॥ दोहा ॥
श्री राधापद कमल रज,सिर धरि यमुना कूल।
वरणो चालीसा सरस,सकल सुमंगल मूल॥
॥ चौपाई ॥
जय जय पूरण ब्रह्म बिहारी।दुष्ट दलन लीला अवतारी॥
जो कोई तुम्हरी लीला गावै।बिन श्रम सकल पदारथ पावै॥
श्री वसुदेव देवकी माता।प्रकट भये संग हलधर भ्राता॥
मथुरा सों प्रभु गोकुल आये।नन्द भवन में बजत बधाये॥
जो विष देन पूतना आई।सो मुक्ति दै धाम पठाई॥
तृणावर्त राक्षस संहार्यौ।पग बढ़ाय सकटासुर मार्यौ॥
खेल खेल में माटी खाई।मुख में सब जग दियो दिखाई॥
गोपिन घर घर माखन खायो।जसुमति बाल केलि सुख पायो॥
ऊखल सों निज अंग बँधाई।यमलार्जुन जड़ योनि छुड़ाई॥
बका असुर की चोंच विदारी।विकट अघासुर दियो सँहारी॥
ब्रह्मा बालक वत्स चुराये।मोहन को मोहन हित आये॥
बाल वत्स सब बने मुरारी।ब्रह्मा विनय करी तब भारी॥
काली नाग नाथि भगवाना।दावानल को कीन्हों पाना॥
सखन संग खेलत सुख पायो।श्रीदामा निज कन्ध चढ़ायो॥
चीर हरन करि सीख सिखाई।नख पर गिरवर लियो उठाई॥
दरश यज्ञ पत्निन को दीन्हों।राधा प्रेम सुधा सुख लीन्हों॥
नन्दहिं वरुण लोक सों लाये।ग्वालन को निज लोक दिखाये॥
शरद चन्द्र लखि वेणु बजाई।अति सुख दीन्हों रास रचाई॥
अजगर सों पितु चरण छुड़ायो।शंखचूड़ को मूड़ गिरायो॥
हने अरिष्टा सुर अरु केशी।व्योमासुर मार्यो छल वेषी॥
व्याकुल ब्रज तजि मथुरा आये।मारि कंस यदुवंश बसाये॥
मात पिता की बन्दि छुड़ाई।सान्दीपनि गृह विद्या पाई॥
पुनि पठयौ ब्रज ऊधौ ज्ञानी।प्रेम देखि सुधि सकल भुलानी॥
कीन्हीं कुबरी सुन्दर नारी।हरि लाये रुक्मिणि सुकुमारी॥
भौमासुर हनि भक्त छुड़ाये।सुरन जीति सुरतरु महि लाये॥
दन्तवक्र शिशुपाल संहारे।खग मृग नृग अरु बधिक उधारे॥
दीन सुदामा धनपति कीन्हों।पारथ रथ सारथि यश लीन्हों॥
गीता ज्ञान सिखावन हारे।अर्जुन मोह मिटावन हारे॥
केला भक्त बिदुर घर पायो।युद्ध महाभारत रचवायो॥
द्रुपद सुता को चीर बढ़ायो।गर्भ परीक्षित जरत बचायो॥
कच्छ मच्छ वाराह अहीशा।बावन कल्की बुद्धि मुनीशा॥
ह्वै नृसिंह प्रह्लाद उबार्यो।राम रुप धरि रावण मार्यो॥
जय मधु कैटभ दैत्य हनैया।अम्बरीय प्रिय चक्र धरैया॥
ब्याध अजामिल दीन्हें तारी।शबरी अरु गणिका सी नारी॥
गरुड़ासन गज फन्द निकन्दन।देहु दरश ध्रुव नयनानन्दन॥
देहु शुद्ध सन्तन कर सङ्गा।बाढ़ै प्रेम भक्ति रस रङ्गा॥
देहु दिव्य वृन्दावन बासा।छूटै मृग तृष्णा जग आशा॥
तुम्हरो ध्यान धरत शिव नारद।शुक सनकादिक ब्रह्म विशारद॥
जय जय राधारमण कृपाला।हरण सकल संकट भ्रम जाला॥
बिनसैं बिघन रोग दुःख भारी।जो सुमरैं जगपति गिरधारी॥
जो सत बार पढ़ै चालीसा।देहि सकल बाँछित फल शीशा॥
॥ छन्द ॥
गोपाल चालीसा पढ़ै नित,नेम सों चित्त लावई।
सो दिव्य तन धरि अन्त महँ,गोलोक धाम सिधावई॥
संसार सुख सम्पत्ति सकल,जो भक्तजन सन महँ चहैं।
‘जयरामदेव’ सदैव सो,गुरुदेव दाया सों लहैं॥
॥ दोहा ॥
प्रणत पाल अशरण शरण,करुणा-सिन्धु ब्रजेश।
चालीसा के संग मोहि,अपनावहु प्राणेश॥
श्री गोपाल चालीसा की विस्तृत व्याख्या
गोपाल चालीसा एक पवित्र भक्ति काव्य है जो भगवान श्रीकृष्ण के विभिन्न लीलाओं का वर्णन करता है। यह चालीसा भगवान के अनन्य भक्तों द्वारा उनके अद्भुत लीलाओं और उनकी करुणामय शक्ति की प्रशंसा में गाया जाता है। आइए इस चालीसा को विस्तार से समझते हैं:
दोहा
श्री राधापद कमल रज, सिर धरि यमुना कूल।
