श्री दुर्गा देवी स्तोत्रम् in Hindi/Sanskrit
श्रीगणेशाय नमः । श्री दुर्गायै नमः ।
नगरांत प्रवेशले पंडुनंदन । तो देखिले दुर्गास्थान ।
धर्मराज करी स्तवन । जगदंबेचे तेधवा ॥ १ ॥
जय जय दुर्गे भुवनेश्वरी । यशोदा गर्भ संभवकुमारी ।
इंदिरा रमण सहोदरी । नारायणी चंडिकेंऽबिके ॥ २ ॥
जय जय जगदंबे विश्र्व कुटुंबिनी । मूलस्फूर्ति प्रणवरुपिणी ।
ब्रह्मानंदपददायिनी । चिद्विलासिनी अंबिके तू ॥ ३ ॥
जय जय धराधर कुमारी । सौभाग्य गंगे त्रिपुर सुंदरी ।
हेरंब जननी अंतरी । प्रवेशीं तू आमुचे ॥ ४ ॥
भक्तह्रदयारविंद भ्रमरी । तुझे कृपाबळे निर्धारी ।
अतिगूढ निगमार्थ विवरी । काव्यरचना करी अद् भुत ॥ ५ ॥
तुझिये कृपावलोकनेंकरुन । गर्भांधासी येतील नयन ।
पांगुळा करील गमन । दूर पंथे जाऊनी ॥ ६ ॥
जन्मादारभ्य जो मुका । होय वाचस्पतिसमान बोलका ।
तूं स्वानंदसरोवर मराळिका । होसी भाविकां सुप्रसन्न ॥ ७ ॥
ब्रह्मानंदे आदिजननी । तव कृपेची नौका करुनि ।
दुस्तर भवसिंधु उल्लंघूनी । निवृत्ती तटां जाइजे ॥ ८ ॥
जय जय आदिकुमारिके । जय जय मूलपीठनायीके ।
सकल सौभाग्य दायीके । जगदंबिके मूलप्रकृतिके ॥ ९ ॥
जय जय भार्गवप्रिये भवानी । भयनाशके भक्तवरदायिनी ।
सुभद्रकारिके हिमनगनंदिनी । त्रिपुरसुंदरी महामाये ॥ १० ॥
जय जय आनंदकासारमराळिके । पद्मनयने दुरितवनपावके ।
त्रिविधतापभवमोचके । सर्व व्यापके मृडानी ॥ ११ ॥
शिवमानसकनकलतिके । जय चातुर्य चंपककलिके ।
शुंभनिशुंभदैत्यांतके । निजजनपालके अपर्णे ॥ १२ ॥
तव मुखकमल शोभा देखोनी । इंदुबिंब गेले विरोनी ।
ब्रह्मादिदेव बाळें तान्ही । स्वानंदसदनी निजविसी ॥ १३ ॥
जीव शिव दोन्ही बाळकें । अंबे त्वां निर्मिली कौतुकें ।
स्वरुप तुझे जीव नोळखे । म्हणोनि पडला आवर्ती ॥ १४ ॥
शिव तुझे स्मरणीं सावचित्त । म्हणोनि तो नित्यमुक्त ।
स्वानंदपद हातां येत । तुझे कृपेनें जननिये ॥ १५ ॥
मेळवूनि पंचभूतांचा मेळ । त्वां रचिला ब्रह्मांडगोळ ।
इच्छा परततां तत्काळ । क्षणें निर्मूळे करिसी तूं ॥ १६ ॥
अनंत बालादित्यश्रेणी । तव प्रभेमाजी गेल्या लपोनि ।
सकल सौभाग्य शुभकल्याणी । रमारमणवरप्रदे ॥ १७ ॥
जय शंबरि पुहर वल्लभे । त्रैलोक्य नगरारंभस्तंभे ।
आदिमाये आत्मप्रिये । सकलारंभे मूलप्रकृती ॥ १८ ॥
जय करुणामृतसरिते । भक्तपालके गुणभरिते ।
अनंतब्रह्मांड फलांकिते । आदिमाये अन्नपूर्णे ॥ १९ ॥
तूं सच्चिदानंदप्रणवरुपिणी । सकल चराचर व्यापिनी ।
सर्गस्थित्यंत कारिणी । भवमोचिनी ब्रह्मानंदे ॥ २० ॥
ऐकोनि धर्माचे स्तवन । दुर्गा जाहली प्रसन्न ।
म्हणे तुमचे शत्रू संहारीन । राज्यीं स्थापीन धर्माते ॥ २१ ॥
तुम्ही वास करा येथ । प्रगटी नेदीं जनांत ।
