- – कविता में खाटू धाम में अपना घर बनाने की इच्छा व्यक्त की गई है, जहां भगवान कृष्ण की शरण मिल सके।
- – कवि का मानना है कि यदि भगवान कृष्ण ने उन्हें जगह दी होती तो उनकी किस्मत बदल जाती और जीवन में सहारा मिलता।
- – कविता में अपनों से दूरी और समझ न पाने की पीड़ा झलकती है, साथ ही रिश्तों में मेल-मिलाप की कामना भी है।
- – कवि अपनी सेवा भावना व्यक्त करते हुए कहते हैं कि वे भगवान की सेवा करने को तत्पर हैं, लेकिन उनकी काबिलियत को समझा नहीं गया।
- – पूरे गीत में एक भावनात्मक आग्रह है कि भगवान कृष्ण उन्हें अपनाएं और उनके जीवन में स्थान दें, जिससे उनका जीवन सुखमय हो सके।

हमारा घर भी खाटू में,
बना देते तो क्या होता,
बना देते तो क्या होता,
शरण में हमको ऐ कान्हा,
जगह देते तो क्या होता,
जगह देते तो क्या होता,
हमारा घर भी खाटू में,
बना देते तो क्या होता।।
तर्ज – बहारों फूल बरसाओ।
पड़ोसी तेरे हो जाते,
ये किस्मत ही बदल जाती,
बिना किसी सहारे के,
हमारी नाव चल जाती,
जो माझी बनके ये नैया,
चला देते तो क्या होता,
चला देते तो क्या होता,
हमारा घर भी खाटू मे,
बना देते तो क्या होता।।
नहीं समझे हमें अपना,
तुम्हारी क्या थी मज़बूरी,
क्या अपनों से भला कोई,
भला रखता है यूँ दुरी,
यही पे होली दिवाली,
मना लेते तो क्या होता,
मना लेते तो क्या होता,
हमारा घर भी खाटू मे,
बना देते तो क्या होता।।
तुम्हारा क्या बिगड़ जाता,
तेरी सेवा ही करते हम,
नहीं समझे हमें लायक,
‘पवन; को बस यही है गम,
की इस काबिल हमें कान्हा,
बना देते तो क्या होता,
बना देते तो क्या होता,
हमारा घर भी खाटू मे,
बना देते तो क्या होता।।
हमारा घर भी खाटू में,
बना देते तो क्या होता,
बना देते तो क्या होता,
शरण में हमको ऐ कान्हा,
जगह देते तो क्या होता,
जगह देते तो क्या होता,
हमारा घर भी खाटू मे,
बना देते तो क्या होता।।
