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हम तेरे नादान से बालक: भजन (Hum Tere Nadan Se Balak)

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हम तेरे नादान से बालक,
तुम दया के सागर हो,
एक एक बूंद में तेरे अमृत,
हमको जान से प्यारा है,
हम तेरें नादान से बालक ॥

यह जीवन है तेरी अमानत,
इसको अपना ही माना,
जब तक तेरी शरण ना आयी,
अपना इसको ना जाना,
तुम हो जग के पालनहारे,
मेरा भी कुछ ध्यान करो,
हम तेरें नादान से बालक ॥

दुनिया तेरे दर पर मांगे,
खाली दामन फैलाकर,
हाथ पकड़ लो बाबा मेरा,
ठोकर खाई हूं दर दर,
तुम मेरे बन जाओ बाबा,
चरणों में यह अर्जी है,
हम तेरें नादान से बालक ॥

तेरी राहों में बालाजी,
पलके आज बिछाई है,
तेरे होते दुख पाउँ मैं,
क्या यह तेरी मर्जी है,
आके तेरे दर पर मैंने,
यह अरदास लगाई है,
हम तेरें नादान से बालक ॥

हम तेरे नादान से बालक,
तुम दया के सागर हो,
एक एक बूंद में तेरे अमृत,
हमको जान से प्यारा है,
हम तेरें नादान से बालक ॥

हम तेरे नादान से बालक: गहराई से अर्थ और व्याख्या

यह भजन न केवल भक्ति और ईश्वर पर विश्वास को दर्शाता है, बल्कि आत्मज्ञान, समर्पण, और ईश्वर के प्रति प्रेम की गहराई में ले जाता है। प्रत्येक पंक्ति को समझने के लिए हमें इसके भाव, प्रतीकों और भक्त के मनोभाव का विश्लेषण करना होगा।


हम तेरे नादान से बालक, तुम दया के सागर हो

भक्त स्वयं को नादान बालक के रूप में प्रस्तुत करता है। “बालक” का अर्थ यहां मासूमियत, अज्ञानता, और ईश्वर पर निर्भरता का प्रतीक है। एक बालक हर समय अपने संरक्षक पर निर्भर रहता है और किसी भी निर्णय को अपने आप लेने में असमर्थ होता है। यह पंक्ति आत्मसमर्पण का गहरा उदाहरण है।
ईश्वर को “दया का सागर” कहकर उनकी अनंत कृपा और करुणा को व्यक्त किया गया है। “सागर” का उपयोग यह दिखाने के लिए किया गया है कि ईश्वर की दया और प्रेम की सीमा नहीं है। भक्त अपने जीवन की हर समस्या और अज्ञानता के लिए उनकी कृपा का आकांक्षी है।

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एक-एक बूंद में तेरे अमृत, हमको जान से प्यारा है

“अमृत” का उल्लेख यहां ईश्वर की कृपा, ज्ञान, और उनके आशीर्वाद के रूप में किया गया है। यह दिखाता है कि भक्त को ईश्वर की एक-एक कृपा उतनी ही मूल्यवान लगती है जितनी अमृत की एक बूंद।
भक्त यह स्वीकार करता है कि वह सांसारिक सुखों की लालसा नहीं करता, बल्कि उसे ईश्वर की दया का अमृत ही सबसे प्रिय है। यह पंक्ति गहरे प्रेम और श्रद्धा को प्रकट करती है, जहां भक्त को ईश्वर के बिना जीवन निरर्थक लगता है।


यह जीवन है तेरी अमानत, इसको अपना ही माना

यहाँ भक्त यह स्वीकार करता है कि उसका जीवन उसकी स्वयं की संपत्ति नहीं है। “अमानत” शब्द यह दर्शाता है कि ईश्वर ने जीवन केवल एक धरोहर के रूप में दिया है, और इसे सही तरीके से उपयोग करना भक्त का कर्तव्य है।
यह विचार हमें अहंकार से दूर ले जाता है और हमें यह समझने में मदद करता है कि हम ईश्वर की योजना का हिस्सा हैं। यह पंक्ति हमें ईश्वर के प्रति कृतज्ञ होने और अपने जीवन को उनकी सेवा में समर्पित करने की प्रेरणा देती है।