शत्रू क्षय पावती समस्त । सुख अद् भुत तुम्हां होय ॥ २२ ॥
त्वां जें स्तोत्र केलें पूर्ण । तें जे त्रिकाल करिती पठन ।
त्यांचे सर्व काम पुरवीन । सदा रक्षीन अंतर्बाह्य ॥ २३ ॥
Durga Devi Stotra Yudhishthir Virachitam in English
Shri Ganeshaaya Namah. Shri Durgaayai Namah.
Nagaraanth praveshale Pandunandan. To dekhile Durgasthaan.
Dharmaraj kari stavan. Jagadambeche tedhava. (1)
Jai Jai Durge Bhuvaneshwari. Yashoda garbha sambhavkumari.
Indira raman sahodari. Narayani Chandikembaike. (2)
Jai Jai Jagadambe vishv kutumbini. Mulasphurti pranvarupini.
Brahmaanandapadadayini. Chidvilasini Ambike tu. (3)
Jai Jai Dharadhar Kumari. Saubhagya Gange Tripur Sundari.
Heramba janani antari. Praveshi tu amuche. (4)
Bhaktahridayaravind bhramari. Tujhe krupabale nirdhari.
Atigudh nigamarth vivari. Kavyarachana kari adbhut. (5)
Tujhiye krupavalokenekarun. Garbhandhasi yetil nayan.
Paangula karil gaman. Door panthe jaunii. (6)
Janmadharabhya jo muka. Hoy vachaspatisamaan bolka.
Tu swanandasrovar maralika. Hosi bhavika suprasanna. (7)
Brahmanande aadijanani. Tava krupenchi nauka karuni.
Dustar bhavasindhu ullanghuni. Nivrutti tatanch jaije. (8)
Jai Jai Adikumarike. Jai Jai Mulapithanayike.
Sakal saubhagya dayike. Jagadamabike mulapratrike. (9)
Jai Jai Bhargavapriye Bhavani. Bhayanashake Bhaktavaradayini.
Subhadrakarike Himanaganandini. Tripursundari Mahamaye. (10)
Jai Jai Anandkasaramaralike. Padmanayane Duritvanapavake.
Trividhatapabhavmochake. Sarv vyapake Mridani. (11)
Shivmanaskanakaltike. Jai Chaturya Champakkalike.
Shumbhnishumbhdaityantake. Nijanpalake Aparne. (12)
Tava mukhkamal shobha dekhoni. Indubimb gele vironi.
Brahmadidev baale tanhi. Svanandsadani nijavisi. (13)
Jiv Shiv donhi balake. Ambe tva nirmili kautuke.
Swarup tujhe jiv nolakhe. Mhanoni padla avarti. (14)
Shiv tujhe smarani savachitt. Mhanoni to nityamukt.
Svanandapad hata yet. Tujhe krupene jananiye. (15)
Melavuni panchbhutanch mel. Tva rachila brahmandgol.
Ichha paratata tatkal. Kshane nirmule karisi tu. (16)
Anant baladityashreni. Tava prabhemaji gellya laponi.
Sakal saubhagya shubhkalyaani. Ramaramanvarprade. (17)
Jai Shambari puhar vallabhe. Trailokya nagararambhstambhe.
