- – यह कविता एक भक्त की बाबा (ईश्वर) से विनम्र प्रार्थना है, जो जीवन की कठिनाइयों में साथ निभाने और सहारा देने की मांग करता है।
- – कवि अपने हारने और दुखी होने के बावजूद बाबा से प्रेम और स्नेह की उम्मीद करता है, गले लगाने और पहले हंसाने की गुजारिश करता है।
- – कविता में बाबा की दयालुता, सहारा और जीवन सँवारने की महिमा का वर्णन है, जो भक्तों के लिए आश्रय और शक्ति का स्रोत हैं।
- – भक्त अपने आप को अकेला और पराया महसूस करता है, इसलिए बाबा के साथ जुड़ाव और उनकी मदद की आवश्यकता व्यक्त करता है।
- – यह रचना श्रद्धा, विश्वास और आध्यात्मिक समर्पण की भावना को उजागर करती है, जिसमें बाबा के प्रति पूर्ण भरोसा दिखाया गया है।

हारा हूँ साथ निभाओ ना बाबा,
मुझको भी गले से लगाओ ना बाबा,
देने हो गर मुझे बाद में आँसू,
पहले मुझे हंसाओ ना बाबा,
हारा हूँ साथ निभाओ ना बाबा।।
तर्ज – जिंदगी में कभी कोई आए।
जितने भी अपने थे वो,
सारे पराए है,
हार के बाबा तेरी,
शरण में आए है,
तेरा ही सहारा है,
तू ही तो हमारा है,
अपनो को ऐसे तरसाओ ना बाबा।
हारा हुँ साथ निभाओ ना बाबा,
मुझको भी गले से लगाओ ना बाबा,
देने हो गर मुझे बाद में आँसू,
पहले मुझे हंसाओ ना बाबा,
हारा हूँ साथ निभाओ ना बाबा।।
तेरी दातारि बाबा,
बड़ी मशहूर है,
खाटु नगरिया बाबा,
बड़ी ही दूर है,
पहली बार आया हूँ,
आस लेकर आया हूँ,
हालत पे मेरी तरस खाओ ना बाबा।
हारा हुँ साथ निभाओ ना बाबा,
मुझको भी गले से लगाओ ना बाबा,
देने हो गर मुझे बाद में आँसू,
पहले मुझे हंसाओ ना बाबा,
हारा हूँ साथ निभाओ ना बाबा।।
हार के जो भी आया,
फिर नही हारा है,
सांवरे सलोने तूने,
जीवन सँवारा है,
कुछ नही मेरा है,
‘कन्हैया’ भी तेरा है,
पकड़ा जो हाथ छुड़ाओ ना बाबा।
हारा हुँ साथ निभाओ ना बाबा,
मुझको भी गले से लगाओ ना बाबा,
देने हो गर मुझे बाद में आँसू,
पहले मुझे हंसाओ ना बाबा,
हारा हूँ साथ निभाओ ना बाबा।।
हारा हूँ साथ निभाओ ना बाबा,
मुझको भी गले से लगाओ ना बाबा,
देने हो गर मुझे बाद में आँसू,
पहले मुझे हंसाओ ना बाबा,
हारा हूँ साथ निभाओ ना बाबा।।
