- – यह गीत भगवान श्रीकृष्ण (गिरधर गोपाल लाल) को प्रेमपूर्वक आमंत्रित करता है कि वे आँगन में आएं और माखन-मिश्री खिलाई जाएं।
- – गीत में कृष्ण की मुरली की तान सुनाने और उनकी चाल की बात की गई है, जो सरल और मधुर हो।
- – थाली में खीर, चूरमा, दूध मलाई जैसी स्वादिष्ट चीजें सजाई गई हैं, जो कृष्ण को भोग लगाई जा रही हैं।
- – धन्ना भगत ने भगवान को बुलाया है, जिन्होंने कठिन समय में भी भोग लगाया, पर कृष्ण रूठे हुए हैं, इसलिए पुनः प्रेम से बुलावा किया जा रहा है।
- – गीत में कृष्ण के प्रति भक्त की भक्ति, प्रेम और स्नेह की भावना प्रकट होती है, जिसमें वे माखन-मिश्री खिलाने और पालने में झुलाने का वचन देते हैं।

हे गिरधर गोपाल लाल तू,
आजा मोरे आँगना,
माखन मिशरी तने खिलाऊँ,
और झुलाऊँ पालणा,
हे गिरधर गोपाल लाल तु।।
तर्ज – थाली भरकर लाई खीचड़ो।
मैं तो अर्जी कर सकता हूँ,
आगे तेरी मर्जी है,
आनो हो तो आ साँवरिया,
फेर करे क्यों देरी है,
मुरली की आ तान सुनाना,
चाल ना टेढ़ी चालना,
माखन मिशरी तने खिलाऊँ,
और झुलाऊँ पालणा,
हे गिरधर गोपाल लाल तु।।
कंचन बरगो थाल सजायो,
खीर चूरमा बाटकी,
दूध मलाई से मटकी भरी है,
आजा जिमले ठाट की,
तेरी ही मर्जी के माफिक,
खाना हो सो खावना,
माखन मिशरी तने खिलाऊँ,
और झुलाऊँ पालणा,
हे गिरधर गोपाल लाल तु।।
धन्ना भगत ने तुझे बुलाया,
रूखा सूखा खाया तू,
करमा बाई लाई खीचड़ो,
रूचि रूचि भोग लगाया तू,
मेरी बार क्यों रूठ के बैठ्यो,
भाई ना मेरी भावना,
माखन मिशरी तने खिलाऊँ,
और झुलाऊँ पालणा,
हे गिरधर गोपाल लाल तु।।
हे गिरधर गोपाल लाल तू,
आजा मोरे आँगना,
माखन मिशरी तने खिलाऊँ,
और झुलाऊँ पालणा,
हे गिरधर गोपाल लाल तु।।
स्वर – संजय पारीक जी।