Adimaye aatmpriye. Sakalarambhe mulprakruti. (18)
Jai Karunamritsarite. Bhaktapalake gunbharite.
Anantbrahmand falankite. Adimaye Annapurne. (19)
Tu satchidanandapranvarupini. Sakal charachar vyapini.
Sargshtityant karini. Bhavmochini Brahmanande. (20)
Aikoni dharmache stavan. Durga jahli prasanna.
Mhane tumche shatru sanharin. Rajyi sthapin dharmate. (21)
Tumhi vas kara yeth. Pragati nedi janant.
Shatru kshaya pavati samast. Sukh adbhut tumha hoy. (22)
Tva jen stotra kele purn. Ten je trikal kariti pathan.
Tyanche sarv kam puravin. Sada rakshin antarbahy. (23)
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श्री दुर्गा स्तवन का अर्थ और व्याख्या
श्रीगणेशाय नमः। श्री दुर्गायै नमः।
यह स्तुति भगवान गणेश और माँ दुर्गा को समर्पित है, जिनकी आराधना से हर कार्य में सफलता मिलती है। गणेश जी विघ्नहर्ता हैं और माँ दुर्गा शक्ति का प्रतीक हैं।
नगरांत प्रवेशले पंडुनंदन। तो देखिले दुर्गास्थान। धर्मराज करी स्तवन। जगदंबेचे तेधवा ॥ १ ॥
अर्थ:
जब पांडव नगर में प्रवेश करते हैं, तो वे दुर्गा के स्थान को देखते हैं। धर्मराज युधिष्ठिर माँ दुर्गा की स्तुति करते हैं, और माँ जगदंबा के समक्ष अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं।
व्याख्या:
यह पंक्ति उस क्षण को दर्शाती है जब पांडवों ने नगर में प्रवेश किया और उन्होंने माँ दुर्गा की उपस्थिति को महसूस किया। धर्मराज युधिष्ठिर द्वारा माँ दुर्गा की स्तुति यह दर्शाती है कि माँ जगदंबा उनके मार्ग में आने वाली सभी बाधाओं को दूर करने वाली हैं।
जय जय दुर्गे भुवनेश्वरी। यशोदा गर्भ संभवकुमारी। इंदिरा रमण सहोदरी। नारायणी चंडिकेंऽबिके ॥ २ ॥
अर्थ:
हे माँ दुर्गा, आपको जय हो, आप भुवनेश्वरी हैं। आप यशोदा के गर्भ से उत्पन्न हुईं और इंद्र की पत्नी लक्ष्मी की बहन हैं। आप नारायणी, चंडी, और अम्बिका के नाम से जानी जाती हैं।
व्याख्या:
यहां माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों और नामों की महिमा का वर्णन किया गया है। वे यशोदा की पुत्री हैं और लक्ष्मी की बहन के रूप में पूजी जाती हैं। नारायणी और चंडी के रूप में, वे सृष्टि की रक्षा करती हैं और राक्षसों का नाश करती हैं।
जय जय जगदंबे विश्र्व कुटुंबिनी। मूलस्फूर्ति प्रणवरुपिणी। ब्रह्मानंदपददायिनी। चिद्विलासिनी अंबिके तू ॥ ३ ॥
अर्थ:
हे जगदंबा, आपको जय हो, आप सम्पूर्ण जगत की कुटुंबिनी हैं। आप मूल प्रेरणा और प्रणव (ओम) का रूप हैं। आप ब्रह्मानंद (परम आनंद) का पद प्रदान करने वाली हैं, और आप चैतन्य की आनंदमयी लीला का स्वरूप हैं।