जब तक तेरी शरण ना आयी, अपना इसको ना जाना

भक्त अपने जीवन को तब तक महत्वहीन मानता है जब तक वह ईश्वर की शरण में नहीं आता। “शरण” का मतलब यहां केवल शारीरिक रूप से ईश्वर के पास आना नहीं, बल्कि अपनी आत्मा को उनके चरणों में समर्पित करना है।
यह विचार आत्मज्ञान के महत्व को उजागर करता है। भक्त यह स्वीकार करता है कि सांसारिक सुख और भौतिक उपलब्धियां उसे संतोष नहीं दे सकीं, लेकिन ईश्वर की शरण में आकर उसे अपने जीवन का उद्देश्य समझ आया।


तुम हो जग के पालनहारे, मेरा भी कुछ ध्यान करो

यह पंक्ति हमें ईश्वर की व्यापकता और उनके कर्तव्यों की याद दिलाती है। भक्त यह स्वीकार करता है कि ईश्वर पूरी सृष्टि के पालनकर्ता हैं। उनकी दया और देखभाल हर जीव पर समान रूप से होती है।
फिर भी, भक्त व्यक्तिगत रूप से ईश्वर से प्रार्थना करता है कि वे उसका भी ध्यान रखें। यह पंक्ति भक्त के आत्मीय संबंध को दर्शाती है, जो यह मानता है कि ईश्वर उसके संघर्षों को देख रहे हैं और उसका मार्गदर्शन करेंगे।

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दुनिया तेरे दर पर मांगे, खाली दामन फैलाकर

यहाँ भक्त संसार के व्यवहार का वर्णन करता है। जब कोई सांसारिक दुखों और परेशानियों से घिर जाता है, तो वह ईश्वर की शरण में आता है। “खाली दामन” शब्द यह दिखाता है कि हर इंसान अपनी इच्छाओं और समस्याओं के समाधान के लिए ईश्वर की कृपा मांगता है।
भक्त स्वयं को भी उन्हीं लोगों की तरह देखता है, लेकिन उसकी प्रार्थना केवल भौतिक सुख के लिए नहीं, बल्कि ईश्वर की निकटता पाने के लिए है।


हाथ पकड़ लो बाबा मेरा, ठोकर खाई हूं दर दर

यह पंक्ति आत्मीय प्रार्थना और आत्मसमर्पण का चरम रूप है। भक्त ईश्वर से विनती करता है कि वे उसका हाथ थाम लें। “हाथ पकड़ना” यहाँ सुरक्षा, मार्गदर्शन और सहारे का प्रतीक है।
भक्त स्वीकार करता है कि उसने संसार में बहुत कठिनाइयां झेली हैं और अब उसे केवल ईश्वर की सहायता की आवश्यकता है। यह पंक्ति यह दर्शाती है कि जब इंसान अपनी सीमाओं को समझता है, तो वह ईश्वर की ओर मुड़ता है।


तुम मेरे बन जाओ बाबा, चरणों में यह अर्जी है

यह पंक्ति भक्त की आत्मीय प्रार्थना को प्रकट करती है। “तुम मेरे बन जाओ” का अर्थ है कि भक्त ईश्वर को अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाना चाहता है। यह संबंध केवल साधारण प्रार्थना तक सीमित नहीं है, बल्कि उसमें आत्मा और ईश्वर का मिलन है।
“चरणों में यह अर्जी है” यह दिखाता है कि भक्त पूरी विनम्रता और श्रद्धा के साथ अपने इरादे प्रस्तुत करता है। चरणों में झुकना समर्पण का प्रतीक है, जहाँ भक्त अपने अहंकार और इच्छाओं को त्याग कर ईश्वर की शरण में आता है।


