- – यह भजन सत्संग और सतगुरु की महिमा का वर्णन करता है, जिसमें सतगुरु की बार-बार स्मृति करने की प्रेरणा दी गई है।
- – भजन में सतगुरु को दाता और पालक के रूप में पूजा गया है, जो जीवन के मंदिर (शरीर) को सुंदर बनाते हैं।
- – सतगुरु की याद और सत्संग में जुड़ने से जीवन में शांति, सौंदर्य और आध्यात्मिक समृद्धि आती है।
- – भजन में सात सहेलियों और नाथ गुलाब की विनती का उल्लेख है, जो गुरु की महिमा का गुणगान करते हैं।
- – यह भजन रामीबाई द्वारा गाया गया है और सुरेश खोड़ा, जयपुर द्वारा प्रेषित किया गया है।
हिंडो घला दयो ओ सत्संग माई ने,
दोहा – सतगुरु के दरबार में,
नर जाइए बारंबार,
भूली वस्तु बताएं दी,
मेरे सतगुरु दातार।
हिंडो घला दयो ओ सत्संग माई ने,
ओ गुरूजी हिंनडे हिंनडे सुरता नार,
अो सतगुरु जी महारा,
हिंनडे हिंनडे सुरता नार।।
काया मंदिर में आमली ओ गुरूजी,
छाई छाई घेर घुमेर,
सतगुरु जी महारा,
छाई छाई घेर घुमेर।।
हिंडो घला द्यो ओ सत्संग माई ने,
ओ गुरूजी हिंनडे हिंनडे सुरता नार,
अो सतगुरु जी महारा,
हिंनडे हिंनडे सुरता नार।।
अगड चन्दन रो पलनो ओ गुरूजी,
घाली घाली रेशम डोर,
सतगुरु जी महारा,
घाली घाली रेशम डोर।।
हिंडो घला द्यो ओ सत्संग माई ने,
ओ गुरूजी हिंनडे हिंनडे सुरता नार,
अो सतगुरु जी महारा,
हिंनडे हिंनडे सुरता नार।।
सात सहेलियां जूल री ओ गुरूजी,
गावे गावे मंगला चार,
सतगुरु जी महारा,
गावे गावे मंगला चार।।
हिंडो घला द्यो ओ सत्संग माई ने,
ओ गुरूजी हिंनडे हिंनडे सुरता नार,
अो सतगुरु जी महारा,
हिंनडे हिंनडे सुरता नार।।
नाथ गुलाब की विनती या गुरुजी,
गावे गावे बाने भोला नाथ,
ओ सतगुरु जी महारा,
गावे भोला नाथ।।
हिंडो घला द्यो ओ सत्संग माई ने,
ओ गुरूजी हिंनडे हिंनडे सुरता नार,
अो सतगुरु जी महारा,
हिंनडे हिंनडे सुरता नार।।
हिंडो घला दयो ओ सत्संग माई ने,
ओ गुरूजी हिंनडे हिंनडे सुरता नार,
अो सतगुरु जी महारा,
हिंनडे हिंनडे सुरता नार।।
– भजन गायिका –
रामीबाई।
– भजन प्रेषक –
सुरेश खोड़ा जयपुर।