व्याख्या:
माँ दुर्गा को यहाँ सृष्टि की मातृ रूप में पूजा जा रहा है। वे सम्पूर्ण सृष्टि की रचयिता हैं और सभी प्राणियों को ब्रह्मानंद, अर्थात् परम आनंद की प्राप्ति कराती हैं। उनका स्वरूप चिदानंद है, जो जीवन की वास्तविकता और ब्रह्मांड की सजीवता का प्रतीक है।
जय जय धराधर कुमारी। सौभाग्य गंगे त्रिपुर सुंदरी। हेरंब जननी अंतरी। प्रवेशीं तू आमुचे ॥ ४ ॥
अर्थ:
हे धराधर कुमारी (पार्वती), आपको जय हो। आप सौभाग्य की गंगा हैं और त्रिपुर सुंदरी के नाम से प्रसिद्ध हैं। आप गणेश की माता हैं और हमारे हृदय में स्थित हैं। कृपया हमारे भीतर प्रवेश करें।
व्याख्या:
यहाँ माँ दुर्गा को धराधर कुमारी, अर्थात् पार्वती के रूप में वर्णित किया गया है, जो सौभाग्य और सुंदरता की देवी हैं। वे त्रिपुर सुंदरी के रूप में प्रसिद्ध हैं, जो तीनों लोकों की सुंदरता और शक्ति की देवी हैं। उनकी उपस्थिति भक्तों के हृदय में सुख, सौभाग्य और शांति लाती है।
भक्तह्रदयारविंद भ्रमरी। तुझे कृपाबळे निर्धारी। अतिगूढ निगमार्थ विवरी। काव्यरचना करी अद् भुत ॥ ५ ॥
अर्थ:
हे माँ दुर्गा, आप भक्तों के ह्रदय कमल में भ्रमर (भौंरा) की तरह विराजमान हैं। आपकी कृपा से भक्तों को अद्भुत शक्ति प्राप्त होती है। आप वेदों के गूढ़ अर्थों को प्रकट करती हैं और अद्भुत काव्य रचती हैं।
व्याख्या:
इस पंक्ति में माँ दुर्गा की कृपा का वर्णन है, जो भक्तों को अज्ञात और गूढ़ ज्ञान की प्राप्ति कराती हैं। वे भक्तों के हृदय में वास करती हैं और उन्हें सृजनात्मकता और ज्ञान का आशीर्वाद देती हैं।
तुझिये कृपावलोकनेंकरुन। गर्भांधासी येतील नयन। पांगुळा करील गमन। दूर पंथे जाऊनी ॥ ६ ॥
अर्थ:
हे माँ, आपकी कृपा दृष्टि से अंधे को दृष्टि मिलती है, और लंगड़ा व्यक्ति चलने लगता है। आपकी शक्ति से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं।
व्याख्या:
यह पंक्ति माँ दुर्गा की करुणा और चमत्कारी शक्ति का वर्णन करती है। उनकी कृपा से असाध्य रोग और शारीरिक बाधाएँ दूर हो जाती हैं। यहाँ उनकी दिव्यता और सामर्थ्य का बखान किया गया है, जिससे भक्तों का उद्धार होता है।
जन्मादारभ्य जो मुका। होय वाचस्पतिसमान बोलका। तूं स्वानंदसरोवर मराळिका। होसी भाविकां सुप्रसन्न ॥ ७ ॥
अर्थ:
जो जन्म से ही मूक (गूंगा) हो, वह भी आपकी कृपा से वाचस्पति (महान वक्ता) बन जाता है। आप आनंद के सरोवर में हंस के समान हैं और भक्तों पर प्रसन्न रहती हैं।
व्याख्या:
यहाँ माँ दुर्गा की कृपा से मूक व्यक्ति भी वाणी की शक्ति प्राप्त कर लेता है। वे आनंदमयी हैं और अपने भक्तों के प्रति सदा प्रसन्न रहती हैं। उनका रूप सौंदर्य और दिव्यता से भरपूर है, जो भक्तों के जीवन में आनंद लाता है।
