्धा और भक्ति से गाया जाता है। इसमें देवी दुर्गा की स्तुति, उनकी अद्वितीय शक्तियों, उनके विभिन्न रूपों, और उनके द्वारा किए गए असुरों के विनाश का वर्णन मिलता है।

नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी ॥

अर्थ: हे माँ दुर्गा! आपको बार-बार प्रणाम है, आप सभी सुखों की देने वाली हैं और सभी दुखों का नाश करने वाली हैं।

विस्तार: यह चौपाई माँ दुर्गा की उस विशेषता को प्रदर्शित करती है कि वह अपने भक्तों के सभी दुःखों का अंत करती हैं और जीवन में सुख की वर्षा करती हैं। उनकी कृपा से हर दुख दूर हो जाता है और जीवन में खुशियों की बहार आती है।

निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूँ लोक फैली उजियारी ॥

अर्थ: आपकी ज्योति निराकार है और तीनों लोकों में आपकी रोशनी फैली हुई है।

विस्तार: माँ दुर्गा की दिव्य शक्ति और आभा इतनी तेजस्वी है कि वह समस्त संसार को प्रकाशित करती हैं। यह चौपाई दर्शाती है कि देवी की शक्ति की कोई सीमा नहीं है और उनकी ज्योति तीनों लोकों (स्वर्ग, पृथ्वी, पाताल) में फैली हुई है।

शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला ॥

अर्थ: आपके ललाट पर चंद्रमा है, आपका मुख अत्यधिक विशाल है। आपकी लाल आँखें और विकराल भृकुटियाँ अत्यंत भयानक हैं।

विस्तार: माँ दुर्गा का विकराल रूप असुरों के विनाश के समय देखने को मिलता है। उनका यह भयानक रूप उनके क्रोध और दुष्टों के नाश का प्रतीक है। यह चौपाई उनके सौम्य और क्रोधी दोनों रूपों को प्रकट करती है।

रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे ॥

अर्थ: आपका रूप अत्यधिक सुंदर और मनमोहक है। आपके दर्शन मात्र से भक्त अत्यधिक आनंद प्राप्त करते हैं।

विस्तार: माँ दुर्गा का सौम्य रूप भक्तों के लिए अत्यंत सुखदायी होता है। उनके दर्शन से मन की सभी चिंताएँ दूर हो जाती हैं और भक्तों को अनंत सुख की प्राप्ति होती है।

तुम संसार शक्ति लै कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना ॥

अर्थ: आपने संसार की सृष्टि की और जीवों के पालन के लिए अन्न और धन प्रदान किया।

विस्तार: माँ दुर्गा की महिमा को यहाँ संसार की रचयिता और पालनकर्ता के रूप में चित्रित किया गया है। वह अन्नपूर्णा के रूप में जीवन के लिए आवश्यक सभी संसाधन प्रदान करती हैं, जिससे जीवन संभव हो पाता है।

अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥

अर्थ: आप अन्नपूर्णा के रूप में समस्त जगत का पालन करती हैं और आप ही आदिशक्ति, सुंदरी और बालिका रूप में भी प्रकट होती हैं।

विस्तार: माँ दुर्गा को यहाँ अन्नपूर्णा के रूप में दर्शाया गया है, जो समस्त संसार को अन्न और धन का वरदान देती हैं। साथ ही, वह आदि शक्ति के रूप में भी प्रकट होती हैं, जो सृष्टि की आरंभकर्ता हैं। उनका बालिका रूप भी उनकी मासूमियत और शक्ति का प्रतीक है।

प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी ॥

अर्थ: प्रलय के समय आप ही सब कुछ नाश करने वाली हैं, आप ही शिवशंकर की प्रिय गौरी हैं।

विस्तार: जब संसार का अंत होता है, तब माँ दुर्गा अपने प्रलयंकारी रूप में सभी का संहार करती हैं। इस चौपाई में माँ गौरी के रूप का वर्णन है, जो शिवजी की प्रिय हैं और प्रेम और करुणा की मूर्ति हैं।

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥

अर्थ: शिव और अन्य योगी तुम्हारे गुणों का गान करते हैं, ब्रह्मा और विष्णु भी निरंतर आपकी आराधना करते हैं।

