- – यह कविता माया (भौतिक मोह) को पापणी (पाप करने वाली) कहकर उससे दूर रहने और सुमिरण (ध्यान, स्मरण) करने की प्रेरणा देती है।
- – कवि कहता है कि माया ने फंदा बिछाया है, जिससे व्यक्ति फंस जाता है और इससे मुक्ति पाने के लिए संतों के नाम और सुमिरण का सहारा लेना चाहिए।
- – मन को भटकने से रोकने और पाप के बोझ से मुक्त होने के लिए संतों के नाम का जाप और ध्यान आवश्यक बताया गया है।
- – कविता में संतों के नाम की महत्ता और उनके द्वारा मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करने की बात कही गई है।
- – अंत में बार-बार यह आग्रह किया गया है कि माया से दूर रहो और सुमिरण करो ताकि जीवन में शांति और मुक्ति प्राप्त हो सके।

जाओ माया पापणी,
सायब ने रटवा दे।
दोहा – कि माया ऐसी पापणी,
और फंद ले बैठी हाट,
ज्यौ त्यौ फंद ने फान्दिया,
तौ गया कबीरा काट।
जाओ माया पापणी,
सायब ने रटवा दे,
ऐ सायब ने रटवा दे,
माने सुमिरण करवा दे,
माने सुमिरण करवा दे,
थे जावो माया पापणी,
सायब ने रटवा दे।।
चौरासी मे फिरे भटकती,
मन नही लगवा दे,
ऐ माथे धरी पाप की मटकी,
बाने आगे फुटवा दे,
बाने आगे फुटवा दे,
थे जावो माया पापणी,
सायब ने रटवा दे।।
अरे संत नाम कि ज्योत जली,
माने दर्शन करवा दे,
ऐ अमर पटाय उनका हाथ मे,
माने नाम लिखावा दे,
माने नाम लिखावा दे,
थे जावो माया पापणी,
सायब ने रटवा दे।।
निरध्य नाम का बन्या नगाडा,
माने बजावा दे,
ऐ आवा गमन से दुर हटाके,
माने मुक्ति पावा दे,
माने मुक्ति पावा दे,
थे जावो माया पापणी,
सायब ने रटवा दे।।
संत नाम का खोल्या द्वारा,
माने बजावा दे,
ए कहे कबीर सुनो भाई संतो,
माने जनम छुडावा दे,
माने मुक्ति पावा दे,
थे जावो माया पापणी,
सायब ने रटवा दे।।
जाओ माया पापणी,
सायब ने रटवा दे,
ऐ सायब ने रटवा दे,
माने सुमिरण करवा दे,
माने सुमिरण करवा दे,
थे जावो माया पापणी,
सायब ने रटवा दे।।
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