धर्म दर्शन वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें Join Now

शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

गणनायकाय गणदेवताय गणाध्यक्षाय in Hindi/Sanskrit

गणनायकाय गणदेवताय गणाध्यक्षाय धीमहि ।
गुणशरीराय गुणमण्डिताय गुणेशानाय धीमहि ।
गुणातीताय गुणाधीशाय गुणप्रविष्टाय धीमहि ।
एकदंताय वक्रतुण्डाय गौरीतनयाय धीमहि ।
गजेशानाय भालचन्द्राय श्रीगणेशाय धीमहि ॥

गानचतुराय गानप्राणाय गानान्तरात्मने,
गानोत्सुकाय गानमत्ताय गानोत्सुकमनसे ।
गुरुपूजिताय गुरुदेवताय गुरुकुलस्थायिने,
गुरुविक्रमाय गुह्यप्रवराय गुरवे गुणगुरवे ।
गुरुदैत्यगलच्छेत्रे गुरुधर्मसदाराध्याय,
गुरुपुत्रपरित्रात्रे गुरुपाखण्डखण्डकाय ।
गीतसाराय गीततत्त्वाय गीतगोत्राय धीमहि,
गूढगुल्फाय गन्धमत्ताय गोजयप्रदाय धीमहि ।
गुणातीताय गुणाधीशाय गुणप्रविष्टाय धीमहि,
एकदंताय वक्रतुण्डाय गौरीतनयाय धीमहि ।
गजेशानाय भालचन्द्राय श्रीगणेशाय धीमहि ॥

ग्रन्थगीताय ग्रन्थगेयाय ग्रन्थान्तरात्मने,
गीतलीनाय गीताश्रयाय गीतवाद्यपटवे ।
गेयचरिताय गायकवराय गन्धर्वप्रियकृते,
गायकाधीनविग्रहाय गङ्गाजलप्रणयवते ।
गौरीस्तनन्धयाय गौरीहृदयनन्दनाय,
गौरभानुसुताय गौरीगणेश्वराय ।
गौरीप्रणयाय गौरीप्रवणाय गौरभावाय धीमहि,
गोसहस्राय गोवर्धनाय गोपगोपाय धीमहि ।
गुणातीताय गुणाधीशाय गुणप्रविष्टाय धीमहि,
एकदंताय वक्रतुण्डाय गौरीतनयाय धीमहि ।
गजेशानाय भालचन्द्राय श्रीगणेशाय धीमहि ॥

Gananaykay Gandevatay Ganadhyakshay in English

Gananayakaya Ganadevataaya Ganadhyakshaaya Dheemahi
Gunashariraya Gunamanditaya Guneshaanaaya Dheemahi
Gunatitaaya Gunadhishaya Gunapravishtaya Dheemahi
Ekadantaya Vakratundaya Gauritanayaya Dheemahi
Gajeshaanaya Bhalachandraya Shri Ganeshaaya Dheemahi

Ganachaturaya Ganapraanaya Ganantaratmane
Ganotsukaya Ganamattaaya Ganotsukamanase
Guru Poojitaaya Gurudevataaya Gurukulasthayine
Guru Vikramaya Guhya Pravaraaya Gurave Gunagurave
Gurudaitya Galachchhetre Gurudharmasadaraadhyaya
Guru Putra Paritratre Guru Pakhandakhhandakaya
Geetasaraya Geetatattvaya Geetagotraaya Dheemahi
Gudha Gulfaya Gandhamattaaya Gojaya Pradaya Dheemahi
Gunatitaaya Gunadhishaya Gunapravishtaya Dheemahi
Ekadantaya Vakratundaya Gauritanayaya Dheemahi
Gajeshaanaya Bhalachandraya Shri Ganeshaaya Dheemahi

Granthageetaya Granthageyaya Granthantaratmane
Geetalinaaya Geetashrayaya Geetavaadyapatave
Geyacharitaaya Gayakavaraya Gandharvapriyakrute
Gayakadhina Vigrahaya Gangajala Pranayavate
Gauristanandhaya Gaurihirdayanandanaya
Gaurabhanusutaya Gauriganeshwaraya
Gauripranaya Gauripranaya Gaurabhavaya Dheemahi
Gosahasraya Govardhanaya Gopagopaya Dheemahi
Gunatitaaya Gunadhishaya Gunapravishtaya Dheemahi
Ekadantaya Vakratundaya Gauritanayaya Dheemahi
Gajeshaanaya Bhalachandraya Shri Ganeshaaya Dheemahi

