- – यह गीत गौरा (पार्वती) की शिव (भोले) से प्रेम और विवाह की इच्छा को दर्शाता है।
- – गौरा पर्वत पर शिव को पति बनाने के लिए खोज रही है, जो उसकी भक्ति और समर्पण को दर्शाता है।
- – गीत में पारंपरिक आभूषणों और सजावटों की बजाय भोले की माला और उसके गुणों की कामना की गई है।
- – यह भक्ति गीत शिव-पार्वती के दिव्य प्रेम और आध्यात्मिक संबंध को उजागर करता है।
- – गीत में भौतिक वस्तुओं की अपेक्षा आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों को अधिक महत्व दिया गया है।

गौरा ढूंढ रही पर्वत पर,
शिव को पति बनाने को,
पति बनाने को, भोले को,
पति बनाने को,
गौरा ढूंढ रही पर्वत पे,
शिव को पति बनाने को।।
ना चाहिए मुझे माथे का टिका,
मांग सजाने को,
हमें तो चाहिए भोला तेरी माला,
हरी गुण गाने को,
गौरा ढूंढ रही पर्वत पे,
शिव को पति बनाने को।।
ना चाहिए मुझे सोने की नथनी,
नाक सजाने को,
हमें तो चाहिए भोला तेरी माला,
हरी गुण गाने को,
गौरा ढूंढ रही पर्वत पे,
शिव को पति बनाने को।।
ना चाहिए मुझे गले का हरवा,
गला सजाने को,
हमें तो चाहिए भोला तेरी माला,
हरी गुण गाने को,
गौरा ढूंढ रही पर्वत पे,
शिव को पति बनाने को।।
ना चाहिए मुझे सोने का कंगना,
हाथ सजाने को,
हमें तो चाहिए भोला तेरी माला,
हरी गुण गाने को,
गौरा ढूंढ रही पर्वत पे,
शिव को पति बनाने को।।
ना चाहिए मुझे रेशम की साड़ी,
तन पे सजाने को,
हमें तो चाहिए भोला तेरी माला,
हरी गुण गाने को,
गौरा ढूंढ रही पर्वत पे,
शिव को पति बनाने को।।
ना चाहिए मुझे सोने की करधनी,
कमर सजाने को,
हमें तो चाहिए भोला तेरी माला,
हरी गुण गाने को,
गौरा ढूंढ रही पर्वत पे,
शिव को पति बनाने को।।
गौरा ढूंढ रही पर्वत पर,
शिव को पति बनाने को,
पति बनाने को, भोले को,
पति बनाने को,
गौरा ढूंढ रही पर्वत पे,
शिव को पति बनाने को।।
प्रेषक – राधेश्याम बारोड़ (रेहाता उप)
