- – भजन में प्रेम (प्रीत) को भगवान से मिलने का अनिवार्य माध्यम बताया गया है।
- – शबरी और बाई मीरा जैसे भक्तों ने सच्चे प्रेम और भक्ति के माध्यम से भगवान की प्राप्ति पाई।
- – झूठे बैर और छल से भगवान की प्राप्ति संभव नहीं है, सच्ची भक्ति और प्रेम आवश्यक हैं।
- – भक्ति में नाम और ध्यान के साथ-साथ सच्चाई और प्रेम का होना जरूरी है, अन्यथा भक्ति व्यर्थ है।
- – भजन का मूल संदेश है कि बिना प्रेम के भगवान की प्राप्ति नहीं होती।
- – यह भजन श्री शिवनारायण वर्मा द्वारा रचित है और उन्होंने इसे प्रेम और भक्ति के महत्व पर आधारित किया है।
मेरे मनवा मन मीत रे…,,,
हरि मिलते नही है बिन प्रीत रे,
बिन प्रीत रे,
ओ मेरे मनवा।।
तर्ज – आजा तुझको पुकार मेरे गीत।
प्रीत लगाई थी,
शबरी प्रभू से,
खाए झूठे बैर प्रभू थे,हो…
झूठे बैर खिला शबरी ने,
करली अमर देखो प्रीत रे,
हरि मिलते नही है बिन प्रीत रे।।
प्रीत लगाई थी,
बाई मीरा ने,
विष का प्याला भेजा राँणा ने,हो…
आज अमर गाथा के दुनिया,
गाती है सब गीत रे,
हरि मिलते नही है बिन प्रीत रे।।
नाम न ध्यावे न,
ध्यान लगाए,
भक्ती का झूठा रँग चढ़ाए,हो…
छल करता है उससे जिसको,
भाए न छल छीद्र रे,
हरि मिलते नही है बिन प्रीत रे।।
हरि मिलते नही है बिन प्रीत रे,
बिन प्रीत रे,
ओ मेरे मनवा।।
– भजन लेखक एवं प्रेषक –
श्री शिवनारायण वर्मा,
मोबा.न.8818932923
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