गणनायकाय गणदेवताय गणाध्यक्षाय PDF Download

गणनायकाय गणदेवताय गणाध्यक्षाय का अर्थ

चौपाई 1: गणनायकाय गणदेवताय गणाध्यक्षाय धीमहि

इस चौपाई में भगवान गणेश की प्रार्थना की जा रही है। गणनायक का अर्थ है “सभी गणों के नेता”, जो यह दर्शाता है कि गणेश सभी देवताओं और सिद्ध पुरुषों के प्रमुख हैं। गणदेवता के रूप में, वे सभी देवताओं के पूजनीय हैं। गणाध्यक्ष का तात्पर्य है कि वे सभी गणों के नेता हैं और उन्हें दिशा दिखाने वाले हैं। इस श्लोक में गणेश जी की पूजा उनकी नेतृत्व क्षमता और सभी प्राणियों पर उनके अधिकार के लिए की जाती है।

चौपाई 2: गुणशरीराय गुणमण्डिताय गुणेशानाय धीमहि

इस चौपाई में भगवान गणेश के गुणों का बखान किया गया है। गुणशरीर का अर्थ है “गुणों से युक्त शरीर”। गणेश जी का शरीर सभी गुणों से परिपूर्ण है। गुणमण्डित का तात्पर्य है कि उनके चारों ओर केवल सकारात्मक गुणों की माला लिपटी हुई है। गुणेशान के रूप में, वे गुणों के स्वामी हैं, जो यह दर्शाता है कि वे सभी सद्गुणों का स्रोत और मालिक हैं। इस श्लोक में गणेश जी की महिमा का गुणगान किया गया है।

चौपाई 3: गुणातीताय गुणाधीशाय गुणप्रविष्टाय धीमहि

इस चौपाई में भगवान गणेश को गुणातीत कहा गया है, जिसका अर्थ है “जो गुणों से परे हैं”। यद्यपि वे सभी गुणों के स्वामी हैं, फिर भी वे उन सभी से परे हैं, और यही उनकी महानता है। गुणाधीश के रूप में, वे गुणों के शासक हैं और गुणप्रविष्ट के रूप में वे प्रत्येक प्राणी के भीतर विद्यमान हैं। गणेश जी को इस रूप में प्रार्थना की जाती है कि वे गुणों से परे हैं, फिर भी उन पर पूर्ण नियंत्रण रखते हैं।

चौपाई 4: एकदंताय वक्रतुण्डाय गौरीतनयाय धीमहि

इस चौपाई में भगवान गणेश के विशिष्ट रूप का वर्णन किया गया है। एकदंत का अर्थ है “एक दांत वाला”, जो यह दर्शाता है कि गणेश जी का एक दांत टूटा हुआ है, जो उनके शौर्य और बल का प्रतीक है। वक्रतुण्ड का तात्पर्य है “मुड़ी हुई सूंड”, जो उनकी चतुराई और बुद्धिमत्ता का प्रतीक है। गौरीतनय का अर्थ है “गौरी का पुत्र”, जो यह दर्शाता है कि वे माता पार्वती के पुत्र हैं। इस श्लोक में गणेश जी की विभिन्न शारीरिक विशेषताओं की महिमा का बखान किया गया है।

चौपाई 5: गजेशानाय भालचन्द्राय श्रीगणेशाय धीमहि

इस चौपाई में भगवान गणेश को गजेशान कहा गया है, जिसका अर्थ है “हाथियों के राजा”। यह उनके हाथी जैसे मस्तक का उल्लेख करता है, जो उनकी दिव्यता और शक्ति का प्रतीक है। भालचन्द्र का तात्पर्य है “चंद्रमा को माथे पर धारण करने वाले”, जो उनकी सौम्यता और शीतलता का प्रतीक है। श्रीगणेश के रूप में, वे सभी कार्यों के आरंभ में पूजनीय हैं। इस श्लोक में गणेश जी के रूप की पूजा की जा रही है।

