गणपति स्तोत्रम् in Hindi/Sanskrit
जेतुं यस्त्रिपुरं हरेणहरिणा व्याजाद्बलिं बध्नता
स्रष्टुं वारिभवोद्भवेनभुवनं शेषेण धर्तुं धराम्।
पार्वत्या महिषासुरप्रमथनेसिद्धाधिपैः सिद्धये
ध्यातः पञ्चशरेण विश्वजितयेपायात्स नागाननः॥1॥
विघ्नध्वान्तनिवारणैकतरणि-र्विघ्नाटवीहव्यवाड्
विघ्नव्यालकुलाभिमानगरुडोविघ्नेभपञ्चाननः।
विघ्नोत्तुङ्गगिरिप्रभेदन-पविर्विघ्नाम्बुधेर्वाडवो
विघ्नाघौधघनप्रचण्डपवनोविघ्नेश्वरः पातु नः॥2॥
खर्वं स्थूलतनुं गजेन्द्रवदनंलम्बोदरं सुन्दरं
प्रस्यन्दन्मदगन्धलुब्धम-धुपव्यालोलगण्डस्थलम्।
दन्ताघातविदारितारिरुधिरैःसिन्दूरशोभाकरं
वन्दे शैलसुतासुतं गणपतिंसिद्धिप्रदं कामदम्॥3॥
गजाननाय महसेप्रत्यूहतिमिरच्छिदे।
अपारकरुणा-पूरतरङ्गितदृशे नमः॥4॥
अगजाननपद्मार्कंगजाननमहर्निशम्।
अनेकदन्तं भक्तानामेक-दन्तमुपास्महे॥5॥
श्वेताङ्गं श्वेतवस्त्रं सितकु-सुमगणैः पूजितं श्वेतगन्धैः
क्षीराब्धौ रत्नदीपैः सुरनर-तिलकं रत्नसिंहासनस्थम्।
दोर्भिः पाशाङ्कुशाब्जा-भयवरमनसं चन्द्रमौलिं त्रिनेत्रं
ध्यायेच्छान्त्यर्थमीशं गणपति-ममलं श्रीसमेतं प्रसन्नम्॥6॥
आवाहये तं गणराजदेवंरक्तोत्पलाभासमशेषवन्द्यम्।
विघ्नान्तकं विघ्नहरं गणेशंभजामि रौद्रं सहितं च सिद्धया॥7॥
यं ब्रह्म वेदान्तविदो वदन्तिपरं प्रधानं पुरुषं तथान्ये।
विश्वोद्गतेः कारणमीश्वरं वातस्मै नमो विघ्नविनाशनाय॥8॥
विघ्नेश वीर्याणि विचित्रकाणिवन्दीजनैर्मागधकैः स्मृतानि।
श्रुत्वा समुत्तिष्ठ गजानन त्वंब्राह्मे जगन्मङ्गलकं कुरुष्व॥9॥
गणेश हेरम्ब गजाननेतिमहोदर स्वानुभवप्रकाशिन्।
वरिष्ठ सिद्धिप्रिय बुद्धिनाथवदन्त एवं त्यजत प्रभीतीः॥10॥
अनेकविघ्नान्तक वक्रतुण्डस्वसंज्ञवासिंश्च चतुर्भुजेति।
कवीश देवान्तकनाशकारिन्वदन्त एवं त्यजत प्रभीतीः॥11॥
अनन्तचिद्रूपमयं गणेशंह्यभेदभेदादिविहीनमाद्यम्।
हृदि प्रकाशस्य धरं स्वधीस्थंतमेकदन्तं शरणम् व्रजामः॥12॥
विश्वादिभूतं हृदि योगिनां वैप्रत्यक्षरूपेण विभान्तमेकम्।
सदा निरालम्बसमाधिगम्यंतमेकदन्तं शरणम् व्रजामः॥13॥
यदीयवीर्येण समर्थभूता मायातया संरचितं च विश्वम्।
नागात्मकं ह्यात्मतया प्रतीतंतमेकदन्तं शरणम् व्रजामः॥14॥
सर्वान्तरे संस्थितमेकमूढंयदाज्ञया सर्वमिदं विभाति।
अनन्तरूपं हृदि बोधकं वैतमेकदन्तं शरणम् व्रजामः॥15॥
यं योगिनो योगबलेन साध्यंकुर्वन्ति तं कः स्तवनेन नौति।
अतः प्रणामेन सुसिद्धिदोऽस्तुतमेकदन्तं शरणम् व्रजामः॥16॥
देवेन्द्रमौलिमन्दार-मकरन्दकणारुणाः।
विघ्नान् हरन्तुहेरम्बचरणाम्बुजरेणवः॥17॥
एकदन्तं महाकायंलम्बोदरगजाननम्।
विघ्ननाशकरं देवंहेरम्बं प्रणमाम्यहम्॥18॥
यदक्षरं पदं भ्रष्टंमात्राहीनं च यद्भवेत्।
तत्सर्वं क्षम्यतां देवप्रसीद परमेश्वर॥19॥
Ganapati Stotram in English
Jetum yastripuram hareṇahariṇā vyājādbaliṁ badhnatā
sraṣṭum vāribhavodbhavenabhuvanaṁ śeṣeṇa dhartuṁ dharām.
