- – यह गीत मुरलीधर छलिया मोहन (भगवान कृष्ण) के प्रति प्रेम और भक्ति को व्यक्त करता है।
- – कवि अपने दिल की भावनाओं को प्रकट करता है कि वह मुरलीधर के प्रेम में पड़ गया है, जिससे उसकी परेशानियाँ बढ़ गई हैं।
- – गीत में मुरलीधर की सुंदरता, महिमा और उनकी अनुपस्थिति का दर्द व्यक्त किया गया है।
- – मुरलीधर को राजेश्वर, राजाराम, प्रभु योगेश्वर, धनुधारी और मुरली बजाने वाला बताया गया है, जो उनकी दिव्यता को दर्शाता है।
- – यमुना तट पर मुरलीधर के निवास की बात की गई है, जो उनकी लीलाओं का प्रतीक है।
- – स्वर श्री चित्र विचित्र महाराज जी का है, जो इस भक्ति गीत को और प्रभावशाली बनाता है।

हे मुरलीधर छलिया मोहन,
हम भी तुमको दिल दे बैठे,
गम पहले से ही कम तो ना थे,
एक और मुसीबत ले बैठे,
हे मुरलिधर छलिया मोहन,
हम भी तुमको दिल दे बैठे।।
दिल कहता है तुम सुन्दर हो,
आँखे कहती है दिखलाओ,
तुम मिलते नही हो आकर के,
हम कैसे कहे देखो ये बैठे,
हे मुरलिधर छलिया मोहन,
हम भी तुमको दिल दे बैठे।।
महिमा सुनके हैरान है हम,
तुम मिल जाओ तो चैन मिले,
मन खोज के भी तुम्हे पाता नही,
तुम हो की उसी मन में बैठे,
हे मुरलिधर छलिया मोहन,
हम भी तुमको दिल दे बैठे।।
राजेश्वर राजाराम तुम्ही,
प्रभु योगेशेवर घनश्याम तुम्ही,
धनुधारी बने कभी मुरली बजा,
यमुना तट निज जन में बैठे,
हे मुरलिधर छलिया मोहन,
हम भी तुमको दिल दे बैठे।।
हे मुरलीधर छलिया मोहन,
हम भी तुमको दिल दे बैठे,
गम पहले से ही कम तो ना थे,
एक और मुसीबत ले बैठे,
हे मुरलिधर छलिया मोहन,
हम भी तुमको दिल दे बैठे।।
स्वर – श्री चित्र विचित्र महाराज जी।