चौपाई 6: गानचतुराय गानप्राणाय गानान्तरात्मने

इस चौपाई में भगवान गणेश की संगीत प्रेमी प्रकृति का वर्णन किया गया है। गानचतुर का अर्थ है “जो संगीत में कुशल हैं”, जो यह दर्शाता है कि गणेश जी संगीत में निपुण हैं। गानप्राण का तात्पर्य है “जो संगीत का जीवन हैं”, यानी संगीत में उनका आत्मा बसता है। गानान्तरात्मा का अर्थ है “जो संगीत की गहराई में विद्यमान हैं”, यानी संगीत की आत्मा। इस श्लोक में गणेश जी की संगीत में अद्वितीय दक्षता और उनका संगीत से गहरा संबंध बताया गया है।

चौपाई 7: गानोत्सुकाय गानमत्ताय गानोत्सुकमनसे

इस चौपाई में भगवान गणेश के संगीत में समर्पण और उत्साह का वर्णन किया गया है। गानोत्सुक का अर्थ है “जो संगीत में अत्यधिक उत्सुक रहते हैं”, यानी गणेश जी का संगीत के प्रति असीम प्रेम। गानमत्त का तात्पर्य है “जो संगीत में मत्त रहते हैं”, यानी गणेश जी संगीत में लीन रहते हैं। गानोत्सुकमनस का अर्थ है “जिनका मन संगीत में उत्सुक है”, यानी गणेश जी का मस्तिष्क और हृदय संगीत में रमा हुआ है। इस श्लोक में उनके संगीत प्रेम की अत्यधिक स्तुति की गई है।

चौपाई 8: गुरुपूजिताय गुरुदेवताय गुरुकुलस्थायिने

इस चौपाई में गणेश जी की शिक्षाओं और गुरु-शिष्य परंपरा में उनके स्थान का वर्णन किया गया है। गुरुपूजित का अर्थ है “जिनकी गुरु द्वारा पूजा की जाती है”, यानी गणेश जी गुरु के पूजनीय हैं। गुरुदेवता का तात्पर्य है “जो देवता समान गुरु हैं”, यानी गणेश जी गुरु के रूप में भी पूजनीय हैं। गुरुकुलस्थायी का अर्थ है “जो गुरुकुल में स्थायी रूप से निवास करते हैं”, यानी गणेश जी का स्थान शिक्षाओं और ज्ञान में है। इस श्लोक में गणेश जी की शिक्षा और ज्ञान की महिमा की स्तुति की गई है।

चौपाई 9: गुरुविक्रमाय गुह्यप्रवराय गुरवे गुणगुरवे

इस चौपाई में भगवान गणेश की महानता और गूढ़ ज्ञान का वर्णन किया गया है। गुरुविक्रम का अर्थ है “महान वीरता वाले गुरु”, जो यह दर्शाता है कि गणेश जी केवल ज्ञान के ही नहीं, बल्कि शक्ति और पराक्रम के भी प्रतीक हैं। गुह्यप्रवर का तात्पर्य है “गूढ़ ज्ञान के सर्वश्रेष्ठ”, यानी वे रहस्यमय और अद्वितीय ज्ञान के स्वामी हैं। गुरु गुणगुरु का अर्थ है “गुणों के महान गुरु”, यानी गणेश जी गुणों के ज्ञाता और सर्वश्रेष्ठ शिक्षक हैं। इस श्लोक में गणेश जी की ज्ञान और गुणों में महानता की प्रार्थना की जा रही है।

चौपाई 10: गुरुदैत्यगलच्छेत्रे गुरुधर्मसदाराध्याय

इस चौपाई में गणेश जी की बुराइयों पर विजय और धर्म के प्रति समर्पण की स्तुति की गई है। गुरुदैत्यगलच्छेत्रे का अर्थ है “जो दैत्यों (राक्षसों) का संहार करने में सक्षम हैं”, यह दर्शाता है कि गणेश जी बुराईयों का नाश करने वाले हैं। गुरुधर्मसदाराध्य का तात्पर्य है “जो हमेशा धर्म का पालन करने वाले हैं”, यानी गणेश जी सदा धर्म के मार्ग पर चलते हैं और उनका आचरण शुद्ध है। इस श्लोक में गणेश जी की धर्म के प्रति निष्ठा और उनके राक्षसों पर विजय पाने की शक्ति का गुणगान किया गया है।