Pārvatyā mahiṣāsurapramathanesiddhādhipaiḥ siddhaye
dhyātaḥ pañcaśareṇa viśvajitayepāyāts nāgānanaḥ.
Vighnadhvāntanivāraṇaikatarani-rvighnāṭavīhavyavāḍ
vighnavyālakulābhimānagaruḍovighnebhapañcānanaḥ.
Vighnottuṅgagiriprabhedana-pavirvighnāmbudhervāḍavo
vighnāghaudhaghanaprachaṇḍapavano vighneśvaraḥ pātu naḥ.
Kharvaṁ sthūlatanuṁ gajendravadanaṁ lambodaraṁ sundaraṁ
prasyandanmadagandhalubdhama-dhupavyālolagaṇḍasthalam.
Dantāghātavidāritārirudhiraiḥ sindūraśobhākaraṁ
vande śailasutāsutaṁ gaṇapatiṁ siddhipradaṁ kāmadam.
Gajānanāya mahasepratyūhatimiracchide.
Apārakaruṇā-pūrataraṅgitadṛśe namaḥ.
Agajānanapadmārkaṁ gajānanamaharniśam.
Anekadantaṁ bhaktānāmekadantamupāsmahe.
Śvetāṅgaṁ śvetavastraṁ sitaku-sumagaṇaiḥ pūjitaṁ śvetagandhaiḥ
kṣīrābdhau ratnadīpaiḥ suranara-tilakaṁ ratnasiṁhāsanastham.
Dorbhiḥ pāśāṅkuśābjā-bhayavaramānasaṁ candramauliṁ trinetraṁ
dhyāyeccāntyarthamīśaṁ gaṇapati-mamalaṁ śrīsametaṁ prasannam.
Āvāhaye taṁ gaṇarājadevaṁ raktotpalābhāsamaśeṣavandyam.
Vighnāntakaṁ vighnaharaṁ gaṇeśaṁ bhajāmi raudraṁ sahitaṁ ca siddhayā.
Yaṁ brahma vedāntavido vadantiparaṁ pradhānaṁ puruṣaṁ tathānye.
Viśvodgateḥ kāraṇamīśvaraṁ vā tasmai namo vighnavināśanāya.
Vighneśa vīryāṇi vicitrakāṇi vandījanairmāgadhakaiḥ smṛtāni.
Śrutvā samuttiṣṭha gajānanatvambrāhme jaganmaṅgalakaṁ kuruṣva.
Gaṇeśa heramba gajānanetimahodara svānubhavaprakāśin.
Variṣṭha siddhipriya buddhināthavadanta evaṁ tyajata prabhītīḥ.
Anekavighnāntaka vakratuṇḍasvasanjñavāsiṁśca caturbhujeti.
Kavīśa devāntakananāśakārinvadanta evaṁ tyajata prabhītīḥ.
Anantacidrūpamayaṁ gaṇeśaṁ hyabhedabhedādivihīnamādyam.
Hṛdi prakāśasya dharaṁ svadhīsthaṁ tamekadantaṁ śaraṇam vrajāmaḥ.
Viśvādibhūtaṁ hṛdi yogināṁ vaipratyakṣarūpeṇa vibhāntamekam.
Sadā nirālambasamādhigamyaṁ tamekadantaṁ śaraṇam vrajāmaḥ.
Yadīyavīryeṇa samarthabhūtā māyatayā saṁracitaṁ ca viśvam.
Nāgātmakaṁ hyātmatayā pratītaṁ tamekadantaṁ śaraṇam vrajāmaḥ.
Sarvāntare saṁsthitamekamūḍhaṁ yadājñayā sarvamidaṁ vibhāti.
Anantarūpaṁ hṛdi bodhakaṁ vai tamekadantaṁ śaraṇam vrajāmaḥ.