ब्रह्मानंदे आदिजननी। तव कृपेची नौका करुनि। दुस्तर भवसिंधु उल्लंघूनी। निवृत्ती तटां जाइजे ॥ ८ ॥
अर्थ:
आप ब्रह्मानंद की आदिजननी हैं। आपकी कृपा से भक्त भवसागर को पार करके मोक्ष के तट तक पहुँचते हैं।
व्याख्या:
माँ दुर्गा को यहाँ ब्रह्मानंद की जननी कहा गया है, जो मोक्ष प्राप्ति का माध्यम हैं। उनकी कृपा से संसार रूपी भवसागर को पार करना संभव हो जाता है, जिससे भक्त मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।
जय जय आदिकुमारिके। जय जय मूलपीठनायीके। सकल सौभाग्य दायीके। जगदंबिके मूलप्रकृतिके ॥ ९ ॥
अर्थ:
हे आदिकुमारी (माँ दुर्गा), आपको जय हो। आप मूलपीठ की देवी हैं। आप सभी सौभाग्य देने वाली हैं। हे जगदंबा, आप मूल प्रकृति हैं।
व्याख्या:
माँ दुर्गा को यहाँ “आदिकुमारी” कहा गया है, जो यह दर्शाता है कि वे सृष्टि की प्रारंभिक शक्ति हैं। वे मूलपीठ की अधिष्ठात्री देवी हैं, जो समस्त सौभाग्य और समृद्धि की दात्री हैं। वे जगत की माँ और सृष्टि की आधारभूत शक्ति हैं, जिन्हें मूलप्रकृति कहा गया है।
जय जय भार्गवप्रिये भवानी। भयनाशके भक्तवरदायिनी। सुभद्रकारिके हिमनगनंदिनी। त्रिपुरसुंदरी महामाये ॥ १० ॥
अर्थ:
हे भार्गवप्रिया (पार्वती), भवानी, आपको जय हो। आप भय को नष्ट करने वाली और भक्तों को वरदान देने वाली हैं। आप सुभद्रा और हिमालय की पुत्री हैं। आप त्रिपुरसुंदरी और महामाया के रूप में पूजनीय हैं।
व्याख्या:
यहाँ माँ दुर्गा को भार्गवप्रिया कहा गया है, जिसका तात्पर्य है कि वे भगवान शिव की प्रिय हैं। वे भवानी के रूप में भय का नाश करती हैं और भक्तों को उनकी इच्छानुसार वरदान देती हैं। त्रिपुरसुंदरी के रूप में वे तीनों लोकों की सुंदरता और शक्ति का प्रतीक हैं।
जय जय आनंदकासारमराळिके। पद्मनयने दुरितवनपावके। त्रिविधतापभवमोचके। सर्व व्यापके मृडानी ॥ ११ ॥
अर्थ:
हे आनंद के सरोवर में हंस के समान (माँ दुर्गा), आपको जय हो। आपके कमल समान नेत्रों से दुष्कर्मों का नाश होता है। आप त्रिविध ताप से मुक्ति दिलाती हैं। आप सर्वव्यापी और मृडानी (शिव की पत्नी) हैं।
व्याख्या:
माँ दुर्गा को आनंद के सागर में हंस के रूप में देखा गया है, जो दिव्य आनंद का प्रतीक है। वे त्रिविध ताप – शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक – को नष्ट करती हैं। उनके कमल के समान नेत्र भक्तों को अनंत कृपा और शांति प्रदान करते हैं।
शिवमानसकनकलतिके। जय चातुर्य चंपककलिके। शुंभनिशुंभदैत्यांतके। निजजनपालके अपर्णे ॥ १२ ॥
अर्थ:
हे शिव के मन की सुनहरी बेल (माँ दुर्गा), आपको जय हो। आप चंपा के फूल की कली के समान हैं। आप शुंभ-निशुंभ जैसे राक्षसों का नाश करने वाली हैं और अपने भक्तों की रक्षा करने वाली हैं। आप अपर्णा (शिव की पत्नी) के रूप में पूजनीय हैं।