चौपाई 11: गुरुपुत्रपरित्रात्रे गुरुपाखण्डखण्डकाय

इस चौपाई में गणेश जी की गुरु और धर्म की रक्षा करने की क्षमता का वर्णन किया गया है। गुरुपुत्रपरित्रात्र का अर्थ है “गुरु के पुत्रों की रक्षा करने वाले”, यानी गणेश जी गुरु के शिष्यों और उनके परिवार की रक्षा करते हैं। गुरुपाखण्डखण्डक का तात्पर्य है “जो पाखण्ड का नाश करने वाले हैं”, यानी वे उन सभी भ्रामक और झूठी शिक्षाओं का खंडन करते हैं जो गुरु-शिष्य परंपरा के विपरीत हैं। इस श्लोक में गणेश जी की गुरु परंपरा की रक्षा और पाखण्ड का नाश करने की शक्ति का गुणगान किया गया है।

चौपाई 12: गीतसाराय गीततत्त्वाय गीतगोत्राय धीमहि

इस चौपाई में भगवान गणेश के गीत-संगीत के सार और तत्त्व में उनके स्थान का वर्णन किया गया है। गीतसार का अर्थ है “जो संगीत का सार हैं”, यानी गणेश जी संगीत के मूल तत्व हैं। गीततत्त्व का तात्पर्य है “जो गीतों के तत्त्वज्ञ हैं”, यानी वे संगीत की गहराइयों और उसके तत्त्व को जानते हैं। गीतगोत्र का अर्थ है “संगीत के कुल से सम्बंधित”, यानी गणेश जी का मूल स्वभाव संगीत से जुड़ा है। इस श्लोक में गणेश जी की संगीत और गीत में गहरी पैठ का वर्णन किया गया है।

चौपाई 13: गूढगुल्फाय गन्धमत्ताय गोजयप्रदाय धीमहि

इस चौपाई में भगवान गणेश के गूढ़ और अद्वितीय गुणों का वर्णन किया गया है। गूढगुल्फ का अर्थ है “जो गूढ़ रहस्य से भरे हुए हैं”, यानी गणेश जी की हर क्रिया और रूप में गूढ़ ज्ञान और रहस्य छिपा है। गन्धमत्त का तात्पर्य है “जो सुगंधित और प्रसन्नचित्त रहते हैं”, यानी उनकी महिमा सुगंधित है और वे हमेशा प्रसन्न रहते हैं। गोजयप्रद का अर्थ है “गायों के रक्षक और विजय प्रदाता”, यानी वे गायों और धर्म की रक्षा करने वाले हैं। इस श्लोक में गणेश जी के रहस्यमयी और रक्षक रूप का गुणगान किया गया है।

चौपाई 14: गुणातीताय गुणाधीशाय गुणप्रविष्टाय धीमहि

इस चौपाई का पुनरावृत्ति फिर से की गई है, जिसमें गणेश जी को गुणों से परे, गुणों के स्वामी और गुणों में प्रवेश करने वाले के रूप में प्रार्थना की जा रही है। यह दर्शाता है कि गणेश जी अपने गुणों से परे होते हुए भी संसार के प्रत्येक प्राणी के भीतर बसे हुए हैं। उनकी महिमा असीमित है और वे गुणों के परे होकर भी, उन पर पूर्ण नियंत्रण रखते हैं।

चौपाई 15: एकदंताय वक्रतुण्डाय गौरीतनयाय धीमहि

इस चौपाई का पुनरावृत्ति फिर से की गई है, जिसमें भगवान गणेश की शारीरिक विशेषताओं का गुणगान किया गया है। एकदंत और वक्रतुण्ड के रूप में वे अपनी चतुराई और बल का प्रतीक हैं। गौरीतनय के रूप में उनकी माता गौरी (पार्वती) के पुत्र होने का उल्लेख किया गया है। यह चौपाई फिर से गणेश जी की उपासना के लिए दोहराई गई है।

चौपाई 16: गजेशानाय भालचन्द्राय श्रीगणेशाय धीमहि

इस चौपाई का पुनरावृत्ति फिर से की गई है, जिसमें भगवान गणेश के गजमुखी (हाथी का मुख) और भालचन्द्र (मस्तक पर चंद्रमा) धारण करने का उल्लेख किया गया है। गणेश जी की इन विशेषताओं को पूजनीय माना गया है और उनकी महिमा का फिर से बखान किया गया है।