इस पंक्ति में श्री कृष्ण के भक्तों की अपार श्रद्धा और भक्ति को प्रदर्शित किया गया है। यमुना नदी के किनारे पर श्री राधाजी के चरणों की रज (धूल) को अपने सिर पर धारण करने की महिमा गाई गई है, जो भक्तों को शांति और मुक्ति का मार्ग दिखाती है।
वरणो चालीसा सरस, सकल सुमंगल मूल।
इस पंक्ति में गोपाल चालीसा को ‘सरस’ कहा गया है, जो मधुरता और भक्ति से परिपूर्ण है। यह चालीसा सभी प्रकार के शुभ फल देने वाला है और इसे पढ़ने से जीवन में हर प्रकार के कल्याण की प्राप्ति होती है।
चौपाई
जय जय पूरण ब्रह्म बिहारी। दुष्ट दलन लीला अवतारी॥
भगवान श्रीकृष्ण को पूर्ण ब्रह्म के रूप में महिमामंडित किया गया है। वे दुष्टों का नाश करने और संसार को पाप से मुक्त करने के लिए अवतार लेते हैं। उनकी लीलाएं अत्यंत दिव्य और असंख्य हैं।
जो कोई तुम्हरी लीला गावै। बिन श्रम सकल पदारथ पावै॥
यहाँ बताया गया है कि जो भी भक्त भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का गायन करता है, वह बिना किसी कठिनाई के सभी प्रकार के पदार्थों और सिद्धियों को प्राप्त करता है। भगवान का स्मरण और भक्ति ही उनके सभी कष्टों का निवारण करती है।
श्री वसुदेव देवकी माता। प्रकट भये संग हलधर भ्राता॥
यह पंक्ति भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का वर्णन करती है। वसुदेव और देवकी की पुत्री रूप में श्रीकृष्ण ने अवतार लिया, और उनके साथ उनके बड़े भाई बलराम (हलधर) भी थे।
मथुरा सों प्रभु गोकुल आये। नन्द भवन में बजत बधाये॥
भगवान कृष्ण के मथुरा से गोकुल आने का वर्णन है। नन्द बाबा के घर में उनके आगमन पर खुशियों की धूम मच गई और बधाईयां बजने लगीं।
भगवान श्रीकृष्ण की लीलाएं
पूतना वध और तृणावर्त का संहार
जो विष देन पूतना आई। सो मुक्ति दै धाम पठाई॥
पूतना राक्षसी, जो भगवान कृष्ण को मारने आई थी, भगवान ने उसे न केवल मारा बल्कि उसे मुक्ति भी प्रदान की। यह भगवान की करुणा और दया को दर्शाता है।
तृणावर्त राक्षस संहार्यौ। पग बढ़ाय सकटासुर मार्यौ॥
भगवान ने तृणावर्त नामक राक्षस का भी वध किया और अपनी बाल्यावस्था में ही अनेक राक्षसों को संहार कर ब्रजवासियों की रक्षा की।
माखन चोरी और यशोदा मैया का आनंद
गोपिन घर घर माखन खायो। जसुमति बाल केलि सुख पायो॥
यहां भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन है। गोपियों के घर-घर जाकर माखन चुराना और यशोदा मैया को उनकी बाल लीलाओं का आनंद दिलाना, श्रीकृष्ण के बाल्यकाल की सुंदरता को दर्शाता है।
यमलार्जुन उद्धार और अघासुर वध
ऊखल सों निज अंग बँधाई। यमलार्जुन जड़ योनि छुड़ाई॥
श्रीकृष्ण ने अपने बाल्यकाल में यमलार्जुन वृक्षों का उद्धार किया, जो नारद मुनि के शाप के कारण वृक्ष रूप में खड़े थे।
विकट अघासुर दियो सँहारी॥
भगवान ने अघासुर जैसे विकट राक्षस को भी परास्त किया। इस तरह भगवान ने अपनी बाल लीलाओं में भी असुरों का संहार कर धर्म की स्थापना की।
गोवर्धन लीला और रासलीला
चीर हरन करि सीख सिखाई। नख पर गिरवर लियो उठाई॥
भगवान ने गोपियों का चीर हरण कर उन्हें जीवन में धर्म और मर्यादा का पालन करने की शिक्षा दी। इसके अलावा, उन्होंने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाकर इंद्र के प्रकोप से ब्रजवासियों की रक्षा की।