व्याख्या:
माँ दुर्गा को यहाँ शिव के मन की सुनहरी बेल के रूप में देखा गया है, जो शिव की प्रिय हैं। वे चंपक के फूल के समान कोमल और सुंदर हैं, लेकिन शुंभ-निशुंभ जैसे राक्षसों का नाश करने वाली शक्तिशाली योद्धा भी हैं। वे अपने भक्तों की सुरक्षा और उनकी मनोकामनाओं की पूर्ति करती हैं।
तव मुखकमल शोभा देखोनी। इंदुबिंब गेले विरोनी। ब्रह्मादिदेव बाळें तान्ही। स्वानंदसदनी निजविसी ॥ १३ ॥
अर्थ:
आपके मुखकमल की शोभा देखकर चंद्रमा की आभा भी फीकी पड़ जाती है। ब्रह्मा आदि देवता छोटे बच्चों की तरह आपकी गोद में स्वानंद के घर में विश्राम करते हैं।
व्याख्या:
माँ दुर्गा के मुख की सुंदरता ऐसी है कि चंद्रमा का प्रकाश भी फीका पड़ जाता है। देवता, जो सृष्टि के रचयिता और पालनकर्ता हैं, माँ दुर्गा की गोद में एक बच्चे की तरह स्वानंद (आनंद) का अनुभव करते हैं, जो माँ की ममता और दया का प्रतीक है।
जीव शिव दोन्ही बाळकें। अंबे त्वां निर्मिली कौतुकें। स्वरुप तुझे जीव नोळखे। म्हणोनि पडला आवर्ती ॥ १४ ॥
अर्थ:
जीव और शिव दोनों आपके बच्चे हैं, माँ। आपने कौतुक (लीला) के रूप में इनकी सृष्टि की। लेकिन जीव आपके वास्तविक स्वरूप को पहचान नहीं पाता, इसलिए वह संसार के चक्र में फंसा रहता है।
व्याख्या:
यह पंक्ति सृष्टि के रहस्य को प्रकट करती है, जहाँ जीव (जीवात्मा) और शिव (परमात्मा) दोनों को माँ दुर्गा ने अपनी लीला से उत्पन्न किया है। परंतु जीव, जो संसार के मोह में उलझा रहता है, माँ दुर्गा के वास्तविक स्वरूप को नहीं पहचान पाता, इसलिए वह संसार के आवर्तन में फंसा रहता है।
शिव तुझे स्मरणीं सावचित्त। म्हणोनि तो नित्यमुक्त। स्वानंदपद हातां येत। तुझे कृपेनें जननिये ॥ १५ ॥
अर्थ:
शिव आपका सावधानी से स्मरण करते हैं, इसलिए वे नित्य मुक्त रहते हैं। स्वानंद (परम आनंद) का पद आपकी कृपा से उनके हाथों में आता है।
व्याख्या:
शिव, जो माँ दुर्गा का ध्यान और स्मरण करते हैं, सदा मुक्त रहते हैं। माँ दुर्गा की कृपा से उन्हें परम आनंद और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह पंक्ति दर्शाती है कि माँ दुर्गा का स्मरण ही मुक्ति और आनंद का मार्ग है।
मेळवूनि पंचभूतांचा मेळ। त्वां रचिला ब्रह्मांडगोळ। इच्छा परततां तत्काळ। क्षणें निर्मूळे करिसी तूं ॥ १६ ॥
अर्थ:
आपने पंचभूतों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) को मिलाकर इस ब्रह्मांड की रचना की। जब आपकी इच्छा होती है, तब आप इसे क्षण भर में समाप्त कर सकती हैं।
व्याख्या:
