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जगत में जिसका जगत पिता रखवाला भजन लिरिक्स – Jagat Mein Jiska Jagat Pita Rakhwala Bhajan Lyrics – Hinduism FAQ

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  • – यह दोहा और कविता भगवान की सुरक्षा और संरक्षण की महिमा को दर्शाती है, जो कहते हैं कि जिसका जगत पिता (ईश्वर) रखवाला होता है, उसे कोई हानि नहीं पहुंचा सकता।
  • – कहानी में एक शिकारी दो पक्षियों (कबूतर और कबूतरी) को मारने के लिए जंगल में आता है, लेकिन तभी एक बाज भी उन्हें शिकार करने के लिए आता है।
  • – पक्षियों की रक्षा के लिए ईश्वर की लीला के रूप में एक जहरीला सर्प आकर शिकारी को मार देता है, जिससे पक्षी बच जाते हैं।
  • – यह कविता ईश्वर की सर्वशक्तिमानता और उसकी सुरक्षा की अटूट शक्ति को दर्शाती है, जो अपने भक्तों की रक्षा करता है।
  • – अंत में दोहा पुनः दोहराता है कि जिसका जगत पिता रखवाला होता है, उसे कोई मार नहीं सकता।
  • – यह रचना भक्ति और विश्वास की भावना को प्रबल करती है, और जीवन में ईश्वर की उपस्थिति पर भरोसा जगाती है।

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जगत में जिसका,
जगत पिता रखवाला।

दोहा – जाको राखे साइयां,
मार सके न कोई,
और बाल न बांका कर सके,
चाहे सब जग बैरी होय।



जगत में जिसका,

जगत पिता रखवाला,
उसे मारने वाला हमने,
उसे मारने वाला हमने,
कोई नहीं निहारा,
जगत मे जिसका,
जगत पिता रखवाला।।



एक शिकारी अपने घर से ले,

तीर कमान चला भाई,
दो पक्षी वध करने के लिए,
जंगल में जा पहुंचा भाई,
जब वृक्ष के ऊपर दृष्टि पड़ी,
दो पक्षी को देखा भाई,
थी एक बेचारी कबूतरी,
और एक कबूतर था भाई,
आपस में दोनों बैठे थे,
थी किसी तरह की परवाह नाही,
इन्हें देख शिकारी बेदर्दी,
भेजा अपना मन ललचाना,
और तीर निकाला तरकश से,
दे ध्यान जरा सुनते जाना,,
अब जरा ना उसने देरी करी,
और तीर सरासर पर ताना,
अब लगा निशाना बांध अधर्मी,,
अब लगा निशाना बांध अधर्मी,
महा नीच हत्यारा,
जगत मे जिसका,
जगत पिता रखवाला।।

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नीचे यह ताने तीर खड़ा,

ऊपर को और गजब छाया,
एक बाज भयंकर बलकारी,
वो आसमान में मंडराया,
उड़ उड़ के चक्कर काट रहा,
करने को अपना मनचाहा,
जब वृक्ष के ऊपर दृष्टि पड़ी,
तो बाज प्रसन्न हुआ भारी,
उस समय झपट्टा मारने की,
उसने भी कर ली तैयारी,
उस समय झपट्टा मारने की,
उसने भी कर ली तैयारी,
अब ऊपर बाज शिकारी नीचे,
ऊपर बाज शिकारी नीचे,
हो रहे खुशी अपारा,
जगत मे जिसका,
जगत पिता रखवाला।।



इन्हें देख कबूतर कबूतरी,

दोनों का धीरज छूट गया,
नर से मादा यू कहती है,
हे नाथ विधाता रूठ गया,
उड़ जावे तो बाज झपट लेवे,
नीचे ये ताने तीर खड़ा,
इस वृक्ष पे बैठे बैठे ही,
जीवन का डोरा टूट पड़ा,
कहे कबूतर सुन मेरी प्यारी,
कहे कबूतर सुन मेरी प्यारी,
कहना सत्य तुम्हारा,
जगत मे जिसका,
जगत पिता रखवाला।।



दोनों ने निश्चय ठान ली भाई,

काल हमारे सिर छाया,
लेकिन कर्मों की रेखा का,
पार किसी ने नहीं पाया,
विकराल महाकाला जहरी,
एक सर्प कहीं से धरधाया,
और मार लपेटा पैरों में,
बेदर्द शिकारी डस खाया,
वो एकदम से फिर उछल पड़ा,
आगे को क्या हुआ देखो,
वो एकदम से फिर उछल पड़ा,
आगे को क्या हुआ देखो,
चल गया गया तीर तिरछा उसदम,
उस बाज के जाए लगा देखो,
यह इधर पड़ा वो उधर पड़ा,
दोनों से पिंड छुड़ा देखो,
बच गए कबूतर कबूतरी,
यह ईश्वर की लीला देखो,
अब रूपराम शिवराम जगत में,
सदा प्रभु रखवाला,
जगत मे जिसका,
जगत पिता रखवाला।।



जगत में जिसका,

जगत पिता रखवाला,
उसे मारने वाला हमने,
उसे मारने वाला हमने,
कोई नहीं निहारा,
जगत मे जिसका,
जगत पिता रखवाला।।

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गायक – श्री अमरचन्द जी सोनी।
प्रेषक – विशाल सोनी।
9928125586


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