अति सुख दीन्हों रास रचाई॥
भगवान कृष्ण ने शरद पूर्णिमा की रात को गोपियों के साथ रासलीला की, जो प्रेम और भक्ति का अद्वितीय उदाहरण है। इस लीला में भगवान ने गोपियों को अनन्य भक्ति का आनंद प्रदान किया।
महाभारत और भगवान का उपदेश
दीन सुदामा धनपति कीन्हों। पारथ रथ सारथि यश लीन्हों॥
यहाँ भगवान की मित्रता और करुणा का वर्णन किया गया है। उन्होंने अपने मित्र सुदामा की दरिद्रता को समाप्त कर उन्हें धन-धान्य से भरपूर किया। साथ ही, अर्जुन के सारथी बनकर उन्होंने महाभारत के युद्ध में धर्म की स्थापना की।
गीता ज्ञान सिखावन हारे। अर्जुन मोह मिटावन हारे॥
भगवान ने महाभारत के युद्ध में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया और उनके मोह को समाप्त किया। गीता का ज्ञान आज भी मानवता के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
भगवान की विभिन्न लीलाएं
कच्छ मच्छ वाराह अहीशा। बावन कल्की बुद्धि मुनीशा॥
भगवान ने विभिन्न युगों में अलग-अलग अवतार धारण किए हैं, जैसे कच्छप, मत्स्य, वाराह, वामन और कल्कि। इन अवतारों में उन्होंने पृथ्वी और मानवता की रक्षा के लिए विभिन्न असुरों का वध किया।
ह्वै नृसिंह प्रह्लाद उबार्यो। राम रुप धरि रावण मार्यो॥
भगवान ने नृसिंह अवतार में भक्त प्रह्लाद की रक्षा की और राम अवतार में रावण का वध कर धर्म की स्थापना की।
गोपाल चालीसा का फल
जो सत बार पढ़ै चालीसा। देहि सकल बाँछित फल शीशा॥
यहां गोपाल चालीसा के पाठ का महत्व बताया गया है। जो भी इस चालीसा का पाठ करता है, उसे सभी इच्छित फल प्राप्त होते हैं। भगवान की कृपा से उसके जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं।
समापन
गोपाल चालीसा भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का अद्भुत वर्णन है, जिसमें उनकी करुणा, शक्ति, और भक्ति का अद्वितीय प्रभाव दर्शाया गया है। जो भी भक्त इसे नित्य पढ़ता है, वह जीवन में हर प्रकार के कष्टों से मुक्त होकर भगवान की शरण में चला जाता है।
दोहा
प्रणत पाल अशरण शरण, करुणा-सिन्धु ब्रजेश।
चालीसा के संग मोहि, अपनावहु प्राणेश॥
यहां भगवान से प्रार्थना की गई है कि वे करुणामय हैं और शरणागतों की रक्षा करते हैं।
गोपाल चालीसा की महिमा और प्रभाव
गोपाल चालीसा भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य लीलाओं और उनकी अनंत महिमा का गुणगान करने वाला एक अनुपम स्तोत्र है। यह न केवल उनकी बाल लीलाओं का वर्णन करता है, बल्कि उनके जीवन की प्रमुख घटनाओं को भी श्रद्धापूर्वक प्रस्तुत करता है। इस चालीसा को पढ़ने से व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक लाभ मिलते हैं। आइए इस चालीसा की और गहराई में जाकर इसे समझें:
भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं की विशेषता
भगवान श्रीकृष्ण का बाल्यकाल उनकी लीलाओं से परिपूर्ण है, जो हमारे लिए जीवन में आने वाले संघर्षों को हंसते-हंसते झेलने की प्रेरणा देता है। पूतना का उद्धार हो, अघासुर का वध हो, या माखन चोरी की लीला—इन सबके पीछे गहरी शिक्षा छिपी है।
पूतना वध की शिक्षा