माँ दुर्गा की सृजन शक्ति का यहाँ उल्लेख है। उन्होंने पाँच तत्वों को मिलाकर ब्रह्मांड का निर्माण किया। उनके एक संकल्प से यह ब्रह्मांड उत्पन्न होता है और दूसरे संकल्प से यह समाप्त हो सकता है। यह उनकी असीम शक्ति और इच्छा का प्रतीक है।
अनंत बालादित्यश्रेणी। तव प्रभेमाजी गेल्या लपोनि। सकल सौभाग्य शुभकल्याणी। रमारमणवरप्रदे ॥ १७ ॥
अर्थ:
असंख्य सूर्य की किरणें आपकी प्रभा में लुप्त हो जाती हैं। आप सभी सौभाग्य और शुभता देने वाली हैं। आप रमा (लक्ष्मी) और रमन (विष्णु) की वरदायिनी हैं।
व्याख्या:
यहाँ माँ दुर्गा की दैवी चमक का वर्णन किया गया है, जिसमें सूर्य की किरणें भी लुप्त हो जाती हैं। वे सौभाग्य और शुभता की देवी हैं और विष्णु तथा लक्ष्मी के लिए वरदायिनी हैं। उनकी आभा से सृष्टि आलोकित होती है और भक्तों को समृद्धि प्राप्त होती है।
जय शंबरि पुहर वल्लभे। त्रैलोक्य नगरारंभस्तंभे। आदिमाये आत्मप्रिये। सकलारंभे मूलप्रकृती ॥ १८ ॥
अर्थ:
हे शंबरि (राक्षस) के वध करने वाली, त्रैलोक्य (तीनों लोकों) की आधारशिला, आपको जय हो। आप आदिमाया (मूल प्रकृति) और आत्मा की प्रिय हैं। आप सभी सृजन कार्यों की मूल प्रकृति हैं।
व्याख्या:
यहाँ माँ दुर्गा को राक्षसों का नाश करने वाली और तीनों लोकों की आधारशिला कहा गया है। वे सृष्टि की आदिमाया हैं, जो आत्मा की प्रिय हैं। वे सभी सृजन कार्यों की मूल प्रकृति हैं, और उनका अस्तित्व सृष्टि की हर क्रिया में व्याप्त है।
जय करुणामृतसरिते। भक्तपालके गुणभरिते। अनंतब्रह्मांड फलांकिते। आदिमाये अन्नपूर्णे ॥ १९ ॥
अर्थ:
हे करुणा की अमृत धारा, आपको जय हो। आप भक्तों की रक्षा करने वाली हैं और गुणों से परिपूर्ण हैं। आप अनंत ब्रह्मांड की फलदात्री हैं। आप आदिमाया और अन्नपूर्णा (अन्न देने वाली) हैं।
व्याख्या:
माँ दुर्गा को करुणा की अमृत धारा कहा गया है, जो सदा अपने भक्तों पर कृपा बरसाती हैं। वे गुणों से परिपूर्ण हैं और भक्तों की रक्षा करती हैं। अन्नपूर्णा के रूप में, वे सभी जीवों को अन्न प्रदान करती हैं और समस्त ब्रह्मांड का पालन-पोषण करती हैं। उनकी करुणा और उदारता असीम है।
तूं सच्चिदानंदप्रणवरुपिणी। सकल चराचर व्यापिनी। सर्गस्थित्यंत कारिणी। भवमोचिनी ब्रह्मानंदे ॥ २० ॥
अर्थ:
आप सच्चिदानंद (सत्-चित्-आनंद) और प्रणव (ओम) रूपिणी हैं। आप सम्पूर्ण चराचर जगत में व्याप्त हैं। आप सृष्टि, स्थिति और संहार की कारिणी हैं। आप भवसागर से मुक्ति देने वाली हैं और ब्रह्मानंद (परम आनंद) प्रदान करती हैं।
व्याख्या:
माँ दुर्गा को सच्चिदानंद स्वरूप में वर्णित किया गया है, जो ब्रह्मांड की आधारभूत शक्ति हैं। वे ओम के रूप में सम्पूर्ण सृष्टि में व्याप्त हैं। वे सृष्टि का निर्माण, पालन और संहार करती हैं और भक्तों को संसार के बंधनों से मुक्ति दिलाती हैं। उनकी कृपा से परम आनंद की प्राप्ति होती है।