चौपाई 17: ग्रन्थगीताय ग्रन्थगेयाय ग्रन्थान्तरात्मने

इस चौपाई में भगवान गणेश के साहित्य और ग्रंथों में अद्वितीय स्थान का वर्णन किया गया है। ग्रन्थगीत का अर्थ है “जो ग्रंथों में वर्णित संगीत के ज्ञाता हैं”, अर्थात गणेश जी सभी शास्त्रों और ग्रंथों के संगीत और कला के गहन अध्ययनकर्ता हैं। ग्रन्थगेय का तात्पर्य है “जो ग्रंथों में गाये जाते हैं”, अर्थात वे सभी धार्मिक ग्रंथों में पूजनीय और गाये जाते हैं। ग्रन्थान्तरात्मा का अर्थ है “जो ग्रंथों की आत्मा हैं”, यानी गणेश जी सभी धार्मिक और सांस्कृतिक ग्रंथों की आत्मा और मर्म को जानने वाले हैं। इस श्लोक में गणेश जी की विद्वता और ग्रंथों में उनकी उपस्थिति का गुणगान किया गया है।

चौपाई 18: गीतलीनाय गीताश्रयाय गीतवाद्यपटवे

इस चौपाई में भगवान गणेश की संगीत में गहरी निपुणता और लगाव का वर्णन किया गया है। गीतलीन का अर्थ है “जो संगीत में लीन रहते हैं”, अर्थात गणेश जी हमेशा संगीत में डूबे रहते हैं। गीताश्रय का तात्पर्य है “जो संगीत के आश्रय हैं”, यानी वे संगीत के सरंक्षक और पालक हैं। गीतवाद्यपटु का अर्थ है “जो वाद्य यंत्रों के कुशल ज्ञाता हैं”, गणेश जी वाद्य यंत्रों के संचालन में भी निपुण हैं। इस श्लोक में उनके संगीत से गहरे जुड़ाव और निपुणता का विस्तार से वर्णन किया गया है।

चौपाई 19: गेयचरिताय गायकवराय गन्धर्वप्रियकृते

इस चौपाई में भगवान गणेश के गीतों और संगीत में अद्वितीय स्थान का उल्लेख किया गया है। गेयचरित का अर्थ है “जिनके चरित्र को गाया जाता है”, गणेश जी के गुण और कार्य इतने श्रेष्ठ हैं कि उन्हें गानों में गाया जाता है। गायकवर का तात्पर्य है “सर्वश्रेष्ठ गायक”, गणेश जी को श्रेष्ठ गायक माना गया है। गन्धर्वप्रियकृत का अर्थ है “गन्धर्वों को प्रिय”, गन्धर्व जो संगीत प्रेमी होते हैं, उन्हें गणेश जी का संगीत अत्यंत प्रिय होता है। इस श्लोक में गणेश जी के संगीत प्रेम और गायन में श्रेष्ठता का गुणगान किया गया है।

चौपाई 20: गायकाधीनविग्रहाय गङ्गाजलप्रणयवते

इस चौपाई में भगवान गणेश के गायक स्वरूप और उनके गंगा जल से प्रेम का वर्णन किया गया है। गायकाधीनविग्रह का अर्थ है “जिनका स्वरूप गायकों पर आधारित है”, यानी गणेश जी का शरीर और रूप गायकों की कला और उनके संगीत पर निर्भर करता है। गङ्गाजलप्रणयवत का तात्पर्य है “जो गंगा जल से प्रेम करते हैं”, यानी गणेश जी गंगा नदी और उसके पवित्र जल से अत्यधिक प्रेम करते हैं। इस श्लोक में गणेश जी के गायन प्रेम और उनके पवित्रता प्रेम का वर्णन किया गया है।

चौपाई 21: गौरीस्तनन्धयाय गौरीहृदयनन्दनाय

इस चौपाई में भगवान गणेश और उनकी माता गौरी (पार्वती) के संबंध का वर्णन किया गया है। गौरीस्तनन्धय का अर्थ है “जो माता गौरी के स्तनपान करते हैं”, यह दर्शाता है कि गणेश जी माता पार्वती के स्नेहसिक्त पुत्र हैं। गौरीहृदयनन्दन का तात्पर्य है “जो गौरी के हृदय का आनंद हैं”, अर्थात गणेश जी माता पार्वती के हृदय को आनंदित करते हैं। इस श्लोक में माता-पुत्र के पवित्र और स्नेहपूर्ण संबंध को दर्शाया गया है, जिसमें गणेश जी अपनी माता के अत्यंत प्रिय हैं।