जब पूतना भगवान श्रीकृष्ण को विषपान कराने के लिए आई थी, तो भगवान ने उसे मृत्यु के बाद मुक्ति प्रदान की। यह घटना दर्शाती है कि यदि कोई व्यक्ति भगवान के प्रति प्रेम और भक्ति करता है, तो उसे उसके दोषों के बावजूद मुक्ति का वरदान मिल सकता है। यहाँ भगवान की करुणा और दया का अद्भुत उदाहरण मिलता है।
माखन चोरी की लीला
माखन चुराने की लीला प्रतीकात्मक रूप से यह सिखाती है कि भगवान अपने भक्तों से अटूट प्रेम रखते हैं और उनकी छोटी-छोटी शरारतें भी उनके लिए प्रेम का रूप हैं। जब भगवान माखन चुराते थे, तो वह सिर्फ माखन नहीं चुरा रहे थे, बल्कि अपने भक्तों के प्रेम को आत्मसात कर रहे थे।
गोवर्धन पर्वत उठाने की लीला
गोवर्धन पर्वत को उंगली पर उठाकर भगवान ने यह संदेश दिया कि जब संसार में किसी संकट का सामना करना पड़े, तो अपनी क्षमताओं पर विश्वास करना चाहिए। यह घटना हमें सिखाती है कि जीवन में जब भी कठिनाई आए, तो हमें धैर्य और साहस के साथ उसका सामना करना चाहिए।
महाभारत में भगवान का योगदान
भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध में केवल अर्जुन के सारथी बनकर ही नहीं, बल्कि संपूर्ण धर्म की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अर्जुन को गीता का ज्ञान देकर उसके मन के भ्रम को समाप्त किया। गीता का संदेश आज भी दुनिया भर के लोगों के लिए एक अनमोल धरोहर है, जिसमें कर्मयोग, भक्ति, और ज्ञान का सटीक मार्गदर्शन मिलता है।
गीता का संदेश
गीता के माध्यम से भगवान ने यह सिखाया कि जीवन में कर्म करना ही हमारा धर्म है, फल की चिंता किए बिना। भगवान के इस उपदेश ने न केवल अर्जुन को प्रेरित किया, बल्कि यह आज भी हर व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
श्रीकृष्ण की दया और कृपा
श्रीकृष्ण अपने भक्तों पर अपार दया और कृपा करते हैं। चाहे वह सुदामा की दरिद्रता को समाप्त करना हो या द्रौपदी के चीर को बढ़ाकर उसकी लाज बचाना—भगवान हर समय अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। यह हमें यह सिखाता है कि जब भी हम संकट में होते हैं, हमें भगवान पर पूर्ण विश्वास रखना चाहिए, क्योंकि वे सदैव हमारे साथ होते हैं।
गोपाल चालीसा का पाठ करने के लाभ
शारीरिक और मानसिक शांति
इस चालीसा का नित्य पाठ करने से शारीरिक और मानसिक शांति प्राप्त होती है। यह मन को शांत करता है और व्यक्ति को सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जाओं से दूर रखता है। गोपाल चालीसा भगवान श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति को बढ़ाने का एक सरल मार्ग है, जिससे व्यक्ति के जीवन में सदैव सुख और शांति बनी रहती है।
संकटों का निवारण
गोपाल चालीसा का पाठ करने से जीवन के सभी संकटों का निवारण होता है। चाहे व्यक्ति आर्थिक संकट में हो, मानसिक तनाव में हो, या फिर किसी शारीरिक बीमारी से पीड़ित हो—इस चालीसा का पाठ उसे इन सब समस्याओं से मुक्ति दिलाता है। भगवान श्रीकृष्ण की करुणा और दया से व्यक्ति के जीवन में हर प्रकार के विघ्न और बाधाएं दूर होती हैं।
मुक्ति का मार्ग
इस चालीसा का नित्य पाठ व्यक्ति को मोक्ष की ओर ले जाता है। भगवान के दिव्य चरणों में समर्पण और उनकी लीलाओं का गुणगान जीवन के सभी बंधनों से मुक्ति दिलाता है। गोपाल चालीसा भगवान की महिमा का वह स्त्रोत है, जिसे पढ़कर व्यक्ति के भीतर परम शांति और आत्मज्ञान का उदय होता है।