- – यह गीत कलयुग की छाया और समाज में व्याप्त आध्यात्मिक अज्ञानता को दर्शाता है।
- – गुरु और ज्ञानी कम हैं, और लोग केवल बाहरी आडंबरों में उलझे हैं, जैसे लंबे बाल, तिलक, माला आदि।
- – लोग पांच तत्वों और आत्मा की सच्ची समझ से अनजान हैं, केवल दिखावे के लिए धार्मिक कर्म करते हैं।
- – मंदिर जाने और धार्मिक वेश-भूषा अपनाने के बावजूद, वे अपने अंदर के मंदिर (मन) की परवाह नहीं करते।
- – गीत में भुरनाथ, जोगी और गुरु कानजी जैसे आध्यात्मिक व्यक्तियों का उल्लेख है, जो सच्चे ज्ञान के प्रतीक हैं।
- – समग्र रूप से यह गीत समाज को सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान और आत्म-चिंतन की ओर प्रेरित करता है।

घर में रागी घर में वैरागी,
घर घर गावन वाला ओ,
कलयुग री आ छाया पड़ी है
कुन नुगरोने वर्जन वाला ओ जी।।
गुरु मुख ग्यानी जगत में थोड़ा,
मन मुख मुंड कियोड़ा रे,
ग्यान गत री मत नही जाने,
ऐ लंबे बालों वाला ओ जी,
घर में रागी घर में वैरागि,
घर घर गावन वाला ओ।।
बाल राख ने मोड़ा चाले,
अरे पंच केश नही ध्याता है,
पांच तत्व री सार नही जाने,
नित निम् न्हावन वाला है ओ जी,
घर में रागी घर में वैरागि,
घर घर गावन वाला ओ।।
नावे धोवे तिलक लगावे,
अरे मंदिर जावन वाला ओ,
निज मन्दिर री खबर नही जाने,
गले जनोइरी माला है ओ जी,
घर में रागी घर में वैरागि,
घर घर गावन वाला ओ।।
अरे वेश पेर भगवान् रिजावे,
घरे जोगियो रा वाना ओ,
नेती धोती री सार नही जाने,
पर बैठा पुरुष दीवाना है ओ जी
घर में रागी घर में वैरागि,
घर घर गावन वाला ओ।।
भुरनाथ अडवन्का जोगी,
सिद का जल वसवाला है,
गुरु कानजी सिमरत मिलिया,
अब फेरुस थोरी माला है ओ जी,
घर में रागी घर में वैरागि,
घर घर गावन वाला ओ।।
घर में रागी घर में वैरागी,
घर घर गावन वाला ओ,
कलयुग री आ छाया पड़ी है
कुन नुगरोने वर्जन वाला ओ जी।।
स्वर – प्रकाश माली जी।
प्रेषक – श्रवण सिंह राजपुरोहित।
+91 90965 58244
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