विस्तार: माँ दुर्गा की महिमा इतनी महान है कि स्वयं भगवान शिव, ब्रह्मा, और विष्णु भी उनकी स्तुति और ध्यान में रहते हैं। वे आदि शक्ति की महिमा का अनुभव करते हैं और उनकी शक्ति का गुणगान करते हैं।

रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा ॥

अर्थ: आपने सरस्वती का रूप धारण किया और ऋषि-मुनियों को सुबुद्धि देकर उनका उद्धार किया।

विस्तार: माँ दुर्गा की महिमा सरस्वती के रूप में प्रकट होती है, जहाँ वे ज्ञान और बुद्धि की देवी के रूप में भक्तों का कल्याण करती हैं। यह चौपाई बताती है कि ऋषि-मुनि उनकी कृपा से सुबुद्धि प्राप्त कर मोक्ष का मार्ग पाते हैं।

धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा ॥

अर्थ: आपने नरसिंह रूप धारण किया और खंभे से प्रकट होकर हिरण्यकश्यप का संहार किया।

विस्तार: यह चौपाई उस घटना का वर्णन करती है जब माँ दुर्गा ने नरसिंह का रूप लेकर अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की। उन्होंने खंभे से प्रकट होकर हिरण्यकश्यप का वध किया।

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो ॥

अर्थ: आपने प्रह्लाद की रक्षा की और हिरण्याक्ष को स्वर्ग भेजा।

विस्तार: माँ दुर्गा अपने भक्तों की हमेशा रक्षा करती हैं, जैसे उन्होंने प्रह्लाद की रक्षा की थी। उन्होंने अपने शत्रु हिरण्याक्ष का वध कर उसे स्वर्ग भेज दिया।

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं ॥

अर्थ: आपने जगत में लक्ष्मी का रूप धारण किया और श्री नारायण के साथ समाहित हो गईं।

विस्तार: माँ दुर्गा लक्ष्मी के रूप में धन और समृद्धि की देवी के रूप में प्रकट होती हैं। उनका यह रूप श्री नारायण के साथ जुड़ा हुआ है, जो जीवन में आर्थिक सम्पन्नता और समृद्धि प्रदान करता है।

क्षीरसिन्धु में करत विलासा। दयासिन्धु दीजै मन आसा ॥

अर्थ:
आप क्षीरसागर में विलास कर रही हैं। आप दया की मूर्ति हैं, कृपया मेरे मन को आशा दीजिए।

विस्तार:
माँ दुर्गा को क्षीरसागर (दूध के महासागर) में स्थित दिखाया गया है, जहाँ वे विलास करती हैं। इस चौपाई में भक्त माँ से आशा और उम्मीद की प्रार्थना कर रहा है। माँ की दयालुता और करुणा की कोई सीमा नहीं है, और वे हमेशा अपने भक्तों की प्रार्थना सुनकर उन्हें उम्मीद और शक्ति देती हैं।

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी ॥

अर्थ:
आप हिंगलाज में भवानी के रूप में पूजी जाती हैं। आपकी महिमा अनंत है, जिसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता।

विस्तार:
यहाँ माँ दुर्गा को हिंगलाज देवी के रूप में पूजित किया जा रहा है, जो शक्ति का प्रमुख स्थान है। उनकी महिमा इतनी महान और अद्वितीय है कि उसे पूरी तरह से शब्दों में व्यक्त करना असंभव है। उनकी शक्तियों का विस्तार अनंत है और उनकी महिमा हर युग में बखान की जाती है।

मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता ॥

अर्थ:
आप मातंगी और धूमावती के रूप में पूजी जाती हैं। आप भुवनेश्वरी और बगला देवी हैं, जो सुख की दाता हैं।

विस्तार:
माँ दुर्गा का विभिन्न रूपों में पूजन किया जाता है। वे मातंगी, धूमावती, भुवनेश्वरी और बगला के रूप में प्रतिष्ठित हैं, जो अपने भक्तों को सुख, समृद्धि, और शांति का वरदान देती हैं। ये सभी रूप माँ दुर्गा के विभिन्न गुणों और शक्तियों को दर्शाते हैं।

श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ॥

अर्थ:
आप भैरव और तारा के रूप में जगत की रक्षा करने वाली हैं। आप छिन्नमस्ता देवी हैं, जो भव (संसार) के दुःखों का नाश करती हैं।