Yaṁ yogino yogabalena sādhyaṁ kurvanti taṁ kaḥ stavaneṇa nauti.
Ataḥ praṇāmena susiddhido’stu tamekadantaṁ śaraṇam vrajāmaḥ.
Devendramaulimandāra-makarandakaraṇāruṇāḥ.
Vighnān harantuherambacaraṇāmbujareṇavaḥ.
Ekadantaṁ mahākāyaṁ lambodaragajānanam.
Vighnanāśakaraṁ devaṁ herambaṁ praṇamāmyaham.
Yadakṣaraṁ padaṁ bhraṣṭaṁ mātrāhīnaṁ ca yadbhavet.
Tatsarvaṁ kṣamyatāṁ devaprasīda parameśvara.
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गणेश स्तुति – श्लोकों का अर्थ और विस्तार
श्लोक 1: त्रिपुरान्तक गणेश की स्तुति
श्लोक: जेतुं यस्त्रिपुरं हरेणहरिणा व्याजाद्बलिं बध्नता
स्रष्टुं वारिभवोद्भवेनभुवनं शेषेण धर्तुं धराम्।
पार्वत्या महिषासुरप्रमथनेसिद्धाधिपैः सिद्धये
ध्यातः पञ्चशरेण विश्वजितयेपायात्स नागाननः॥
अर्थ और व्याख्या:
इस श्लोक में भगवान गणेश की प्रशंसा की गई है। भगवान गणेश को “त्रिपुरान्तक” कहा गया है, जिसका मतलब है कि वो ही त्रिपुरासुर को जीतने वाले हैं। यहाँ भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का नाश किया और गणेश ने उनकी सहायता की। “हरेण” का तात्पर्य भगवान शिव से है और “बलि बंधन” का तात्पर्य बली दानव को बांधने से है। इसके साथ ही, भगवान गणेश ने संसार को संभालने के लिए शेषनाग को धरती का आधार बनाया और उन्होंने पार्वती जी की महिषासुर मर्दन में सहायता की।
इस श्लोक का सार यह है कि गणेश, जो बुद्धि और शक्ति के देवता हैं, उन्होंने न केवल दानवों को हराया, बल्कि संसार की रचना और धारण में भी मदद की।
श्लोक 2: विघ्नेश्वर की महिमा
श्लोक: विघ्नध्वान्तनिवारणैकतरणि-र्विघ्नाटवीहव्यवाड्
विघ्नव्यालकुलाभिमानगरुडोविघ्नेभपञ्चाननः।
विघ्नोत्तुङ्गगिरिप्रभेदन-पविर्विघ्नाम्बुधेर्वाडवो
विघ्नाघौधघनप्रचण्डपवनोविघ्नेश्वरः पातु नः॥
अर्थ और व्याख्या:
इस श्लोक में भगवान गणेश को विघ्नेश्वर के रूप में पूजा जाता है, जो सभी विघ्नों का नाश करते हैं। “विघ्नध्वान्तनिवारण” का अर्थ है कि वे अज्ञान के अंधकार को मिटाने वाले हैं। यहाँ गणेश जी को कई रूपों में वर्णित किया गया है जैसे वे विघ्नों के जंगल को जलाने वाले अग्नि हैं, विघ्नों के विषैले सर्पों को नष्ट करने वाले गरुड़ हैं, और विघ्न रूपी पर्वतों को तोड़ने वाले पर्वत-विभंजन हैं।
इस श्लोक में भगवान गणेश को विभिन्न विघ्नों को नष्ट करने वाले शक्ति के रूप में चित्रित किया गया है, जो हमारे जीवन की सभी बाधाओं को दूर करते हैं और हमें मार्ग दिखाते हैं।
श्लोक 3: गणपति की आराधना
श्लोक: खर्वं स्थूलतनुं गजेन्द्रवदनंलम्बोदरं सुन्दरं
प्रस्यन्दन्मदगन्धलुब्धम-धुपव्यालोलगण्डस्थलम्।
दन्ताघातविदारितारिरुधिरैःसिन्दूरशोभाकरं
वन्दे शैलसुतासुतं गणपतिंसिद्धिप्रदं कामदम्॥
अर्थ और व्याख्या:
इस श्लोक में भगवान गणेश की शारीरिक संरचना का वर्णन किया गया है। उन्हें “खर्व” (विनम्र), “स्थूलतनु” (बड़ी काया), और “गजेन्द्रवदन” (हाथी के सिर वाले) के रूप में वर्णित किया गया है। उनके मस्तक पर सुगंधित मद बहता है, जिससे आकर्षित होकर मधुमक्खियाँ उनके पास आती हैं।