तेरी राहों में बालाजी, पलके आज बिछाई है

यहाँ भक्त बालाजी के प्रति गहरी श्रद्धा और प्रेम व्यक्त करता है। “पलके बिछाना” एक सुंदर प्रतीक है, जो यह दिखाता है कि भक्त भगवान के स्वागत के लिए अपनी पूरी आत्मा समर्पित कर रहा है।
“तेरी राहों में” यह इंगित करता है कि भक्त अपने जीवन को ईश्वर की सेवा और उनके निर्देशों का पालन करने के लिए समर्पित कर चुका है। यह भक्ति का उच्चतम स्तर है, जहाँ व्यक्ति अपनी इच्छाओं से ऊपर उठकर ईश्वर के लिए जीवन जीने का संकल्प लेता है।


तेरे होते दुख पाऊं मैं, क्या यह तेरी मर्जी है

यह पंक्ति एक गहरी मनोवैज्ञानिक स्थिति को प्रकट करती है। भक्त ईश्वर से सवाल करता है कि जब वे सर्वशक्तिमान और करुणामय हैं, तो क्या यह उनकी इच्छा है कि भक्त कष्ट झेले।
यह पंक्ति भक्त के मन में उत्पन्न उस पीड़ा को दर्शाती है, जब उसे यह लगता है कि उसकी कठिनाइयों का अंत नहीं हो रहा। लेकिन यह भी एक संकेत है कि भक्त का विश्वास ईश्वर पर अडिग है; वह यह मानता है कि जो कुछ भी हो रहा है, वह उनकी इच्छा से हो रहा है।

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आके तेरे दर पर मैंने, यह अरदास लगाई है

यहाँ भक्त ईश्वर के दरवाजे पर अपनी प्रार्थना लेकर आता है। “दर पर आना” यह संकेत करता है कि भक्त ने अपने सभी सांसारिक उपायों को छोड़कर केवल ईश्वर की ओर रुख किया है।
“अरदास लगाई है” यह दर्शाता है कि भक्त का ईश्वर पर विश्वास इतना गहरा है कि वह उन्हें अपनी हर समस्या का समाधान मानता है। यह पंक्ति पूर्ण समर्पण का प्रतीक है, जिसमें भक्त अपनी आत्मा, समस्याएं और प्रार्थनाएं ईश्वर के चरणों में समर्पित कर देता है।


हम तेरे नादान से बालक, तुम दया के सागर हो

यह पंक्ति भजन की शुरुआत और समापन दोनों में आती है, जो यह दिखाती है कि भजन का मूल विचार ईश्वर की दया और भक्त के आत्मसमर्पण में ही निहित है।
यह पंक्ति एक चक्र का रूप लेती है, जहाँ भक्त बार-बार यह स्वीकार करता है कि वह एक मासूम बालक है, जो केवल ईश्वर की कृपा और दया के सहारे ही जी सकता है। यह पंक्ति यह भी सिखाती है कि भक्ति की कोई उम्र, समय या स्थान नहीं होता; यह हमेशा निस्वार्थ और पूर्ण आत्मसमर्पण के साथ होनी चाहिए।


भजन का समग्र सार

यह भजन भक्त और भगवान के रिश्ते की गहराई को दिखाता है। इसमें प्रेम, समर्पण, आत्मज्ञान, और ईश्वर पर विश्वास के विभिन्न पहलुओं को खूबसूरती से व्यक्त किया गया है।
भक्त अपनी मासूमियत और अज्ञानता को स्वीकार करते हुए, ईश्वर की अनंत करुणा और दया पर निर्भर है। यह भजन हमें सिखाता है कि जब हम अपने अहंकार, इच्छाओं और समस्याओं को त्यागकर ईश्वर की शरण में आते हैं, तो हमारा जीवन सार्थक हो जाता है।


अंतिम विचार:
यह भजन केवल शब्दों का संग्रह नहीं है, बल्कि एक गहरी आध्यात्मिक यात्रा है। यह हमें हमारे अस्तित्व के सार, ईश्वर के महत्व, और उनके प्रति हमारी जिम्मेदारियों को समझने में मदद करता है। यह भजन हमें प्रेरित करता है कि हम अपनी मासूमियत और विश्वास को बनाए रखें और जीवन के हर क्षण में ईश्वर की कृपा के लिए आभारी रहें।

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