विस्तार:
माँ दुर्गा का भैरव और तारा के रूप में वर्णन किया गया है, जो सभी बुराइयों और दुखों का अंत करती हैं। वे छिन्नमस्ता के रूप में सभी कष्टों और दु:खों को नष्ट करती हैं। उनकी पूजा से संसार के सभी दुख समाप्त हो जाते हैं, और भक्तों को अनंत शांति प्राप्त होती है।

केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी ॥

अर्थ:
आपके वाहन सिंह (केहरि) पर आप शोभा पाती हैं, और वीर लांगूर (हनुमान) आपकी अगवानी करते हैं।

विस्तार:
यहाँ माँ दुर्गा का सिंह (शेर) पर सवार रूप बताया गया है, जो उनकी शक्ति और साहस का प्रतीक है। हनुमान जी उनके सेवक और भक्त के रूप में उनकी सेवा करते हैं। माँ का यह रूप उनके साहस और शौर्य को दिखाता है, और उनके भक्तों में भी वीरता की भावना भरता है।

कर में खप्पर खड्ग विराजै। जाको देख काल डर भाजै ॥

अर्थ:
आपके हाथ में खप्पर (जमदरा) और खड्ग (तलवार) सुशोभित हैं। इन्हें देखकर काल (मृत्यु) भी डरकर भाग जाता है।

विस्तार:
माँ दुर्गा के हाथ में खड्ग और खप्पर उनके क्रोध और संहारक रूप को दर्शाते हैं। जब वे इस रूप में प्रकट होती हैं, तो मृत्यु और काल भी उनके सामने टिक नहीं पाते। इस चौपाई से माँ की अजेय शक्ति और उनकी संहारक क्षमता का बखान होता है।

सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला ॥

अर्थ:
आपके पास अस्त्र और त्रिशूल सुशोभित हैं, जिन्हें देखकर शत्रु के हृदय में शूल (पीड़ा) उत्पन्न हो जाती है।

विस्तार:
माँ दुर्गा के हाथ में त्रिशूल और अन्य अस्त्र-शस्त्र उनके शत्रु विनाशक रूप को प्रदर्शित करते हैं। जब भी कोई दुष्ट उनके सामने आता है, तो उनके हथियारों की आभा से उसका अंत निश्चित हो जाता है। यह चौपाई माँ के शक्ति और रौद्र रूप को दर्शाती है।

नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिहुँलोक में डंका बाजत ॥

अर्थ:
आप नगरकोट में विराजमान हैं और आपके नाम का डंका तीनों लोकों में बज रहा है।

विस्तार:
यहाँ माँ दुर्गा को नगरकोट में विराजमान दिखाया गया है, जहाँ वे भक्तों के दुख दूर करती हैं। उनके नाम और महिमा की गूंज तीनों लोकों (स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल) में हो रही है। उनकी प्रसिद्धि इतनी विस्तृत है कि सभी स्थानों पर उनकी पूजा होती है और उनका यश गाया जाता है।

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे। रक्तबीज शंखन संहारे ॥

अर्थ:
आपने शुम्भ और निशुम्भ दानवों का वध किया और रक्तबीज का भी संहार किया।

विस्तार:
यह चौपाई माँ दुर्गा की असुरों पर विजय का वर्णन करती है। शुम्भ-निशुम्भ और रक्तबीज जैसे दुष्ट असुरों को माँ दुर्गा ने अपने वीर रूप में संहार किया। रक्तबीज की विशेषता थी कि उसके रक्त की हर बूंद से एक नया रक्तबीज उत्पन्न हो जाता था, परंतु माँ दुर्गा ने उसे भी पराजित किया।

महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥

अर्थ:
महिषासुर नामक राजा अत्यंत अभिमानी था, जिसके पापों के कारण पृथ्वी कष्ट में थी।

विस्तार:
महिषासुर एक अत्यंत शक्तिशाली और अहंकारी असुर था, जिसने अपने अत्याचारों से पूरी पृथ्वी को भयभीत कर दिया था। उसके पापों के बोझ से पृथ्वी अकुला रही थी। यह चौपाई महिषासुर के अत्याचारों का वर्णन करती है और माँ दुर्गा की शक्ति की ओर संकेत करती है, जिसने अंततः इस दानव का नाश किया।

रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा ॥

अर्थ:
आपने कराल (भयंकर) कालिका का रूप धारण किया और उसकी सेना सहित उसका संहार कर दिया।