यहां गणेश को “सिद्धिप्रद” कहा गया है, यानी वे सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाले और सिद्धियों के दाता हैं। इस श्लोक का मतलब यह है कि भगवान गणेश की पूजा करने से व्यक्ति को मानसिक और भौतिक दोनों प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।
श्लोक 4: गणेश जी की करुणा
श्लोक: गजाननाय महसेप्रत्यूहतिमिरच्छिदे।
अपारकरुणा-पूरतरङ्गितदृशे नमः॥
अर्थ और व्याख्या:
इस श्लोक में भगवान गणेश की करुणा और उनके अद्वितीय तेज का वर्णन किया गया है। उन्हें “गजानन” कहा गया है, यानी जिनका मुख हाथी के समान है। वे सभी बाधाओं को हरने वाले हैं और अज्ञानता के अंधकार को दूर करते हैं। उनकी आंखें करुणा से भरी हुई हैं, जो एक अपार करुणा के सागर की तरह है।
यह श्लोक गणेश की अपार करुणा और प्रेम का प्रतीक है, जो सभी भक्तों के जीवन से अज्ञानता और दुखों को मिटाते हैं।
श्लोक 5: अगजानन पद्मार्क
श्लोक: अगजाननपद्मार्कंगजाननमहर्निशम्।
अनेकदन्तं भक्तानामेक-दन्तमुपास्महे॥
अर्थ और व्याख्या:
इस श्लोक में भगवान गणेश को “अगजाननपद्मार्क” कहा गया है, जिसका अर्थ है वे पार्वती (अगजा) के पुत्र हैं और उनकी आभा सूर्य की तरह चमकदार है। उनके मुख पर कई दांत हैं, लेकिन उनमें से एक प्रमुख दांत है, जिससे उन्हें “एकदंत” कहा जाता है।
यह श्लोक भगवान गणेश के दो प्रमुख रूपों का वर्णन करता है—उनकी मातृ प्रेम से उत्पन्न ममता और उनके बलिदान और त्याग का प्रतीक एक दंत।
श्लोक 6: श्वेत गणपति की ध्यान
श्लोक: श्वेताङ्गं श्वेतवस्त्रं सितकु-सुमगणैः पूजितं श्वेतगन्धैः
क्षीराब्धौ रत्नदीपैः सुरनर-तिलकं रत्नसिंहासनस्थम्।
दोर्भिः पाशाङ्कुशाब्जा-भयवरमनसं चन्द्रमौलिं त्रिनेत्रं
ध्यायेच्छान्त्यर्थमीशं गणपति-ममलं श्रीसमेतं प्रसन्नम्॥
अर्थ और व्याख्या:
इस श्लोक में भगवान गणेश के श्वेत रूप का ध्यान किया गया है। वे सफेद शरीर वाले हैं, सफेद वस्त्र धारण करते हैं, और सफेद फूलों से उनकी पूजा की जाती है। श्वेत गंध से अभिषेक किया जाता है, और वे समुद्र के बीच रत्नदीपों से प्रकाशित रत्न सिंहासन पर बैठे हैं। उनके हाथों में पाश, अंकुश, कमल और आशीर्वाद देने की मुद्रा है।
उनकी मस्तक पर चंद्रमा का मुकुट और तीन नेत्र हैं, जो उनकी दिव्यता और शक्ति का प्रतीक हैं। इस श्लोक में उनकी शांत और प्रसन्न मुद्रा का वर्णन किया गया है, जो सभी विघ्नों और कष्टों को हरने वाले हैं।
श्लोक 7: गणराज का आवाहन
श्लोक: आवाहये तं गणराजदेवंरक्तोत्पलाभासमशेषवन्द्यम्।
विघ्नान्तकं विघ्नहरं गणेशंभजामि रौद्रं सहितं च सिद्धया॥
अर्थ और व्याख्या:
इस श्लोक में भगवान गणेश का आवाहन किया गया है। उन्हें “गणराज” कहा गया है, यानी गणों के राजा। वे लाल कमल के समान दीप्तिमान हैं और समस्त प्राणियों द्वारा पूजनीय हैं। वे विघ्नों का नाश करने वाले और सभी बाधाओं को दूर करने वाले हैं।
इस श्लोक में गणेश की पूजा रौद्र (गंभीर) रूप और सिद्धियों की प्राप्ति के लिए की जाती है। उनकी आराधना से समस्त कष्ट समाप्त होते हैं और जीवन में शुभता आती है।
श्लोक 8: ब्रह्मांड के कारणस्वरूप गणेश
श्लोक: यं ब्रह्म वेदान्तविदो वदन्तिपरं प्रधानं पुरुषं तथान्ये।
विश्वोद्गतेः कारणमीश्वरं वातस्मै नमो विघ्नविनाशनाय॥
अर्थ और व्याख्या:
इस श्लोक में भगवान गणेश को ब्रह्मांड के कारणस्वरूप बताया गया है। वेदांत के ज्ञानी गणेश को परम तत्व और ब्रह्म के रूप में मानते हैं। अन्य लोग उन्हें पुरुष या प्रधान के रूप में पूजते हैं, जो संपूर्ण सृष्टि का कारण हैं।
भगवान गणेश की पूजा उन लोगों द्वारा की जाती है, जो उन्हें ब्रह्मांड की उत्पत्ति और निर्माण का कारण मानते हैं। वे सभी विघ्नों और कष्टों को दूर करने वाले हैं।
श्लोक 9: गणेश की महिमा और आह्वान
श्लोक: विघ्नेश वीर्याणि विचित्रकाणिवन्दीजनैर्मागधकैः स्मृतानि।
श्रुत्वा समुत्तिष्ठ गजानन त्वंब्राह्मे जगन्मङ्गलकं कुरुष्व॥
अर्थ और व्याख्या:
इस श्लोक में भगवान गणेश की महिमा का गान किया गया है। उनके पराक्रम और वीरता की प्रशंसा की गई है, जिसे मागध और अन्य वंदीजनों द्वारा गाया गया है। गणेश के अद्भुत कारनामों को सुनकर भक्त उनके जागरण की कामना करते हैं।
इस श्लोक का सार यह है कि गणेश की शक्ति और महिमा का गान करने से भक्तों की सभी बाधाएँ दूर हो जाती हैं, और वे समस्त संसार के कल्याण के लिए काम करते हैं।
श्लोक 10: गणेश का आशीर्वाद
श्लोक: गणेश हेरम्ब गजाननेतिमहोदर स्वानुभवप्रकाशिन्।
वरिष्ठ सिद्धिप्रिय बुद्धिनाथवदन्त एवं त्यजत प्रभीतीः॥
अर्थ और व्याख्या:
इस श्लोक में भगवान गणेश के विभिन्न नामों की प्रशंसा की गई है। उन्हें “हेरम्ब” (आशीर्वाद देने वाले), “गजानन” (हाथी के मुख वाले), और “महोदर” (विशाल पेट वाले) कहा गया है। वे सभी सिद्धियों के प्रिय और बुद्धि के स्वामी हैं।
इस श्लोक का संदेश यह है कि गणेश सभी भय और बाधाओं को समाप्त करते हैं और भक्तों को सिद्धियों और बुद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
श्लोक 11: अनेक रूपों में गणेश
श्लोक: अनेकविघ्नान्तक वक्रतुण्डस्वसंज्ञवासिंश्च चतुर्भुजेति।
कवीश देवान्तकनाशकारिन्वदन्त एवं त्यजत प्रभीतीः॥
अर्थ और व्याख्या:
इस श्लोक में भगवान गणेश के विविध रूपों का वर्णन किया गया है। वे “वक्रतुण्ड” (वक्र मुंह वाले), “चतुर्भुज” (चार भुजाओं वाले) और “कवीश” (ज्ञानियों के स्वामी) के रूप में पूजनीय हैं। वे देवताओं के शत्रुओं का नाश करने वाले हैं और सभी विघ्नों को समाप्त करते हैं।
इस श्लोक में गणेश के विभिन्न गुणों और शक्तियों की प्रशंसा की गई है, जो सभी प्रकार के कष्टों को दूर करने वाले हैं।
श्लोक 12: अनन्त गणेश
श्लोक: अनन्तचिद्रूपमयं गणेशंह्यभेदभेदादिविहीनमाद्यम्।
हृदि प्रकाशस्य धरं स्वधीस्थंतमेकदन्तं शरणम् व्रजामः॥
अर्थ और व्याख्या:
इस श्लोक में भगवान गणेश की अनंतता और उनके अद्वितीय स्वरूप की महिमा का वर्णन किया गया है। वे “अनन्तचिद्रूप” (अनंत चेतना वाले) हैं और किसी भी भेदभाव से परे हैं। वे सभी चेतन और अचेतन वस्तुओं के आदि कारण हैं।
श्लोक 13: योगियों के हृदय में गणेश
श्लोक: विश्वादिभूतं हृदि योगिनां वैप्रत्यक्षरूपेण विभान्तमेकम्।
सदा निरालम्बसमाधिगम्यंतमेकदन्तं शरणम् व्रजामः॥
अर्थ और व्याख्या:
इस श्लोक में भगवान गणेश को योगियों के ध्यान का केंद्र बताया गया है। उन्हें “विश्वादिभूत” कहा गया है, जिसका अर्थ है कि वे सम्पूर्ण सृष्टि के प्रारंभ में विद्यमान हैं। वे योगियों के हृदय में प्रत्यक्ष रूप से प्रकट होते हैं और ध्यान की अवस्था में प्राप्त किए जा सकते हैं।
