- – यह गीत प्रेम और मिलन की भावना को झीनी-झीनी चांदनी की कोमलता के माध्यम से व्यक्त करता है।
- – गीत में सांवरिया (प्रेमी) के आने की प्रतीक्षा और उसके साथ जीवन बिताने की इच्छा व्यक्त की गई है।
- – मिलन की बेला में विभिन्न पारंपरिक वस्त्र और आभूषण पहनने की बात कही गई है, लेकिन नादान सांवरा (प्रेमी) के बिना उनका कोई महत्व नहीं है।
- – गीत में प्रेमी के आने को जीवन की सबसे महत्वपूर्ण घटना बताया गया है, जो जीवन को पूर्णता प्रदान करती है।
- – यह भजन प्रेम और भक्ति के भावों को सरल और मधुर भाषा में प्रस्तुत करता है, जो सुनने वाले के मन को छू जाता है।

झीणी झीणी चांदनी में,
ओल्यूं आवै रे।
दोहा – काजलियै री रेख स्यूं,
पाती लिखूं सजाए।
आणो व्है तो आन मिलो,
औ जीवन बीत्यो जाए।।
झीणी-झीणी चांदनी में,
ओल्यूं आवै रे, सांवरिया,
झीणी-झीणी चांदनी में,
ओल्यूं आवै रे,
बैरी ना आयो रे,-५
नादान सांवरा,
झीणी-झीणी चांदनी मे,
ओल्यूं आवै रे।।
मिलबा री बेला तांईं,
चूनड़ रंगाई रे,
मैं तो ना ओढूं रे-५,
नादान सांवरा,
झीणी-झीणी चांदनी मे,
ओल्यूं आवै रे।।
मिलबा री बेला तांईं,
नथणि मंगाई रे,
मैं तो ना पेहरु रे-५,
नादान सांवरा,
झीणी-झीणी चांदनी मे,
ओल्यूं आवै रे।।
मिलबा री बेला तांईं,
चुड़लो गढ़ायो रे,
मैं तो ना धारू रे-५,
नादान सांवरा,
झीणी-झीणी चांदनी मे,
ओल्यूं आवै रे।।
“हर्ष” कान्हूड़ा थां री,
सेज सजाई रे,
मैं तो ना पोढूं रे,-५
नादान सांवरा,
झीणी-झीणी चांदनी मे,
ओल्यूं आवै रे।।
झीणी झीणी चांदनी में,
ओल्यूं आवै रे, सांवरिया,
झीणी-झीणी चांदनी में,
ओल्यूं आवै रे,
बैरी ना आयो रे,-५
नादान सांवरा,
झीणी-झीणी चांदनी मे,
ओल्यूं आवै रे।।
– भजन प्रेषक –
विवेक अग्रवाल जी।
९०३८२८८८१५