विस्तार:
माँ दुर्गा ने महिषासुर का वध करने के लिए अपने कराल कालिका रूप को धारण किया। इस भयंकर रूप में उन्होंने महिषासुर और उसकी विशाल सेना को समाप्त कर दिया। माँ दुर्गा का यह रूप उनके भयंकर और विध्वंसक रूप को दर्शाता है, जो दुष्टों के नाश के लिए प्रकट होता है।

परी गाढ़ सन्तन पर जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब ॥

अर्थ:
जब-जब संतों पर भारी संकट आया, तब-तब आप उनकी सहायता के लिए प्रकट हुईं।

विस्तार:
माँ दुर्गा हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। जब भी किसी भक्त या संत पर कोई संकट आता है, माँ दुर्गा तुरंत उनकी रक्षा के लिए प्रकट होती हैं और उनके सभी कष्टों का अंत करती हैं। यह चौपाई माँ की करुणा और भक्तों के प्रति उनके प्रेम को दर्शाती है।

अमरपुरी अरु बासव लोका। तब महिमा सब रहें अशोका ॥

अर्थ:
अमरपुरी (स्वर्ग) और बासव लोक (इंद्रलोक) में भी आपकी महिमा की कोई सीमा नहीं है, और वहाँ भी आपकी महिमा के कारण सब आनंदित रहते हैं।

विस्तार:
यह चौपाई माँ दुर्गा की महिमा का विस्तार करती है कि न केवल पृथ्वी, बल्कि स्वर्ग और इंद्रलोक जैसे स्थानों में भी उनकी पूजा और आदर होता है। उनकी महिमा के कारण वहां भी सभी अशोक (दुःखरहित) और प्रसन्नचित्त रहते हैं।

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नरनारी ॥

अर्थ:
ज्वाला (अग्नि) में भी आपकी ज्योति विराजमान है, और नर-नारी सदा आपकी पूजा करते हैं।

विस्तार:
माँ दुर्गा की शक्ति अग्नि के रूप में प्रकट होती है। उनकी ज्योति हमेशा जलती रहती है और उनकी पूजा नर-नारी हर युग में करते हैं। यह चौपाई माँ के दिव्य तेज और उनके निरंतर पूजनीय रूप का वर्णन करती है।

प्रेम भक्ति से जो यश गावें। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें ॥

अर्थ:
जो व्यक्ति प्रेम और भक्ति से आपका यश गाता है, उसके पास दुःख और दरिद्रता कभी नहीं आती।

विस्तार:
यहाँ बताया गया है कि जो भक्त माँ दुर्गा की सच्ची श्रद्धा और भक्ति से उनकी महिमा का गान करते हैं, उनके जीवन में कभी भी दुःख और दरिद्रता का प्रवेश नहीं होता। भक्ति और श्रद्धा से भरा हुआ हृदय हर प्रकार के कष्टों से मुक्त रहता है और माँ दुर्गा की कृपा से उसका जीवन समृद्ध और सुखमय हो जाता है।

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्ममरण ताकौ छुटि जाई ॥

अर्थ:
जो व्यक्ति मन लगाकर आपकी आराधना करता है, उसे जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति प्राप्त हो जाती है।

विस्तार:
माँ दुर्गा की सच्ची आराधना करने वाले भक्तों को जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। उनकी कृपा से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और वे संसार के बंधनों से मुक्त हो जाते हैं। इस चौपाई में माँ दुर्गा की शक्ति और उनके भक्तों के उद्धार के प्रति उनकी करुणा को दर्शाया गया है।

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी। योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ॥

अर्थ:
योगी, देवता और मुनि सभी पुकारकर कहते हैं कि शक्ति के बिना योग की प्राप्ति संभव नहीं है।

विस्तार:
यहाँ माँ दुर्गा की महिमा को योग और ध्यान के संदर्भ में बताया गया है। योगी, देवता और मुनि यह मानते हैं कि बिना माँ दुर्गा की शक्ति के किसी भी प्रकार का आध्यात्मिक योग या सिद्धि प्राप्त करना असंभव है। माँ दुर्गा की शक्ति से ही योगियों को शक्ति और ध्यान की सिद्धि प्राप्त होती है।

शंकर आचारज तप कीनो। काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ॥

अर्थ:
भगवान शंकर ने तपस्या की और काम तथा क्रोध पर विजय प्राप्त कर ली।

विस्तार:
इस चौपाई में भगवान शिव की तपस्या और उनके द्वारा काम, क्रोध जैसे विकारों पर विजय प्राप्त करने का वर्णन किया गया है। शिवजी ने माँ दुर्गा की आराधना से इन सभी विकारों पर नियंत्रण प्राप्त किया और ध्यानमग्न हुए। यह चौपाई दिखाती है कि माँ दुर्गा की शक्ति से ही विकारों पर नियंत्रण संभव है।

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको ॥

अर्थ:
शिवजी दिन-रात ध्यान में लीन रहते हैं, लेकिन कभी उन्होंने आपको नहीं स्मरण किया।

विस्तार:
इसमें यह बताया गया है कि भगवान शिव दिन-रात ध्यानमग्न रहते थे, लेकिन एक समय ऐसा भी था जब उन्होंने माँ दुर्गा को स्मरण नहीं किया। इसका तात्पर्य यह है कि देवी शक्ति के बिना ध्यान और साधना भी अधूरी रह जाती है।

शक्ति रूप का मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो ॥

अर्थ:
आपकी शक्ति के रहस्य को शिवजी समझ नहीं पाए, और जब शक्ति उनसे चली गई, तब उन्होंने पछतावा किया।

विस्तार:
भगवान शिव ने एक बार माँ दुर्गा की शक्ति के वास्तविक रहस्य को नहीं समझा, जिसके कारण शक्ति उनसे दूर चली गई। जब शिवजी को इसका अहसास हुआ, तब उन्हें पछतावा हुआ। यह चौपाई यह सिखाती है कि शक्ति (माँ दुर्गा) के बिना भगवान भी असहाय हो जाते हैं, और शक्ति की उपेक्षा करना विनाशकारी हो सकता है।

शरणागत हुई कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्ब भवानी ॥

अर्थ:
जब भगवान शिव ने शरण ली, तब उन्होंने माँ दुर्गा की महिमा का बखान किया और ‘जय जय जय जगदम्ब भवानी’ का नारा लगाया।

विस्तार:
शिवजी ने अंततः माँ दुर्गा की शरण में आकर उनकी महिमा का गुणगान किया। इस चौपाई में माँ की शरण में आने का महत्व बताया गया है, जहाँ सभी देवी-देवता उनकी स्तुति और प्रशंसा करते हैं। माँ दुर्गा की शरण में आने से सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं और जीवन में सफलता मिलती है।

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ॥

अर्थ:
माँ जगदम्बा प्रसन्न हुईं और उन्होंने शक्ति प्रदान की, बिना कोई विलम्ब किए।

विस्तार:
जब भक्त माँ दुर्गा की सच्ची श्रद्धा से पूजा करता है, तो माँ प्रसन्न होकर तुरंत उसकी सभी समस्याओं का समाधान करती हैं और उसे शक्ति प्रदान करती हैं। इस चौपाई में बताया गया है कि माँ दुर्गा की कृपा तुरंत फलदायी होती है, और उनके भक्तों को विलम्बित सहायता नहीं मिलती।

मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ॥

अर्थ:
हे माँ, मुझे बहुत कष्टों ने घेर रखा है। आपके अलावा मेरे कष्टों को कौन दूर कर सकता है?

विस्तार:
यह चौपाई एक भक्त की विनती है, जो माँ दुर्गा से अपने कष्टों के निवारण की प्रार्थना कर रहा है। वह माँ को अपनी एकमात्र आश्रय मानता है और कहता है कि माँ दुर्गा के अलावा उसकी पीड़ा को कोई दूर नहीं कर सकता। माँ की कृपा से सभी दुःख और कष्ट समाप्त हो जाते हैं।

आशा तृष्णा निपट सतावें। मोह मदादिक सब बिनशावें ॥

अर्थ:
आशा और तृष्णा (इच्छाएं) मुझे बहुत सताती हैं। कृपया मोह, मद और अन्य दोषों का नाश कर दें।

विस्तार:
यहाँ भक्त अपने मन में स्थित आशा, तृष्णा, मोह, मद, और अन्य दोषों के नाश के लिए माँ दुर्गा से प्रार्थना कर रहा है। यह चौपाई हमें यह सिखाती है कि मनुष्य के भीतर की बुराइयों का अंत तभी हो सकता है, जब वह माँ दुर्गा की कृपा प्राप्त करे। उनकी कृपा से ये सभी मानसिक विकार समाप्त हो जाते हैं और मन शांत हो जाता है।

