- – यह कविता गुरु के नाम और उनके प्रति भक्ति की भावना को दर्शाती है, जिसमें गुरु के नाम का नशा पाने की इच्छा व्यक्त की गई है।
- – कवि विनय और दया की प्रार्थना करता है, गुरु के चरणों में शरण पाने और उनके आशीर्वाद की कामना करता है।
- – कविता में गुरु के नाम को जीवन की कठिनाइयों से मुक्ति और आध्यात्मिक आनंद का स्रोत बताया गया है।
- – कवि अपने आप को भूलकर गुरु की भक्ति में लीन होने की इच्छा प्रकट करता है।
- – यह रचना शिवनारायण वर्मा द्वारा लिखी गई है और इसका स्वर साध्वी ममता दीदी ने दिया है।
गुरु नाम का मैं,
नशा चाहती हूँ,
विनय कर रही हूँ,
दया चाहती हूँ,
गुरु नाम का मै।।
तर्ज – तेरे प्यार का आसरा।
प्रभू नाम का जाम,
मुझे भी पिला दो,
जो देखा न कभी भी वो,
जलवा दिखावों,
लगी है तलब जो,
उसे तुम बुझा दो,
शरण में तुम्हारी,
जगह चाहती हूँ,
विनय कर रही हूँ,
दया चाहती हूँ,
गुरु नाम का मै।।
मिट जाए हस्ति,
छा जाए मस्ती,
बन्दों को अपने,
जो तुमने बख़्शी,
रहमत पे तेरी,
टिकी मेरी कश्ती,
वही तो निगाहें,
करम चाहती हूँ,
विनय कर रही हूँ,
दया चाहती हूँ,
गुरु नाम का मै।।
चरणों का ‘शिव’ को,
दीवाना बनावो,
अपनी शमां का,
परवाना बनालो,
मै अपने आप को,
भूलना चाहती हूँ,
विनय कर रही हूँ,
दया चाहती हूँ,
गुरु नाम का मै।।
गुरु नाम का मैं,
नशा चाहती हूँ,
विनय कर रही हूँ,
दया चाहती हूँ,
गुरु नाम का मै।।
स्वर – साध्वी ममता दीदी।
लेखक / प्रेषक – शिवनारायण वर्मा।
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https://youtu.be/nyO_Zj0-LOw