चौपाई 22: गौरभानुसुताय गौरीगणेश्वराय

इस चौपाई में भगवान गणेश के गौरी पुत्र और उनके देव रूप का उल्लेख किया गया है। गौरभानुसुत का अर्थ है “गौरी (पार्वती) के पुत्र”, जो यह दर्शाता है कि गणेश जी माता गौरी के उज्जवल पुत्र हैं। गौरीगणेश्वर का तात्पर्य है “जो गौरी के गणों के स्वामी हैं”, यानी गणेश जी माता पार्वती के सेवकों और गणों के स्वामी हैं। इस श्लोक में गणेश जी को गौरी पुत्र और गणों के स्वामी के रूप में पूजा गया है।

चौपाई 23: गौरीप्रणयाय गौरीप्रवणाय गौरभावाय धीमहि

इस चौपाई में भगवान गणेश की माता गौरी के प्रति भक्ति और प्रेम का वर्णन किया गया है। गौरीप्रणय का अर्थ है “जो माता गौरी से अत्यंत प्रेम करते हैं”, यानी गणेश जी का अपनी माता के प्रति प्रेम असीमित है। गौरीप्रवण का तात्पर्य है “जो हमेशा गौरी के प्रति समर्पित हैं”, यानी गणेश जी हमेशा अपनी माता के प्रति विनम्र और समर्पित रहते हैं। गौरभाव का अर्थ है “जो माता के प्रति विशेष भावना रखते हैं”, गणेश जी का हृदय माता पार्वती के प्रति विशेष प्रेम और भावनाओं से भरा हुआ है। इस श्लोक में माता-पुत्र के प्रेम और गणेश जी की अपनी माता के प्रति भक्ति का गुणगान किया गया है।

चौपाई 24: गोसहस्राय गोवर्धनाय गोपगोपाय धीमहि

इस चौपाई में भगवान गणेश को गोपालक और रक्षक के रूप में पूजा गया है। गोसहस्र का अर्थ है “जो हजारों गायों के संरक्षक हैं”, गणेश जी को गायों के पालन और सुरक्षा के लिए पूजनीय माना गया है। गोवर्धन का तात्पर्य है “जो गोवर्धन पर्वत के समान बलवान और रक्षक हैं”, यह गणेश जी की अद्वितीय शक्ति और बल को दर्शाता है। गोपगोप का अर्थ है “जो ग्वालों और ग्वालिनियों के भी प्रिय हैं”, गणेश जी को ग्वालों और उनके समुदाय द्वारा भी पूजनीय और प्रिय माना गया है। इस श्लोक में गणेश जी की संरक्षकता और उनकी अद्वितीय शक्ति का वर्णन किया गया है।

चौपाई 25: गुणातीताय गुणाधीशाय गुणप्रविष्टाय धीमहि

इस चौपाई का पुनरावृत्ति फिर से की गई है, जिसमें गणेश जी को गुणों से परे, गुणों के स्वामी और गुणों में प्रवेश करने वाले के रूप में प्रार्थना की जा रही है। यह गणेश जी की असीमित महिमा को दर्शाता है, जिनके पास हर गुण का स्रोत होते हुए भी वे उन गुणों से परे हैं।

चौपाई 26: एकदंताय वक्रतुण्डाय गौरीतनयाय धीमहि

इस चौपाई का पुनरावृत्ति फिर से की गई है, जिसमें भगवान गणेश के शारीरिक रूप का वर्णन किया गया है। एकदंत का तात्पर्य है “एक दांत वाला”, जो उनकी शक्ति और अद्वितीयता का प्रतीक है। वक्रतुण्ड का तात्पर्य है “टेढ़ी सूंड वाला”, जो गणेश जी की चतुराई और हर चुनौती से निपटने की क्षमता को दर्शाता है। गौरीतनय के रूप में, वे माता पार्वती के प्रिय पुत्र हैं।

चौपाई 27: गजेशानाय भालचन्द्राय श्रीगणेशाय धीमहि

इस अंतिम चौपाई में भगवान गणेश को फिर से गजेशान और भालचन्द्र के रूप में वर्णित किया गया है। गजेशान का अर्थ है “हाथियों के राजा”, जो गणेश जी के हाथी जैसे सिर और उनकी बुद्धिमत्ता का प्रतीक है। भालचन्द्र का तात्पर्य है “चंद्रमा को माथे पर धारण करने वाले”, जो उनकी सौम्यता और शीतलता का प्रतीक है। श्रीगणेश के रूप में, वे सभी कार्यों के आरंभ में पूजनीय हैं।