गणेश को “निरालम्ब” कहा गया है, यानी उन्हें किसी भी बाहरी सहारे की आवश्यकता नहीं है। वे स्वयं पूर्ण हैं और सदा योगियों के ध्यान में निरंतर प्रकट होते हैं। इस श्लोक का भावार्थ यह है कि भगवान गणेश योगियों के ध्यान और साधना से प्राप्त किए जा सकते हैं और वे ही उन्हें सच्चे मार्ग पर ले जाते हैं।
श्लोक 14: गणेश के वीर्य से रचित संसार
श्लोक: यदीयवीर्येण समर्थभूता मायातया संरचितं च विश्वम्।
नागात्मकं ह्यात्मतया प्रतीतंतमेकदन्तं शरणम् व्रजामः॥
अर्थ और व्याख्या:
इस श्लोक में भगवान गणेश की महिमा का वर्णन किया गया है कि उनके वीर्य से ही यह संसार रचा गया है। उनके द्वारा सृजित यह विश्व माया के प्रभाव में है, और उनकी शक्ति से ही इस संसार का निर्माण हुआ है। वे नागों की तरह लचीले हैं और उनकी आत्मा से ही यह संसार जागरूक हो रहा है।
इस श्लोक का भावार्थ यह है कि भगवान गणेश की असीम शक्ति से ही यह संसार बना है, और उनके बिना यह अस्तित्व में नहीं होता। वे सभी शक्तियों के स्रोत हैं, और उन्हें शरण में लेने पर माया के बंधनों से मुक्ति मिलती है।
श्लोक 15: सर्वत्र विद्यमान गणेश
श्लोक: सर्वान्तरे संस्थितमेकमूढंयदाज्ञया सर्वमिदं विभाति।
अनन्तरूपं हृदि बोधकं वैतमेकदन्तं शरणम् व्रजामः॥
अर्थ और व्याख्या:
इस श्लोक में भगवान गणेश को सर्वव्यापी बताया गया है। वे हर जगह विद्यमान हैं और उनके आदेश से ही यह सम्पूर्ण सृष्टि प्रकाशित होती है। वे अनन्त रूपधारी हैं और उनके हृदय में ज्ञान का प्रकाश होता है।
इस श्लोक का संदेश यह है कि भगवान गणेश के आदेश और उपस्थिति से ही यह संसार क्रियाशील है। उनका अनन्त रूप हमें जीवन के हर पहलू में दिखाई देता है और वे ही सच्चे ज्ञान के स्रोत हैं। इसीलिए, उन्हें शरण में लेने से जीवन में अज्ञानता का अंधकार मिट जाता है।
श्लोक 16: योगियों के द्वारा सिद्ध गणेश
श्लोक: यं योगिनो योगबलेन साध्यंकुर्वन्ति तं कः स्तवनेन नौति।
अतः प्रणामेन सुसिद्धिदोऽस्तुतमेकदन्तं शरणम् व्रजामः॥
अर्थ और व्याख्या:
इस श्लोक में कहा गया है कि योगी गणेश को अपने योगबल से सिद्ध करते हैं। जो गणेश योगियों के लिए साध्य हैं, उनका स्तवन या प्रशंसा करने में कौन समर्थ है? उन्हें प्रणाम करने से ही समस्त सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।
यह श्लोक भगवान गणेश की साध्यता और अनुग्रह का वर्णन करता है। उनके प्रति केवल श्रद्धा और नमन करने से ही सभी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं, और इसलिए भक्त उन्हें शरण में लेते हैं।
श्लोक 17: हेरम्ब के चरणाम्बुज की वंदना
श्लोक: देवेन्द्रमौलिमन्दार-मकरन्दकणारुणाः।
विघ्नान् हरन्तुहेरम्बचरणाम्बुजरेणवः॥
अर्थ और व्याख्या:
इस श्लोक में भगवान हेरम्ब गणेश की चरण रज की प्रशंसा की गई है। “देवेन्द्रमौलिमन्दार” का अर्थ है देवताओं के राजा इंद्र की माला में मंडार पुष्पों का मकरंद। भगवान गणेश के चरण कमल की धूल भी ऐसी ही दिव्य शक्ति वाली है जो विघ्नों को हरने में सक्षम है।