शत्रु नाश कीजै महारानी। सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी ॥

अर्थ:
हे महारानी, कृपया मेरे शत्रुओं का नाश कीजिए। मैं एकचित्त होकर आपकी आराधना करता हूँ।

विस्तार:
यहाँ भक्त माँ दुर्गा से अपने शत्रुओं के विनाश की प्रार्थना कर रहा है। वह माँ दुर्गा की सच्ची आराधना में लीन होकर उनसे सहायता की विनती कर रहा है। माँ दुर्गा अपने भक्तों के शत्रुओं का नाश करती हैं और उनके जीवन को शांतिपूर्ण बनाती हैं।

करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धिसिद्धि दै करहु निहाला ॥

अर्थ:
हे दयालु माता, कृपा करके मुझे ऋद्धि-सिद्धि प्रदान करें और मुझे आशीर्वाद दें।

विस्तार:
भक्त यहाँ माँ दुर्गा से कृपा और आशीर्वाद की याचना कर रहा है। वह माँ से ऋद्धि-सिद्धि (समृद्धि और आध्यात्मिक सिद्धियां) की प्रार्थना कर रहा है, जिससे उसका जीवन सुखी और सफल हो सके। माँ दुर्गा की कृपा से भक्त को सभी भौतिक और आध्यात्मिक उपलब्धियां प्राप्त होती हैं।

जब लगि जिऊँ दया फल पाऊँ। तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ ॥

अर्थ:
जब तक मैं जीवित रहूँ, आपकी कृपा से फल प्राप्त करूँ और सदा आपके यश का गान करता रहूँ।

विस्तार:
भक्त माँ दुर्गा से यह प्रार्थना करता है कि जब तक वह जीवित है, उसे माँ की कृपा से फल प्राप्त होता रहे और वह हमेशा माँ के यश का गुणगान करता रहे। माँ दुर्गा के भक्त हमेशा उनकी महिमा का बखान करते रहते हैं और उनका जीवन माँ की आराधना में समर्पित होता है।

श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै। सब सुख भोग परमपद पावै ॥

अर्थ:
जो कोई भी दुर्गा चालीसा का गान करता है, उसे सभी सुखों का अनुभव होता है और उसे परमपद (मोक्ष) की प्राप्ति होती है।

विस्तार:
यह चौपाई बताती है कि जो भी भक्त सच्चे मन से दुर्गा चालीसा का पाठ करता है, उसे जीवन के सभी सुखों की प्राप्ति होती है और अंत में उसे मोक्ष प्राप्त होता है। माँ दुर्गा की कृपा से भक्त के जीवन में कोई कष्ट नहीं रहता और वह जीवन के हर क्षेत्र में सफल होता है।

देवीदास शरण निज जानी। कहु कृपा जगदम्ब भवानी ॥

अर्थ:
देवीदास को शरण में जानकर कृपा कीजिए, हे जगदम्बा भवानी!

विस्तार:
यहाँ भक्त माँ दुर्गा से अपने ऊपर कृपा की प्रार्थना कर रहा है। वह स्वयं को माँ की शरण में मानता है और उनसे करुणा और आशीर्वाद की विनती कर रहा है। माँ दुर्गा हमेशा अपने भक्तों की प्रार्थना सुनती हैं और उन्हें आशीर्वाद प्रदान करती हैं।

दोहा

शरणागत रक्षा करे, भक्त रहे नि:शंक।

मैं आया तेरी शरण में, मातु लिजिये अंक ॥

अर्थ:
जो भी भक्त आपकी शरण में आता है, उसकी रक्षा आप सदा करती हैं। मैं भी आपकी शरण में आया हूँ, हे माँ, कृपया मुझे अपनी गोद में स्थान दें।

विस्तार:
यह अंतिम दोहा माँ दुर्गा की शरण में आने वाले भक्तों के प्रति उनकी करुणा और सुरक्षा की प्रार्थना है। भक्त माँ दुर्गा से विनती करता है कि उसे अपनी गोद में स्थान दें और उसकी रक्षा करें। माँ दुर्गा हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करती हैं और उन्हें हर प्रकार के भय और कष्ट से मुक्त करती हैं।

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