गणेश जी के गुणों का विश्लेषण

गणनायक, गणाध्यक्ष और गणदेवता

भगवान गणेश को गणनायक, गणाध्यक्ष और गणदेवता कहा गया है। यहाँ “गण” का अर्थ समूह, विशेष रूप से देवताओं, ऋषियों और महान लोगों के समूह से है। गणेश जी को गणों का नेतृत्व करने वाला कहा गया है, जो यह दर्शाता है कि वे सभी प्राणियों के मार्गदर्शक और संरक्षक हैं। यह केवल भौतिक जगत में ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जगत में भी उनकी भूमिका को रेखांकित करता है।

गुणशरीर और गुणमण्डित

भगवान गणेश को गुणशरीर और गुणमण्डित कहा गया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उनका शरीर और उनका अस्तित्व ही सकारात्मक गुणों से बना है। इसका यह भी अर्थ है कि उनके प्रत्येक कार्य, विचार और शक्ति सभी सकारात्मक और नैतिक सिद्धांतों पर आधारित हैं। यह गुणमण्डित रूप हर भक्त को प्रेरणा देता है कि वह भी गुणों से युक्त जीवन जीने का प्रयास करे।

गुणातीत और गुणाधीश

भगवान गणेश को गुणातीत (गुणों से परे) और गुणाधीश (गुणों के स्वामी) के रूप में वर्णित किया गया है। यह अद्वितीय विरोधाभास हमें समझाता है कि गणेश जी सभी गुणों के स्रोत और उन्हें नियंत्रित करने वाले हैं, फिर भी वे इन गुणों से परे हैं। इसका गहरा अर्थ यह है कि वे संसार के हर प्राणी के भीतर रहते हुए भी संसार के बंधनों से मुक्त हैं।

एकदंत और वक्रतुण्ड

भगवान गणेश के शारीरिक स्वरूप का विवरण भी अत्यंत प्रतीकात्मक है। एकदंत का तात्पर्य है कि वे अधूरी या टूटी हुई चीज़ों में भी पूर्णता देखने और उस पूर्णता के साथ कार्य करने की क्षमता रखते हैं। वक्रतुण्ड (टेढ़ी सूंड) यह दर्शाता है कि वे हर चुनौती को चतुराई से पार कर सकते हैं, और उनकी बुद्धिमत्ता हमेशा उन्हें सही निर्णय लेने में मदद करती है।

गजमुख और भालचन्द्र

गणेश जी का गजमुख (हाथी का मुख) उनकी बुद्धिमत्ता, बल और सहनशीलता का प्रतीक है। हाथी को ज्ञान और स्मरणशक्ति के लिए जाना जाता है, और गणेश जी के रूप में यह गुण और अधिक गहन हो जाता है। भालचन्द्र (माथे पर चंद्रमा धारण करने वाला) उनकी सौम्यता और शांत स्वभाव का प्रतीक है। चंद्रमा को मन का प्रतीक माना जाता है, और गणेश जी का इसे धारण करना उनके मानसिक संतुलन और धैर्य का परिचायक है।

माता गौरी के प्रति प्रेम

चौपाइयों में गणेश जी और उनकी माता गौरी (पार्वती) के प्रति उनके प्रेम और समर्पण का वर्णन किया गया है। गौरीस्तनन्धय और गौरीहृदयनन्दन के रूप में, वे एक आदर्श पुत्र के रूप में वर्णित हैं, जो अपनी माता के लिए हर समय आनंद का स्रोत हैं। यह हर भक्त को यह संदेश देता है कि एक सच्चे आराधक को माता-पिता के प्रति गहरी श्रद्धा और प्रेम रखना चाहिए।

संगीत के प्रति समर्पण

भगवान गणेश के संगीत प्रेम का भी इन चौपाइयों में विशेष उल्लेख किया गया है। उन्हें गानचतुर (संगीत में कुशल) और गानमत्त (संगीत में लीन) कहा गया है। यह दर्शाता है कि संगीत न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि एक आध्यात्मिक साधना का माध्यम भी है। गणेश जी के लिए संगीत आत्मा की एक अभिव्यक्ति है, और वह इसके माध्यम से जीवन की गहराइयों तक पहुंचते हैं।

शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

अस्वीकरण (Disclaimer) : नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष आदि विषयों पर HinduismFAQ में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। 'HinduismFAQ' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *