- – गुरु की सही पहचान न कर पाने से जीवन में सच्चा ज्ञान और शांति प्राप्त नहीं हो पाती।
- – बाहरी आडम्बर और दिखावे से गुरु और शिष्य के बीच असली मार्गदर्शन संभव नहीं होता।
- – भक्तों की संख्या तो बहुत है, लेकिन माया और मोह में फंसे होने के कारण वे सच्चे प्रभु का दर्शन नहीं कर पाते।
- – दुखों से मुक्ति के लिए गुरु का सही चयन और समझ बेहद आवश्यक है, वरना धोखा हो सकता है।
- – भजन और पूजा में शब्दों से अधिक भाव का होना महत्वपूर्ण है, तभी गुरु की महिमा का सही गायन संभव है।
- – धन-दौलत और सांसारिक सुख मिलने पर भी अगर गुरु को न पहचाना जाए तो जीवन का असली उद्देश्य अधूरा रह जाता है।

गुरु को ना पहचान सका तो,
जग जाना तो जाना क्या,
धन दौलत तू पा भी लिया गर,
धन दौलत तू पा भी लिया गर,
चैन नहीं पाया तो क्या,
गुरु को न पहचान सका तो,
जग जाना तो जाना क्या।।
तर्ज – कस्मे वादे प्यार वफ़ा।
बाहर आडम्बर कुछ है,
भीतर रूप ना निखारा है,
गुरु गुरु में शिष्य गुरु में,
गुरु बनने का झगड़ा है,
ऐसे गुरु भला बोलो क्या,
शिष्य को राह दिखाएगा,
गुरु को न पहचान सका तो,
जग जाना तो जाना क्या।।
कहलाने को भक्त बहुत है,
लेकिन खोटा धंधा है,
माया ऐसे घेर लिया है,
रहते आँख भी अँधा है,
ऐसे भक्तो को प्रभु का दर्शन,
कहो कैसे हो पाएगा,
गुरु को न पहचान सका तो,
जग जाना तो जाना क्या।।
डाल पकड़ कर झूल रहा है,
दुख का कहाँ निवारण है,
जगत गुरु को भूल ही जाना,
सभी दुखों का कारण है,
सोच समझ कर गुरु करो तुम,
नही तो धोखा खाएगा,
गुरु को न पहचान सका तो,
जग जाना तो जाना क्या।।
जो करना वो खुद ही करना,
ना कहना नाइंसाफी है,
भजन में शब्द नही है काफी,
भाव का होना काफी है,
गाया नही गुरु का महिमा,
राग रसीला गाया क्या,
गुरु को न पहचान सका तो,
जग जाना तो जाना क्या।।
गुरु को ना पहचान सका तो,
जग जाना तो जाना क्या,
धन दौलत तू पा भी लिया गर,
धन दौलत तू पा भी लिया गर,
चैन नहीं पाया तो क्या,
गुरु को न पहचान सका तो,
जग जाना तो जाना क्या।।
देखे – गुरुवर चरणों में दे दो ठिकाना।
गायक – धीरज कांत जी।
