- – यह गीत श्री राधा और बरसाना की भक्ति और प्रेम को समर्पित है, जहाँ प्रेम और भक्ति की गहराई दर्शाई गई है।
- – गीत में राधा के प्रेम को अगाध और अनमोल बताया गया है, जो चितचोरों को आकर्षित करता है।
- – भक्त अपनी पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ राधा की सेवा और नाम जप में जीवन बिताने की इच्छा व्यक्त करता है।
- – बरसाना को एक पवित्र और प्रिय नगरी के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जहाँ बसने की तीव्र इच्छा है।
- – गीत में राधा के चरणों की सेवा और उनके प्रेम में लिपटने की भावना को प्रमुखता से दर्शाया गया है।

जहाँ बरसाना है वही बस जाना है,
जाना नही है कही और,
जहा श्री राधा है प्रेम अगाधा है,
वही पे मिलेंगे चितचोर।।
तर्ज – हम तुम चोरी से बंधे इक डोरी से
इक इक पोड़ी तेरी, महलन की मैं धोऊंगी,
चवर ढुलाई देना, सारी रैन ना मैं सोऊंगी,
जप जप राधे नाम से, होगी जीवन की भोर,
जहाँ बरसाना है, वही बस जाना है,
जाना नही है कही और,
जहा श्री राधा है, प्रेम अगाधा है,
वही पे मिलेंगे चितचोर।।
प्यारी सी नगरी को तन मन से रोज बुहारूँगी,
थक जाउंगी जब राधे वह बैठ के तुम्हे पुकारूंगी,
दासन की में दास हु, करना किरपा की कोर,
जहाँ बरसाना है वही बस जाना है,
जाना नही है कही और,
जहा श्री राधा है प्रेम अगाधा है,
वही पे मिलेंगे चितचोर।।
खुश होकर राधाजी मोहे चरणन से लिपटायेगी,
चरण कमल की सेवा मुझे सहज में ही मिल जाएगी,
मस्त रहूँगा में नाम में, जग लाख मचाये शोर,
जहाँ बरसाना है वही बस जाना है,
जाना नही है कही और,
जहा श्री राधा है प्रेम अगाधा है,
वही पे मिलेंगे चितचोर।।