यह श्लोक भगवान गणेश की चरण रज की महिमा का वर्णन करता है, जो सभी प्रकार के विघ्नों और बाधाओं को समाप्त करती है। गणेश के चरणों की धूल भी जीवन में मंगल और शुभता लाती है।
श्लोक 18: महाकाय गणेश की स्तुति
श्लोक: एकदन्तं महाकायंलम्बोदरगजाननम्।
विघ्ननाशकरं देवंहेरम्बं प्रणमाम्यहम्॥
अर्थ और व्याख्या:
इस श्लोक में भगवान गणेश की स्तुति की गई है, जिन्हें “एकदन्त”, “महाकाय”, “लम्बोदर”, और “गजानन” कहा गया है। वे विशालकाय और एकदंत हैं, जिनका मुख हाथी के समान है। वे सभी विघ्नों को नष्ट करने वाले हैं और हेरम्ब के रूप में पूजनीय हैं।
इस श्लोक में गणेश की विभिन्न विशेषताओं का वर्णन किया गया है, जो उन्हें विघ्ननाशक और भक्तों की रक्षा करने वाला देवता बनाते हैं। उनके प्रति श्रद्धा और भक्ति से सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं।
श्लोक 19: अक्षर और मंत्र दोष क्षमा
श्लोक: यदक्षरं पदं भ्रष्टंमात्राहीनं च यद्भवेत्।
तत्सर्वं क्षम्यतां देवप्रसीद परमेश्वर॥
अर्थ और व्याख्या:
इस श्लोक में भक्त भगवान गणेश से प्रार्थना करता है कि यदि इस स्तुति या मंत्र में कोई अक्षर दोष या उच्चारण दोष हुआ हो, तो उसे क्षमा करें। यदि कोई शब्द या मात्रा गलत उच्चारित हो गई हो, तो भगवान गणेश उसे माफ करने के लिए कहते हैं।
यह श्लोक भक्त की विनम्रता को दर्शाता है, जो भगवान गणेश से उनकी कृपा और क्षमाशीलता की याचना करता है। भक्त जानते हैं कि भगवान गणेश सभी दोषों को क्षमा करने वाले हैं और उनकी कृपा से सभी त्रुटियाँ क्षम्य हो जाती हैं।
गणेशजी के नाम और उनके अर्थ
भगवान गणेश के कई नाम हैं, जो उनके विभिन्न गुणों और विशेषताओं को दर्शाते हैं:
- वक्रतुण्ड: वक्र तुण्ड यानी टेढ़े मुँह वाले। यह नाम उनकी बुद्धिमत्ता और जीवन में जटिलताओं को सरलता से हल करने की क्षमता का प्रतीक है।
- लम्बोदर: लम्बोदर यानी लंबा पेट। यह नाम गणेशजी की धैर्य, स्थिरता और संसार को अपने भीतर समेटने की शक्ति का प्रतीक है।
- गजानन: गज (हाथी) का मुख धारण करने वाले। यह उनके महाबली, बुद्धिमान और शक्ति के प्रतीक के रूप में जाना जाता है।
- एकदन्त: एक दांत वाले। यह गणेशजी के त्याग और बलिदान का प्रतीक है, जब उन्होंने अपने एक दांत को तोड़कर संसार की रक्षा की।
- विघ्नहर्ता: सभी विघ्नों और बाधाओं को दूर करने वाले। जब कोई शुभ कार्य आरंभ होता है, तब गणेशजी की पूजा की जाती है ताकि सभी बाधाएँ दूर हों।
- सिद्धिदाता: गणेशजी को सिद्धियों का दाता माना जाता है। उनकी आराधना से भक्तों को न केवल सांसारिक सफलताएँ मिलती हैं, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति भी होती है।
गणेशजी के प्रतीक
गणेशजी की मूर्ति और उनकी विभिन्न प्रतीकों का गहरा अर्थ होता है, जो जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं को दर्शाते हैं:
- हाथी का सिर: बुद्धिमत्ता, शक्ति और विशालता का प्रतीक। गणेशजी का हाथी का सिर हमें बताता है कि हमें जीवन में धैर्य, विवेक और दृढ़ता से आगे बढ़ना चाहिए।
- बड़ा पेट: यह हमें सिखाता है कि हमें जीवन की हर घटना, चाहे वह सुखद हो या दुःखद, को सहन करना चाहिए। उनका बड़ा पेट भी उनके महान ज्ञान और अनुभव का प्रतीक है।
