- – यह भजन विश्वकर्मा जी की महिमा का वर्णन करता है, जो जगत के वास्तु दाता और रचयिता हैं।
- – विश्वकर्मा जी पंचमुख और दस भुजाओं वाले हैं, जिनके हाथों में गजशत्र और त्रिशूल जैसे दिव्य अस्त्र हैं।
- – उनका जन्म माघ तेरस को हुआ था और उनका पूजन दिवस 17 सितंबर को मनाया जाता है।
- – उन्होंने सोने की लंका बनाई और देवताओं के लिए अनेक दिव्य वस्तुएं और अस्त्र-शस्त्र बनाए।
- – विश्वकर्मा जी को देवों का देव और कला का कारिगर माना जाता है, जो सभी देवताओं के प्रिय हैं।
- – भजन में विश्वकर्मा जी को प्रणाम करते हुए उनकी महिमा और योगदान की स्तुति की गई है।

हे वास्तु दाता जगत रचियता,
तुम हो जगत सहारा,
तुमको प्रणाम हमारा,
तुमको प्रणाम हमारा।।
तर्ज – जहाँ डाल डाल पर।
हे पंच मुख दस भुजा तुम्हारी,
सोहे प्रभु हंस सवारी,
(हरी ॐ – ४)
सोहे प्रभु हंस सवारी,
हाथो मे है गज शुत्र लिए,
विराट स्वरुप तुम्हारा,
तुमको प्रणाम हमारा,
तुमको प्रणाम हमारा।।
माघ तेरस को जनम लिया,
बृज नाथ मे वास किया है,
(हरी ॐ – ४)
17 सितम्बर को होता है,
पुजन दिवस तुम्हारा,
तुमको प्रणाम हमारा,
तुमको प्रणाम हमारा।।
तुने सोने की गढ लंका बनाई,
ईन्द्र पुरी ने शोभा पाई,
(हरी ॐ – ४)
सब देवो की देव परीयो को,
कला से सवारा,
तुमको प्रणाम हमारा,
तुमको प्रणाम हमारा।।
भोले का तुने त्रिशुल बनाया,
ईन्द्र ने वज्र है पाया,
(हरी ॐ – ४)
विष्णु जी की ऊंगली पे,
सुदर्शन तुमने ही उतारा,
तुमको प्रणाम हमारा,
तुमको प्रणाम हमारा।।
गाये पियुष जाँगिड महिमा आपकी,
पुनीया भजन बनाए,
(हरी ॐ – ४)
देवो के देव विश्वकर्मा,
गोपाल भी तेरा दुलारा,
तुमको प्रणाम हमारा,
तुमको प्रणाम हमारा।।
हे वास्तु दाता जगत रचियता,
तुम हो जगत सहारा,
तुमको प्रणाम हमारा,
तुमको प्रणाम हमारा।।
गायक / प्रेषक – पियुष जाँगिड
8890798802