ऐकोनि धर्माचे स्तवन। दुर्गा जाहली प्रसन्न। म्हणे तुमचे शत्रू संहारीन। राज्यीं स्थापीन धर्माते ॥ २१ ॥
अर्थ:
धर्मराज (युधिष्ठिर) की स्तुति सुनकर माँ दुर्गा प्रसन्न हो गईं। उन्होंने कहा, “मैं तुम्हारे शत्रुओं का नाश करूंगी और तुम्हें राज्य में धर्म की स्थापना के साथ पुनः स्थापित करूंगी।”
व्याख्या:
यह पंक्ति उस समय का वर्णन करती है जब धर्मराज युधिष्ठिर ने माँ दुर्गा की आराधना की और माँ उनकी स्तुति से प्रसन्न हो गईं। माँ दुर्गा ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह उनके सभी शत्रुओं का संहार करेंगी और उन्हें पुनः राज्य में धर्म के साथ स्थापित करेंगी। इससे माँ दुर्गा की न्याय और धर्म की शक्ति स्पष्ट होती है।
तुम्ही वास करा येथ। प्रगटी नेदीं जनांत। शत्रू क्षय पावती समस्त। सुख अद् भुत तुम्हां होय ॥ २२ ॥
अर्थ:
माँ दुर्गा ने कहा, “तुम यहाँ निवास करो, मैं तुम्हारे शत्रुओं को समस्त रूप से नष्ट कर दूंगी। तुम्हें अद्भुत सुख प्राप्त होगा और तुम सामान्य लोगों में प्रकट नहीं होओगे।”
व्याख्या:
यहाँ माँ दुर्गा युधिष्ठिर और उनके भाइयों को यह आशीर्वाद देती हैं कि वे निर्भय होकर निवास करें और उनके शत्रुओं का संहार हो जाएगा। माँ दुर्गा की कृपा से उन्हें सुख और शांति मिलेगी। इस आशीर्वाद में माँ दुर्गा की अदृश्य शक्ति और सुरक्षा का बोध होता है।
त्वां जें स्तोत्र केलें पूर्ण। तें जे त्रिकाल करिती पठन। त्यांचे सर्व काम पुरवीन। सदा रक्षीन अंतर्बाह्य ॥ २३ ॥
अर्थ:
जो इस स्तोत्र का पूर्ण पाठ करता है और त्रिकाल (सुबह, दोपहर, शाम) इसका पठन करता है, उनके सभी कार्य पूर्ण होंगे। मैं उनकी सदा अंतर्बाह्य (भीतर और बाहर) से रक्षा करूंगी।
व्याख्या:
माँ दुर्गा यहाँ यह आशीर्वाद देती हैं कि जो भी व्यक्ति इस स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करेगा, उसके सभी कार्य सिद्ध होंगे और उसे जीवन में किसी भी बाधा का सामना नहीं करना पड़ेगा। माँ दुर्गा उसकी अंदर और बाहर, दोनों रूपों में रक्षा करेंगी। यह उनकी असीम कृपा का प्रतीक है जो अपने भक्तों के जीवन के हर पहलू की रक्षा करती हैं।
इस प्रकार, इस स्तोत्र के हर श्लोक में माँ दुर्गा की महिमा, उनकी कृपा, और भक्तों के प्रति उनके प्रेम का विस्तृत वर्णन मिलता है। माँ दुर्गा सृष्टि की पालनकर्ता, संहारकर्ता, और उद्धारकर्ता हैं। इस स्तोत्र का पाठ करने से जीवन की सभी समस्याओं का समाधान हो सकता है, और माँ की कृपा से भक्तों को परम आनंद और मोक्ष की प्राप्ति होती है।