- छोटे नेत्र: उनके छोटे नेत्र इस बात का प्रतीक हैं कि जीवन में हमें छोटी-छोटी बातों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। यह सूक्ष्म दृष्टि और हर कार्य में सावधानी का प्रतीक है।
- चूहे की सवारी: चूहा, जो एक छोटा और चपल जीव है, गणेशजी की सवारी है। यह प्रतीक हमें सिखाता है कि बुद्धि और साहस के साथ, हम किसी भी चुनौती पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।
- पाश और अंकुश: गणेशजी के हाथों में पाश (रस्सी) और अंकुश (हाथी चलाने का औजार) होते हैं। पाश हमें जीवन के बंधनों और मोह-माया से मुक्त होने की प्रेरणा देता है, जबकि अंकुश हमें अनुशासन में रहने और सही मार्ग पर चलने की शिक्षा देता है।
- एकदंत: एक दांत वाले गणेशजी हमें सिखाते हैं कि जीवन में त्याग और समर्पण कितना महत्वपूर्ण है। यह बलिदान का प्रतीक है।
गणेशजी की पूजा विधि
गणेशजी की पूजा बहुत ही सरल और प्रभावी मानी जाती है। किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत में गणेशजी का आह्वान किया जाता है। यहाँ गणेश पूजा की प्रमुख विधियाँ दी गई हैं:
- ध्यान: गणेशजी का ध्यान करना उनके प्रति श्रद्धा और समर्पण को बढ़ाता है। ध्यान में उनके दिव्य रूप की कल्पना करनी चाहिए और यह सोचना चाहिए कि वे हमारे सभी विघ्नों को दूर कर रहे हैं।
- मंत्र जाप: गणेश मंत्रों का जाप, जैसे “ॐ गण गणपतये नमः”, बहुत ही प्रभावशाली माना जाता है। इस मंत्र के नियमित जाप से जीवन में आने वाली सभी बाधाएँ दूर हो जाती हैं।
- प्रसाद: गणेशजी को मोदक का भोग अर्पित किया जाता है, जो उनके प्रिय मिष्ठान्न माने जाते हैं। इसके अलावा, लड्डू और दूर्वा (घास) भी गणेशजी को अर्पित की जाती है।
- आरती: गणेशजी की आरती के द्वारा हम उनकी कृपा प्राप्त कर सकते हैं। आरती के दौरान भक्त गणेशजी के सामने दीपक जलाकर उनकी स्तुति गाते हैं।
गणेश चतुर्थी
गणेशजी का प्रमुख पर्व गणेश चतुर्थी है, जो भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन गणेशजी की मूर्तियों की स्थापना की जाती है और उनकी विशेष पूजा-अर्चना होती है। गणेश चतुर्थी दस दिनों तक चलती है, और इस अवधि में भक्त गणेशजी के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। दसवें दिन गणेशजी की मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है, जिससे यह संदेश मिलता है कि संसार में सभी चीज़ें अस्थायी हैं, लेकिन ईश्वर की कृपा सदा विद्यमान रहती है।
गणेशजी के जीवन संदेश
- संतुलित दृष्टिकोण: गणेशजी के एक बड़ा कान और एक छोटा कान जीवन में संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता को दर्शाता है। हमें हर किसी की बात सुननी चाहिए, लेकिन अपनी विवेकपूर्ण निर्णय क्षमता से ही कार्य करना चाहिए।
- साहस और धैर्य: गणेशजी का बड़ा पेट यह बताता है कि जीवन में धैर्य का कितना महत्व है। चाहे कैसी भी परिस्थितियाँ हों, हमें साहस और धैर्य बनाए रखना चाहिए।
- मूल्यों का पालन: गणेशजी के जीवन से हमें यह भी शिक्षा मिलती है कि हमें अपने मूल्यों और सिद्धांतों का पालन करना चाहिए। चाहे कितनी भी बड़ी चुनौती क्यों न हो, हमें सत्य और धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए।